जनजातीय उद्यमिता का केन्द्र बन रहा है मध्यप्रदेश
( अवनीश सोमकुवर )
मध्यप्रदेश का जनजातीय समाज अपनी बहुरंगी संस्कृति और सीधे-सरल व्यवहार के लिए जाना जाता है। आर्थिक अवसरों से दूर रहने के कारण गरीबी का सामना करने वाले जनजातीय बंधुओं ने अब आर्थिक उद्यमिता की राह पकड़ ली है। राज्य सरकार के श्रंखलाबद्ध प्रयासों के कारण जनजातीय समाज ने आर्थिक उदयमिता और नई सूक्ष्म आर्थिक गतिविधियों को अपनाने की ओर कदम बढ़ाया है। पिछले डेढ़ दशकों में कई उदाहरण सामने आए हैं जो साबित करते हैं कि प्राकृतिक संसाधनों पर जीवन बिताने वाले समाज की युवा पीढ़ी अब अपनी आर्थिक गतिविधियाँ शुरू कर अपना जीवन-स्तर सुधारना चाहती है।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में राज्य सरकार ने आदिवासी वर्ग के युवाओं और व्यापारिक गतिविधियों को अपनाने के इच्छुक व्यक्तियों के लिए कई योजनाएँ -परियोजनाएँ शुरू की हैं, जो उनके लिए वरदान साबित हो रही हैं।
जनजातीय बहुल क्षेत्रों में कई आर्थिक गतिविधियाँ उभर आई हैं। पारंपरिक आर्थिक गतिविधियाँ जैसे बकरी पालन, मुर्गी पालन, मछली पालन से अलग हट कर गैर-कृषि आर्थिक गतिविधियों की संख्या बढ़ी है।
बालाघाट के चिरगांव में जनजातीय महिलाओं ने अपनी उद्यमिता का परिचय देकर एक राइस मिल का संचालन शुरू कर दिया है। कल ये महिलाएँ इस राइस मिल में मजदूर के बतौर काम कर रही थीं और आज वे इस मिल की मालिक बन गई हैं। लॉकडाउन में मालिक इस राइस मिल बेचना चाहता था। इन महिलाओं ने तय किया कि वह अपना समूह बनायेंगी, इस मिल को खरीदेंगी और खुद इसे सफलता से चलायेंगी। महिलाओं की इस उद्यमशीलता का प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने भी मन की बात कार्यक्रम में चर्चाकर उनकी सराहना की थी। अब यह महिलाएँ मिलकर महीने में तीन लाख तक का मुनाफा कमा रही हैं और अपने व्यापार को आगे बढ़ाने के लिए नई रणनीतियाँ बनाने में जुटी हैं।
सीधी जिले में आदिवासी महिलाएँ कोदो को अपनी आजीविका का आधार बनाने में जुटी हैं। केंद्रीय जनजाति विश्वविद्यालय अमरकंटक और सीधी जिला प्रशासन अपने समन्वित प्रयासों से “सोनांचल कोदो” नाम का ब्रांड बाजार में उतारने की तैयारी कर रहे हैं। इस पहल से आदिवासी महिलाएँ सीधे जुड़ी हैं। वे कोदो को अपनी आर्थिक-आत्मनिर्भरता का प्रतीक बनाने के लिए प्रयास कर रही हैं। जल्दी ही “सोनांचल कोदो” ब्रांड बाजार में उपलब्ध हो जायेगा।
इसी प्रकार डिंडोरी जिले की आदिवासी महिलाओं ने कोदो-कुटकी के कई उत्पाद तैयार कर “भारती ब्रांड” के नाम से बाजार में उतारा है। जिले के 41 गाँव की बैगा जनजाति की महिलाओं ने कोदो-कुटकी की खेती शुरू कर दी है। करीब 1500 महिलाओं ने प्रयोग के तौर पर 700 एकड़ जमीन पर कोदो-कुटकी की खेती करना शुरू कर दिया है। वर्ष 2012 में शुरू हुआ यह प्रयास दो-तीन सालों में ही परिणाम देने लगा। कोदो का उत्पादन लगभग 15,000 क्विंटल तक तक पहुँच गया। कोदो के उत्पादों की लोकप्रियता को देखते हुए अब पास में ही नैनपुर में एक प्र-संस्करण यूनिट ने अपना काम करना शुरू कर दिया है। परिणाम यह रहा कि अब डिंडोरी जिले में बड़े पैमाने पर कोदो-कुटकी की खेती हो रही है और उन्हें अच्छे दाम भी मिल रहे हैं।
डिंडोरी जिले के जनजातीय किसान श्री रामनिवास मौर्या अनाज बैंक का भी संचालन करते हैं। इसके माध्यम से वे किसानों को कोदो-कुटकी के बीज उपलब्ध कराते हैं ताकि कोदो-कुटकी का उत्पादन बढ़ता रहे। वे बताते हैं कि पिछले कुछ साल में कोदो-कुटकी जैसे मोटे अनाजों की माँग बाजार में बढ़ी है। कोदो-चुटकी को कम पानी में भी उगाया जा सकता है इसलिए इसकी उत्पादन लागत भी कम है।
फलम संपदा कंपनी
अब यह बीते दिन की बात हो गई जब कोदो-कुटकी खाने वालों को गरीब माना जाता या। कोदो-कुटकी अब स्वास्थ्यवर्धक आहार में शामिल है। स्वास्थ्य प्रति जागरूक हो रहे शहरी लोगों की पहली पसंद बन गया है। खान-पान की आदत में आये इस बदलाव को आर्थिक अवसर बनाते हुए छिंदवाड़ा जिले के आदिवासी बहुल की डोब ग्राम पंचायत के एक दूरस्थ जमुनिया गाँव में जनजातीय तामिया विकासखंड की डोब ग्राम पंचायत के एक दूरस्थ जमुनिया गाँव में जनजातीय किसानों की एक फलम सम्पदा फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी ने प्राकृतिक खाद्य पदार्थों की एक विस्तृत श्रंखला पेश की है।
फलम सम्पदा कंपनी दो दर्जन से ज्यादा उत्पाद बनाती है जिसमें शहद, महुआ कुकीज, कोदो कुकीज़, मल्टीग्रेन आटा, मक्का टोस्ट, पैक्ड इमली, जामुन सिरका, त्रिफला आयुर्वेदिक पाउडर, आँवला पाउडर, समा भात, कोदो बिस्कुट और मक्का आटा शामिल हैं।
कम्पनी के संचालक गुरूदयाल धुर्वे कहते हैं ” हमें सिर्फ पाँच साल हैं। हमने इसे कम्पनी अधिनियम के तहत 2014 में छह लाख रुपये की प्रारंभिक पूंजी से काम शुरू किया था। हम डोब ग्राम पंचायत के आसपास के गाँवों की तीन हजार एकड़ से अधिक कृषि भूमि का प्रबंधन कर रहे हैं। उत्पादों को तैयार करने, पैकेजिंग और मार्केटिंग सब जमुनिया प्र-संस्करण केंद्र पर होता है।
प्र-संस्करण और पैकेजिंग का प्रबंधन कंपनी की महिला सदस्य करती हैं। शुरूआती प्रशिक्षण के बाद उन्होंने अपने काम में कुशलता हासिल कर ली है। सत्ताइस साल की वंदना वन शुरुआती उत्पादों के प्र-संस्करण में जुड़ी हैं। उन्होंने विभिन्न व्यापार मेलों के दौरान स्टालों की बुकिंग से लेकर प्रबंधन में भी अनुभव हासिल कर किया है। वे बताती है कि – “शुरू में थोड़ा मुश्किल लग रहा था, लेकिन में आसानी से सब काम करती हूँ और सीखने की इच्छा रखने वाली महिलाओं को भी सिखाती हूँ।
शीला बाई सबसे अनुभवी हैं। वे जानती हैं कि कच्चे कृषि उत्पादों को कैसे सहेजा जाता है। वह कहती हैं कि “यह मेरी पसंद का काम है।” एक अन्य सदस्य शांति बाई पैकेजिंग सामग्री संभालती है। अच्छी पैकेजिंग के फायदे भी जानती हैं। वे कहती हैं “उत्पादों की गुणवत्ता पैकेजिंग की गुणवत्ता से आँकी जाती है, इसलिए हम इस बात का बहुत ध्यान रखते हैं।”
फलम कंपनी के सभी सदस्य आत्म-विश्वास से भरे हैं। वे अच्छे भविष्य की ओर देख रहे हैं। गुरुदयाल धुर्वे का कहना है – “हमने इन सालों में बहुत कुछ सीखा है और व्यापार के सब गुण धर्म सीख रहे हैं।”
(( लेख़क : जनजातीय वर्ग के बारे में गहरी समझ रखते हैं और जनसम्पर्क विभाग मध्यप्रदेश शासन में उपसंचालक के पद पर कार्यरत हैं ))