बाघ फिर बने मध्यप्रदेश की आन, बान, शान – उमंग सिंघार
टाइगर्स-डे पर मुख्यमंत्री श्री कमल नाथ ने देश में बाघ गणना में मध्यप्रदेश को सर्वोच्च स्थान दिये जाने पर कहा ‘बाघ हैं मध्यप्रदेश की आन-बान और शान”। मुख्यमंत्री का कथन हर प्रदेशवासी को गौरव से भर देता है। बाघ संख्या में देश में शिखर स्थान मिलने से मध्यप्रदेश की विश्व के वन्य-प्राणी क्षेत्र में महत्वपूर्ण पहचान स्थापित हुई है। वन्य-प्राणियों में सर्वाधिक आकर्षण का केन्द्र, बाघ परिवार में रहने वाला प्राणी नहीं है। बाघ शावक बड़े होते ही अपनी नई टेरिटरी बनाते हैं। अक्सर देखा जाता है कि वर्चस्व की लड़ाई में कमजोर नर बाघ या तो पलायन कर जाता है या मारा जाता है।
स्टेपिंग स्टोन्स फॉर टाइगर
बाघों की बढ़ती आबादी को बचाने के लिये मध्यप्रदेश में स्टेपिंग स्टोन्स फॉर टाइगर कांसेप्ट पर काम किया जा रहा है। इस योजना में हम धार, बुरहानपुर, हरदा, इंदौर, नरसिंहपुर, सागर, सीहोर, श्योपुर, मण्डला और ओंकारेश्वर में अभयारण्य विकसित कर बाघों के लिये सुरक्षित कॉरिडोर बना रहे हैं। ये अभयारण्य दो जंगलों के बीच ऐसे स्थान पर विकसित किये जाएंगे, जहाँ हरियाली और गाँव नहीं हैं और जैव-विविधता विकास की संभावनाएँ हैं। इससे बाघों के लिये क्षेत्र की वृद्धि होने के साथ ही हरियाली बढ़ने से भू-जल स्तर में वृद्धि होगी, इलाका उपजाऊ बनेगा, चारा मिलने से शाकाहारी पशुओं की संख्या बढ़ेगी। बाघों को सुरक्षित कॉरिडोर मिलने से मानव-प्राणी द्वंद भी रुकेगा।
20 वर्षीय सिंह परियोजना तैयार
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अप्रैल-2013 में दिये गए निर्देशानुसार हमने श्योपुर जिले के कूनो राष्ट्रीय पार्क में सिंहों के स्वागत की पूरी तैयारी कर ली है। विभाग का प्रभार लेने के साथ ही मैंने गुजरात के गिर से कूनो सिंह ट्रांसलोकेशन के प्रयास आरंभ कर दिये थे। केन्द्र शासन से इस संबंध में सम्पर्क जारी है। गिर एशियाटिक लॉयन केवल गुजरात के गिर में बचे हैं। खुदा न खास्ता यदि कभी कोई महामारी होती है, तो इनका अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा। मेरा ही नहीं, विश्व के पर्यावरण और वन्य-प्राणीविद का मानना है कि ऐसे में इन्हें विलुप्ति से बचाने के लिये इनका किसी दूसरी जगह रहवास होना भी बहुत जरूरी है। केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय की पहल पर वन्य-जीव संस्थान, देहरादून द्वारा एशियाई सिंहों के द्वितीय वैकल्पिक आवास के रूप में देश में कराये गए सर्वेक्षण में सर्वश्रेष्ठ विकल्प के रूप में कूनो राष्ट्रीय उद्यान को चुना गया है। यहाँ सिंह परियोजना के नाम से 20 वर्षीय परियोजना भी तैयार कर ली गई है।
टाइगर स्टेट मध्यप्रदेश
अखिल भारतीय बाघ गणना-2018 में मध्यप्रदेश को 526 बाघों के साथ देश में पहला स्थान मिला है, जो प्रदेश के लिये गौरव की बात है। इस उपलब्धि में पन्ना का विशेष योगदान है, जहाँ वर्ष 2009 में बाघ पुन: स्थापना के प्रयासों के बाद आज 55 बाघ हैं। ओंकारेश्वर में एक नये राष्ट्रीय उद्यान के साथ रातापानी और फेन अभयारण्यों को टाइगर रिजर्व घोषित कराने के प्रयास जारी हैं। केन्द्र शासन द्वारा राष्ट्रीय उद्यानों के प्रबंधन संबंधी मूल्यांकन में प्रदेश के 3 राष्ट्रीय उद्यान पेंच, कान्हा और सतपुड़ा को पहला स्थान मिला है। मध्यप्रदेश टूरिज्म बोर्ड ने भी एक मार्च, 2019 को पर्यटन स्थलों पर उपलब्ध सुविधाओं एवं सेवाओं के लिये सतपुड़ा टाइगर रिजर्व को मोस्ट टूरिस्ट फ्रेण्डली नेशनल पार्क/सेंचुरी अवार्ड से नवाजा है। पूरे प्रदेश में 12 जनवरी, 2019 को गिद्ध गणना हुई। गणना में विलुप्त होती इस प्रजाति की बढ़ोत्तरी के प्रमाण वन्य-प्राणी जगत में खुशखबरी लेकर आये। इस गणना में प्रदेश के 33 जिलों में 1,275 जगहों पर 7 हजार 900 गिद्ध पाये गये। इसके पूर्व वर्ष 2016 में की गई गणना में 900 स्थानों पर करीब 7 हजार गिद्ध मिले थे।
तेंदूपत्ता संग्रहण मजदूरी में वृद्धि
इस वर्ष तेंदूपत्ता संग्राहकों को 2000 रुपये प्रति मानक बोरा से बढ़ाकर 2500 रुपये प्रति मानक बोरा की दर से मजदूरी का नगद भुगतान किया गया। संग्रहण काल में संग्राहकों को 20 लाख 95 हजार मानक बोरा तेंदूपत्ते के संग्रहण के लिये 523 करोड़ 75 लाख रुपये मजदूरी का भुगतान किया गया। अब संग्राहकों को एक दिन की मजदूरी गवाँकर लाइन में लगकर पारिश्रमिक भुगतान का इंतजार नहीं करना पड़ता। नई व्यवस्था में विभागीय कर्मचारी गाँव में जाकर संग्राहकों को नगद राशि का भुगतान कर रहे हैं।
दुर्लभ एवं विलुप्त प्रजातियों के पौधे
प्रदेश के वनों में जैव-विविधता बनाये रखने के लिये रोपणियों में दुर्लभ एवं विलुप्त प्रजातियों के लगभग 70 लाख पौधे तैयार किये गये हैं। इनमें हल्दू, सलई, धामन, तिंसा, शीशम आदि प्रजातियाँ प्रमुख रूप से शामिल हैं। विभाग की नर्सरियों में टिश्यू कल्चर लैब लाकर उच्च और नवीन गुणवत्ता के पौधे विकसित कर रहे हैं। पूरे प्रदेश में 170 वन रोपणियों में कम दरों में उत्तम गुणवत्ता के पौधे उपलब्ध कराने की व्यवस्था की गई है।
आधुनिक रोपणियों का विकास
सूचना प्रौद्योगिकी की सहायता से अनुसंधान विस्तार रोपणियों में तैयार किये गये पौधों के ऑनलाइन संधारण के लिये नर्सरी मैनेजमेंट सिस्टम विकसित किया गया है। रोपणियों की सुरक्षा और निगरानी सी.सी. टी.व्ही. कैमरे से हो रही है। जन-सामान्य के लिये एम.पी. ऑनलाइन के माध्यम से ऑनलाइन पौधा विक्रय की व्यवस्था की गई है। वन विभाग की रोपणियों में मिस्ट चेम्बर, पॉली-हाउस, ग्रीन नेट, वर्मी कम्पोस्ट यूनिट, माइक्रो इरीगेशन सिस्टम, सोलर ऊर्जा उपलब्ध है।
पर्यटन बढ़ाने राज्य-स्तरीय समिति
मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में 19 अगस्त, 2019 को हुई बैठक के परिप्रेक्ष्य में वन्य-जीव क्षेत्रों में पर्यटन बढ़ाने और ठोस रणनीति तैयार करने के लिये राज्य-स्तरीय समिति बनाई गई है। प्रदेश के राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्य में हर साल 20 लाख पर्यटक आते हैं, जिनमें एक बड़ा भाग विदेशी पर्यटकों का है।
वनोपज व्यापार को प्रोत्साहन
वनोपज व्यापार को प्रोत्साहन देने के लिये वन उपज के पुन: विक्रय करने पर हस्तांतरण शुल्क प्रति आवेदन 500 रुपये निर्धारित किया गया है। पूर्व में आवेदन-पत्र प्राप्त होने पर क्रेता से विक्रय मूल्य की 3 प्रतिशत राशि हस्तांतरण शुल्क के रूप में लिये जाने का प्रावधान था।
वन्य-प्राणी गाइड सेवा शुल्क में वृद्धि
पर्यटकों की यात्रा को सुखद बनाने वाले गाइडों के सेवा शुल्क में इस वर्ष वृद्धि की गई। गाइड श्रेणी जी-1 का सेवा शुल्क 500 रुपये से बढ़ाकर 600 रुपये और जी-2 का 350 से बढ़ाकर 480 रुपये किया गया।
गौ-शालाओं का निर्माण
प्रदेश में संयुक्त वन प्रबंधन समितियों के माध्यम से 78 गौ-शालाओं के निर्माण एवं संचालन की स्वीकृति दी गई है। इसके लिये 30 लाख रुपये प्रति गौ-शाला की दर से अब तक 50 गौ-शालाओं के निर्माण के लिये संबंधित वन मण्डलों को राशि दी जा चुकी है।
अनुभूति कार्यक्रम में इस वर्ष भाग लेंगे 1.11 लाख बच्चे
वन, वन्य-प्राणी और पर्यावरण संरक्षण के प्रति राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों के आसपास रहने वाले बच्चों को जागरूक करने के अनुभूति कार्यक्रम संचालित किये गये। कार्यक्रमों में इस वर्ष 56 हजार स्कूली बच्चों ने भाग लिया। कार्यक्रम में इस वर्ष 1.11 लाख बच्चे भाग लेंगे। इस साल से शहरी क्षेत्रों के शासकीय स्कूलों के बच्चों को भी राष्ट्रीय वन उद्यान और अभयारण्यों में घूमने और पास से जानने का मौका मिलेगा।
महावत चारा कटर के लिये शैक्षणिक योग्यता समाप्त
कई काम ऐसे होते हैं, जिनमें शैक्षणिक योग्यता के स्थान पर निपुणता और अनुभव की महत्ता अधिक होती है। इसी के मद्देनजर प्रदेश में महावत और चारा कटर के लिये कोई शैक्षणिक योग्यता निर्धारित नहीं की गई है। महावत के लिये मात्र 5 वर्ष का अनुभव पर्याप्त है।