संसदीय लोकतंत्र में कानून की संवैधानिक वैधता न्यायालय ही प्रमाणित कर सकता है- आशुतोष वार्ष्णेय
संसदीय लोकतंत्र में कानून की संवैधानिक वैधता न्यायालय ही प्रमाणित कर सकता है- आशुतोष वार्ष्णेय
भोपाल। ब्राउन युनिवर्सिटी अमेरिका में अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन, समाज विज्ञान एवं राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर, जाने-माने राजनीति विज्ञानी और स्तंभकार आशुतोष वार्ष्णेय ने माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय भोपाल में सोमवार को मीडिया शिक्षकों के साथ संसदीय लोकतंत्र और संविधान विषय पर व्याख्यान दिया। प्रो. आशुतोष ने कहा कि चुनाव के बिना लोकतंत्र नहीं चलता परंतु चुनाव ही लोकतंत्र नहीं चलाता है, यह हमें समझना होगा। निर्वाचन प्रक्रिया के अतिरिक्त भी कई महत्वपूर्ण बातें हैं, जो लोकतंत्र को सार्थक और परिपक्व रखती हैं।
अपने संक्षिप्त व्याख्यान में प्रो. आशुतोष ने अमेरिका में अश्वेत क्रांति के अग्रदूत मार्टिन लूथर किंग के समारक पर अंकित उस कथन का विशेष रूप से उल्लेख किया जिसमें उन्होंने कहा था कि वे अपने जीवन में प्रभु यीशु से धर्म सीखे हैं तो महात्मा गांधी से प्रभावशाली अहिंसक प्रतिरोध। प्रो. आशुतोष ने भारत एवं अमेरिकी संसदीय लोकतंत्र की महत्वपूर्ण घटनाओं और मुद्दों की चर्चा करते हुए अमेरिका में नस्लीय भेदभाव के खिलाफ अहिंसक क्रांति की सफलता की कहानी बयां की। उन्होंने कहा कि संसदीय प्रणाली में करीब मात्र 37 प्रतिशत जनता के वोट पाकर भी सरकार बन सकती है और देश के लिए कानून बनाए या बदले जा सकते हैं, परंतु कोई भी कानून संविधान सम्मत है या नहीं इसका निर्णय केवल न्यायपालिका ही कर सकता है, इसका अधिकार न तो विधायिका को है और न ही जनमत को। न्यायपालिका एक तरह से बहुसंख्यक राजनीति के प्रति प्रतिपक्षी भूमिका में होती है।
संविमर्श में विश्वविद्यालय के कुलपति श्री दीपक तिवारी ने कहा कि महात्मा गांधी, बाबा अंबेडकर और नेहरू जी के विजन की वजह से भारतीय नागरिकों को वे अधिकार 1950 में ही मिल गए थे जो अमेरिकी लोगों को करीब डेढ़ दशक बाद मिले, यह हमारे संसदीय लोकतंत्र के लिए गौरव की बात है।