राजनीति का संदर्भ ग्रंथ है- लोकतंत्र का स्पंदन! … प्रमुख राष्ट्रीय समाचार विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार-अभिमनोज,की नवीन कृति – प्रदीप द्विवेदी
राजनीति का संदर्भ ग्रंथ है- लोकतंत्र का स्पंदन! …. आधुनिक पत्रकारिता में समाचार विश्लेषक की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण हो गई है. प्रमुख राष्ट्रीय समाचार विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार- अभिमनोज, पत्रकारिता में नए प्रयोगों के लिए प्रसिद्ध हैं. अभिमनोज की अभिनव पहल है उनकी पुस्तक…. लोकतंत्र का स्पंदन!
अभिमनोज के लेखन की विशेष शैली रही है… समाचार विश्लेषण का अलग अंदाज रहा है, जो केवल समाचार ही नहीं देता बल्कि खबर के अर्थ-भावार्थ की संपूर्ण जानकारी भी देता है!
वैसे तो हर पत्रकार का अपना व्यक्तिगत सियासी नजरिया होता है, अपनी राजनीतिक सोच होती है, लेकिन अपनी व्यक्तिगत राय से हटकर अभिमनोज ने जब भी लिखा, बगैर किसी मिलावट के लिखा, जो सच था वही लिखा, और इसीलिए… यह केवल किताब नहीं है, देश की राजनीति का संदर्भ ग्रंथ है! यही वजह है कि अभिमनोज के समाचार विश्लेषणों का, विचारों का, जानकारियों का कई मीडिया हाऊस ने अनेक बार प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष उपयोग किया है!
जब वे लिखते हैं कि… बढ़ रहा है इंटरनेट पॉलिटिक्स का दबदबा! तो वे बीसवीं और इक्कीसवीं सदी की राजनीति में आए बड़े बदलाव को दर्शाते हैं कि किस तरह से इंटरनेट देश की राजनीति को प्रभावित कर रहा है और भविष्य क्या है?
यही नहीं… मोबाइल मीडिया: प्रिंट मीडिया के लिए सवालिया निशान? के माध्यम से वे बदलती तकनीक के साथ प्रिंट मीडिया के लिए बढ़ते खतरों को रेखांकित करते हैं!
जब वे जानना चाहते हैं कि… माना की पीएम मोदी बहादुर हैं, पर प्रेस से क्यों दूर हैं? तो वे पीएम नरेन्द्र भाई मोदी के प्रेस के प्रति अजीब व्यवहार को दर्शाते हुए इशारो-इशारों में बहुत कुछ कह जाते हैं!
इस वक्त देश में सर्वे के नाम पर जो कुछ हो रहा है उसकी साफ तस्वीर पेश करती है उनकी कलम… मध्यप्रदेश का इतना शानदार सर्वे तो भाजपा भी नहीं कर पाती!
भाजपा का सुरक्षा कवच बनी मायावती की एकला चालो नीति! में अभिमनोज ने साफ दर्शा दिया कि जब तक यूपी में मायावती विपक्ष के साथ नहीं आएगी तब तक भाजपा की कामयाबी रूक नहीं पाएगी, जब उपचुनाव में मायावती ने सपा को समर्थन दिया तो भाजपा हार गई और यह साबित हो गया कि यूपी में विपक्ष की हार का एकमात्र कारण था- मायावती की एकला चालो नीति!
हर बात को, हर बयान को, हर नारे को सियासी नजरिए से देखने वालों को करारा जवाब है… किसी दल का नारा नहीं है- भारत माता की जय! भारत माता की जय के नारे को लेकर, हर अच्छी बात को गंदे राजनीतिक चश्में से देखने के अभ्यस्त नेता अक्सर प्रश्रचिन्ह के घेरे में खड़े कर देते हैं, लेकिन सच्चाई तो यही है कि… किसी राजनीतिक दल का नारा नहीं है- भारत माता की जय… यह तो देशभक्ति की भावना है! धर्म, समाज, राजनीतिक दल आदि व्यक्तिगत आस्था की स्वतंत्रताएं हैं, लेकिन राष्ट्रभक्ति तो सार्वजनिक स्वाभिमान है, इस पर किसी को एतराज क्यों होना चाहिए? इसलिए देशभक्ति की भावना को प्रदर्शित करनेवाले गीत, संगीत, नारों, चिन्हों आदि को लेकर बेवजह तर्क-कुतर्क करने के बजाय इस पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि इनका सम्मान बना रहे… इनकी मर्यादा बनी रहे, क्योंकि… भारत माता की जय में ही हमारी भी जय है!
यही नहीं, अभिमनोज लिखते हैं कि… सम्मान से कहो, वंदे मातरम, स्वाभिमान से कहो- हम भारतीय हैं! समय-समय पर कुछ नेता जानबुझ कर अपने समाज… अपने वर्ग… अपने लोगों को, कुतर्कों के आधार पर अलग-अलग व्याख्याएं करके भड़काते रहे हैं, जबकि… देश का सम्मान करना… राष्ट्र को सलाम करना, किसी भी समाज… किसी भी वर्ग में वर्जित नहीं है! देश का सम्मान करना किसी दल विशेष का घोषणा-पत्र नहीं है कि उस दल विशेष का विरोध करने के लिए कुतर्क किए जाएं! विश्व में भारत एकमात्र ऐसा देश है जहां सभी धर्मों… सभी वर्गों… सभी समाजों को समानता का अधिकार प्राप्त है… ऐसे महान राष्ट्र को सलाम करने में क्या बुराई है? इसलिए हर भारतीय को सम्मान से कहना चाहिए… वंदे मातरम! स्वाभिमान से कहो… हम भारतीय हैं!
राजनेता अक्सर जनता को नासमझ समझते हैं, लेकिन जब चुनावों के नतीजे आते हैं तब उन्हें अपनी भूल का अहसास होता है, लेकिन तब तक समय हाथ से निकल चुका होता है, और इसीलिए अभिमनोज कहते हैं कि… राजनेता सोचें कि क्या सोच रहा है युवा? राजनीतिक इतिहास गवाह है… हर आंदोलन युवा सोच से शुरू होता है… देश की राजनीतिक दिशा बदलनेवाले आपातकाल से लेकर राममंदिर आंदोलन तक में युवाओं की सोच और भूमिका बेहद महत्वपूर्ण रही है! इस सदी की भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग में भी युवाओं की खास भूमिका रही है, इसलिए राजनेता सोचे और समझें कि… देश का युवा क्या सोच रहा है? और क्या समझ रहा है?
देश की राजनीति के कल, आज और कल को लेकर अक्सर अभिमनोज से चर्चा होती रहती है और उनका स्पष्ट नजरिया उनके लेखन में झलकता है, और इसीलिए… मेरा विश्वास है कि उनके विचारों का यह संकलन राजनीति के बदलते रंगों को प्रदर्शित करने वाला श्रेष्ठ संदर्भ ग्रंथ साबित होगा!
* लोकतंत्र का स्पंदन (Moments of Democracy)
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