कोई यूं ही ‘नरोत्तम’ नही बन जाता …साहसिक राजनेता,समर्पित जनसेवक डॉ नरोत्तम मिश्रा
बृजेश द्विवेदी-( लेखक: वरिष्ठ पत्रकार हैं )
भारतीय जनता पार्टी के कद्दावर नेता ,चतुर व साहसिक राजनेता प्रदेश के गृह मंत्री डॉ .नरोत्तम मिश्रा का 15 अप्रेल को जन्मदिन है। ऐसे बहुत कम लोग होते हैं जो अपने नाम को अपने व्यक्तित्व से सार्थक करते हैं ।लेकिन डॉ नरोत्तम मिश्रा ऐसे ही बिरले लोगो में शामिल हैं जिन्होंने अपने नाम नरोत्तम यानी जो नरो में उत्तम को पूरी तरह सार्थक किया है।लेकिन जैसा कहा भी जाता है कि कोई यूं ही नरोत्तम नही हो जाता है। सच भी है। नरोत्तम बनने के लिए त्याग,परिश्रम,संयम और अनुशासन के कठिन व्रत का पालन करना होता है ,जो सब क्या अधिकांश के लिए संभव नही है।
आज डॉ नरोत्तम मिश्रा के जन्मदिन पर उनके व्यक्तिव की उन गहराइयों तक पहुंचने का प्रयास करेंगे, जिसने उन्हें देश और प्रदेश की राजनीति के चमकते सितारो की कतार में तो खड़ा कर ही दिया साथ ही दुर्लभ साहसिक फैसले लेने वाले दुर्लभ राजनेताओं में भी शामिल करा दिया।
डॉ. नरोत्तम मिश्रा का जन्म 15 अप्रैल, 1960 को मध्य प्रदेश के ग्वालियर जिले में हुआ था। स्व. डॉ. शिवदत्त शर्मा के पुत्र डॉ. नरोत्तम मिश्रा बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि और आकर्षित करने की कला के धनी थे। स्कूली शिक्षा के बाद उन्होंने 1977-78 से जीवाजी विश्वविद्यालय, ग्वालियर में छात्र राजनीति से अपनी राजनीति की शुरुआत की। शुरू से ही भाजपा की विचारधारा ने उन्हें प्रभावित किया, इसलिए वह उससे जुड़ गए। वह भाजपा संगठन में कई पदों पर रहे । उनका परिश्रम व सेवा भाव देख पार्टी ने उन्हें वर्ष 1990 में विधायक का टिकट दिया। वह पहली बार में ही विधानसभा पहुँच गए। उसके बाद से आज तक तीन दशकों से अधिक समय से वह लगातार विधायक हैं। पांच बार के मंत्री भी हैं।वर्तमान में वे प्रदेश सरकार में गृह,जेल , विधि व संसदीय कार्य जैसे महत्वपूर्ण विभाग कुशलता पूर्वक संभाल रहे है।
अब बात करते हैं डॉ मिश्रा के व्यक्तित्व के उन समग्र गुणों की जिन्होंने उन्हें राजनीति का सितारा बनाने के साथ ही लोगों के दिलो में बसा दिया।
राजनीति के निपुण योद्धा डॉ नरोत्तम मिश्रा के व्यक्तित्व का सबसे खास पहलू है, कड़े और साहसिक फैसले।डॉ मिश्रा को जो लोग जानते हैं, उन्हें मालूम है कि वह जनहित व न्याय हित मे जोखिम भरे फैसले लेने से एक पल भी नही हिचकिचाते हैं। लव जिहाद कानून लाने की बात हो या खरगोन में हुए दंगो के बाद कार्यवाई की, डॉ मिश्रा ने आलोचनाओं की परवाह किए बिना कढ़े फैसले लिए। उन्होंने दंगा होने के अगले ही दिन सार्वजनिक रूप से कहा था कि जिन दंगाइयों ने पत्थर बाजी की है उनके घर के पत्थर निकाल लिए जायेगे।उसके बाद पुलिस ने जो कार्यवाई की वह नज़ीर बन गयी। उस फैसले का ही असर है कि आज प्रदेश में दंगाई हाथ में पत्थर उठाने से पहले एक बार सोचते हैं।हालांकि उन्हें इसके लिए राजनीतिक विरोध झेलना पड़ा ।आलोचना भी हुई। लेकिन वह अपने फैसले से नही डिगे।यह तो मात्र कुछ उदाहरण हैं। लगातार 6 बार से विधायक व पांच बार से मंत्री पद संभाल रहे डॉ मिश्रा की पहचान ही साहसिक व जोखिम भरे फैसले लेने वाले राजनेता की ही है।
वैसे कहते भी है कि सच्चे जनसेवक का एक बड़ा गुण जनहित में खुद का नफा नुकसान देखे बिना साहसिक फैसला लेना भी होता है। जो यह नहीं कर पाता वो सच्चा जनसेवक भी नहीं हो सकता ।डॉ मिश्रा साहसिक फैसले लेने वाले राजनेता तो है ही , सच्चे व समर्पित जन सेवक भी हैं।ऐसे कितने राजनेता होंगे जिन्होंने आम आदमी की जान बचाने में अपनी जान की बाजी लगा दी होगी। ऐसे नाम उंगलियों में गिने जा सकते हैं। लेकिन इन दुर्लभ नामो में डॉ मिश्रा का नाम भी आता है।देश और दुनिया ने देखा है कि अपनी विधानसभा क्षेत्र दतिया में आयी भीषण बाढ़ में फसे लोगो को बचाने के लिए डॉ मिश्रा खुद कैसे जान जोखिम में डाल कर बोट लेकर पहुंच गए थे और बोट खराब होने पर जान की बाजी लगाकर कैसे हेलीकाप्टर की मदद से सभी को बचाया था। ऐसे ही जोखिम में खुद को डाल कर सेवा करते दुनिया ने उन्होंने कोरोना काल मे देखा था। जब लोग कोरोना की पहली लहर में दहशत में घरों में दुबके थे तब डॉ मिश्रा पीपी किट पहनकर कोरोना मरीजों का हौंसला बढ़ाने पहुंच जाते थे। उनके इलाज की व्यवस्था देखते थे। यह वह समय था जब कोरोना पीड़ितों से उनके परिवार जनों ने भी दहशत के कारण दूरी बना ली थी। इस प्रकार के औऱ भी कई उदाहरण हैं।
डॉ मिश्रा संकट के समय पीड़ितों के साथ खड़े दिखते है।यही कारण है कि डॉ मिश्रा को लोग दादा के नाम से भी पुकारते है। वह दादा की भूमिका निभाते भी है ।वह पीड़ितों को हमेशा यह कहकर ढांढस बंधाते है..चिंता मत करना..जान लगा देंगे ओर वह ऐसा ही करते भी है।
सेवा व समर्पण का ऐसा भाव आज के समय मे बिरले राजनेताओं में ही देखने में आता है
साहसिक राजनेता और समर्पित जनसेवक के अलावा
डॉ. नरोत्तम मिश्रा का एक और प्रभावित करने वाला गुण है अनुशासन का। हालांकि यह उनका व्यक्तिगत नियम है।लेकिन उससे सीखा जा सकता है , इसलिए उसकी चर्चा भी जरूरी है।
डॉ. मिश्रा के प्रतिदिन की दिनचर्या का समय तय है। कब क्या करना है? वह किसी भी हालत में अपने अनुशासन को भंग नही करते हैं। उनका जीवन इतना अनुशासित है कि समय देखकर उनके जानने वाले लोग बता देते हैं कि दादा इस समय कहां होंगे और क्या कर रहे होंगे। जिस समय पर जो तय है , नरोत्तम जी उस समय वही करेंगे। चाहे परिस्थितियां कुछ भी हो ? यह अनुशासन ही है जिसने आज भी उन्हें इतना स्वस्थ और ऊर्जावान बना रखा है।
अंत मे उनके जन्मदिन पर मेरी यही कामना है कि राजनीति के पुरोधा सच्चे जनसेवक राजनीति में ध्रुव तारे की तरह चमकने वाले डॉ.नरोत्तम मिश्रा शतायु हो , पीतांबरा माई की कृपा उन पर हमेशा इसी तरह बनी रहे।
अपनी बात का विराम में मशहूर कविता की इन पंक्तियों से करना चाहूंगा…
कर्मवीर के आगे पथ का ,
हर पत्थर साधक बनता है।
दीवारें भी दिशा बतातीं,
जब मानव आगे बढ़ता है।
( लेखक: वरिष्ठ पत्रकार हैं )