परीक्षा को उत्सव की तरह लिया जाए प्रधानमंत्री श्री मोदी
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के कार्यक्रम परीक्षा पे चर्चा में राज्यपाल स्कूली बच्चों के साथ आभासी माध्यम से शामिल हुए
मध्यप्रदेश के राज्यपाल श्री मंगुभाई पटेल भोपाल स्थित स्कूली बच्चों के साथ राजभवन में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के स्कूली बच्चों के साथ संवाद की पहल छात्रों के लिए परीक्षापे चर्चा कार्यक्रममें आभासी माध्यम से शामिल हुए। राज्यपाल के साथ भोपाल से शासकीय महाराणा प्रताप उच्चतर माध्यमिक विद्यालय भोपाल, केंद्रीय विद्यालय क्रमांक एक और जवाहर नवोदय विद्यालय के छात्र-छात्राएँ शामिल हुए।
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने पूछे गए प्रश्नों के उत्तर में कहा कि परीक्षा को उत्सव की तरह लिया जाना चाहिए। मन को स्थिर रखते हुए परीक्षा देने पर परिणाम हमेशा अच्छे होते हैं। उन्होंने कहा कि हर व्यक्ति में विशेष प्रतिभा और विशिष्टता होती है, उसकी आत्म अनुभूति आत्म-विश्वास के लिए आवश्यक है। उन्होंने कहा कि बाहरी बातों पर अमल करने से पहले अपने भीतर के गुणों को पहचान कर वह करिये जो वर्तमान की जरूरत हो। उन्होंने भूमि का उदाहरण देते हुए समझाया कि वह अंतर्निहित गुणों के आधार पर ही बीजों को पल्लवित करती है। उन्होंने कहा कि शिक्षण के माध्यम बदलना विकास का क्रम है। आज ज्ञान के असीमित साधन हैं। आवश्यकता उसे अनुशासन में सीमित करने की है। ऑनलाइन और ऑफलाइन माध्यमों में संयोजन की है। असीमित ज्ञान को प्राप्त करने के लिए ऑनलाइन और उसे फैलाने और बढ़ाने के लिए ऑफलाइन का उपयोग किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति सम्मान के साथ 21वीं सदी से जुड़ने का अवसर है। उन्होंने आस-पास के परिवेश के अवलोकन से अनुभवों को आत्मसात करने, उनसे जुड़ने के लिए प्रेरित करते हुए बताया कि ऐसा करने से निराशा नहीं होगी। स्मरण शक्ति मज़बूत और विस्तारित होगी। उन्होंने कहा कि प्रतिस्पर्धा जिंदगी को आगे बढ़ाने की सबसे बड़ी सौगात है। वर्तमान पीढ़ी सौभाग्यशाली है कि उसे कड़ी प्रतिस्पर्धा के साथ ही अनेक अवसर भी मिल रहे हैं। जरूरत अवसर को व्यर्थ नहीं जाने देने के भाव की है, चुनौतियों को ललकारने की है। विद्यार्थियों से कहा कि वे परीक्षा को पत्र लिखे और बताएं कि उन्होंने उसको हराने के लिए कितनी तैयारियाँ की हैं। इससे उन्हें नया उत्साह और विश्वास मिलेगा। उन्होंने आत्म अवलोकन द्वारा स्वयं के लिए अनुकूल वातावरण के लिए समय की उपयोगिता को आचरण में लाने की जरूरत बताई। साथ ही विषयों का विश्लेषण करते रहने के लिए कहा। उन्होंने कहा कि आनंद की अनुभूति के लिए गुणों का पुजारी होना जरूरी है। मन चंचल होता है। मन के सामने सदैव दो विकल्प होते हैं प्रियस्कर और श्रेयस्कर। मन को स्थिर रखने के लिए उसे श्रेयस्कर की ओर ले जाने का प्रयास किया जाना चाहिए। ऐसा करने से एकाग्रता मजबूत होती है, जो पढ़ते और करते हैं, वह स्मृति में अंकित हो जाता है। उन्होंने कहा कि जीवन में वर्तमान की आवश्यकताओं को पूरा करने वालों के सामने भविष्य का प्रश्न कभी नहीं खड़ा होता है।
परीक्षा पे चर्चा का आयोजन तालकटोरा इनडोर स्टेडियम नई दिल्ली में किया गया था। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के विभिन्न आयामों पर छात्र-छात्राओं द्वारा मॉडल, कलाकृतियों की प्रदर्शनी भी लगाई गई थी। कार्यक्रम में शिक्षा मंत्री श्री धर्मेंद्र प्रधान भी मौजूद थे। इस अवसर पर अभिभावकों, शिक्षकों और स्कूली बच्चों ने प्रत्यक्ष और आभासी माध्यम से अपनी समस्याएँ और जिज्ञासाएँ प्रस्तुत की।