मन की बात की 99वीं कड़ी में प्रधानमंत्री के सम्बोधन का मूल पाठ

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 30 अप्रैल को होगा सौवें (100वें) ‘मन की बात’ कार्यक्रम

 

 

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज मन की बात में कहा की मेरे प्यारे देशवासियो, ‘मन की बात’ में आप सभी का एक बार फिर बहुत-बहुत स्वागत है। आज इस चर्चा को शुरू करते हुए मन-मस्तिष्क में कितने ही भाव उमड़ रहे हैं। हमारा और आपका ‘मन की बात’ का ये साथ, अपने निन्यानवें (99वें) पायदान पर आ पहुँचा है। आम तौर पर हम सुनते हैं कि निन्यानवें (99वें) का फेर बहुत कठिन होता है। क्रिकेट में तो ‘Nervous Nineties’ को बहुत मुश्किल पड़ाव माना जाता है। लेकिन, जहाँ भारत के जन-जन के ‘मन की बात’ हो, वहाँ की प्रेरणा ही कुछ और होती है। मुझे इस बात की भी खुशी है कि ‘मन की बात’ के सौवें (100वें) episode को लेकर देश के लोगों में बहुत उत्साह है। मुझे बहुत सारे सन्देश मिल रहे हैं, फोन आ रहे हैं। आज जब हम आज़ादी का अमृतकाल मना रहे हैं, नए संकल्पों के साथ आगे बढ़ रहे हैं, तो सौवें (100वें) ‘मन की बात’ को लेकर, आपके सुझावों, और विचारों को जानने के लिए मैं भी बहुत उत्सुक हूँ। मुझे, आपके ऐसे सुझावों का बेसब्री से इंतज़ार है। वैसे तो इंतज़ार हमेशा होता है लेकिन इस बार ज़रा इंतज़ार ज्यादा है। आपके ये सुझाव और विचार ही 30 अप्रैल को होने वाले सौवें (100वें) ‘मन की बात’ को और यादगार बनाएँगे।

मेरे प्यारे देशवासियो, ‘मन की बात’ में हमने ऐसे हजारों लोगों की चर्चा की है, जो दूसरों की सेवा के लिए अपना जीवन समर्पित कर देते हैं। कई लोग ऐसे होते हैं जो बेटियों की शिक्षा के लिए अपनी पूरी पेंशन लगा देते हैं, कोई अपने पूरे जीवन की कमाई पर्यावरण और जीव-सेवा के लिए समर्पित कर देता है। हमारे देश में परमार्थ को इतना ऊपर रखा गया है कि दूसरों के सुख के लिए, लोग, अपना सर्वस्व दान देने में भी संकोच नहीं करते। इसलिए तो हमें बचपन से शिवि और दधीचि जैसे देह-दानियों की गाथाएँ सुनाई जाती हैं।

साथियो, आधुनिक Medical Science के इस दौर में Organ Donation, किसी को जीवन देने का एक बहुत बड़ा माध्यम बन चुका है। कहते हैं, जब एक व्यक्ति मृत्यु के बाद अपना शरीर दान करता है तो उससे 8 से 9 लोगों को एक नया जीवन मिलने की संभावना बनती है। संतोष की बात है कि आज देश में Organ Donation के प्रति जागरूकता भी बढ़ रही है। साल 2013 में, हमारे देश में, Organ Donation के 5 हजार से भी कम cases थे, लेकिन 2022 में, ये संख्या बढ़कर, 15 हजार से ज्यादा हो गई है। Organ Donation करने वाले व्यक्तियों ने, उनके परिवार ने, वाकई, बहुत पुण्य का काम किया है।

साथियो, मेरा बहुत समय से मन था कि मैं ऐसा पुण्य कार्य करने वाले लोगों के ‘मन की बात’ जानूं और इसे देशवासियों के साथ भी share करूं। इसलिए आज ‘मन की बात’ में हमारे साथ एक प्यारी सी बिटिया, एक सुंदर गुडिया के पिता और उनकी माता जी हमारे साथ जुड़ने जा रहे हैं। पिता जी का नाम है सुखबीर सिंह संधू जी और माता जी का नाम है सुप्रीत कौर जी, ये परिवार पंजाब के अमृतसर में रहते हैं। बहुत मन्नतों के बाद उन्हें, एक बहुत सुंदर गुडिया, बिटिया हुई थी। घर के लोगों ने बहुत प्यार से उसका नाम रखा था – अबाबत कौर। अबाबत का अर्थ, दूसरे की सेवा से जुड़ा है, दूसरों का कष्ट दूर करने से जुड़ा है। अबाबत जब सिर्फ उनतालीस (39) दिन की थी, तभी वो यह दुनिया छोड़कर चली गई। लेकिन सुखबीर सिंह संधू जी और उनकी पत्नी सुप्रीत कौर जी ने, उनके परिवार ने, बहुत ही प्रेरणादायी फैसला लिया। ये फैसला था – उनतालीस (39) दिन की उम्र वाली बेटी के अंगदान का, Organ Donation का। हमारे साथ इस समय phone line पर सुखबीर सिंह और उनकी श्रीमती जी मौजूद हैं। आइये, उनसे बात करते हैं।

प्रधानमंत्री जी – सुखबीर जी नमस्ते।

सुखबीर जी – नमस्ते माननीय प्रधानमंत्री जी। सत श्री अकाल

प्रधान मंत्री जी – सत श्री अकाल जी, सत श्री अकाल जी, सुखबीर जी मैं आज ‘मन की बात’ के सम्बन्ध में सोच रहा था तो मुझे लगा कि अबाबत की बात इतनी प्रेरक है वो आप ही के मुँह से सुनुं क्योंकि घर में बेटी का जन्म जब होता है तो अनेक सपने अनेक खुशियाँ लेकर आता है, लेकिन बेटी इतनी जल्दी चली जाए वो कष्ट कितना भयंकर होगा उसका भी मैं अंदाज़ लगा सकता हूँ। जिस प्रकार से आपने फैसला लिया, तो मैं सारी बात जानना चाहता हूँ जी।

सुखबीर जी – सर भगवान ने बहुत अच्छा बच्चा दिया था हमें, बहुत प्यारी गुडिया हमारे घर में आई थी। उसके पैदा होते ही हमें पता चला कि उसके दिमाग में एक ऐसा नाड़ियों का गुच्छा बना हुआ है जिसकी वजह से उसके दिल का आकार बड़ा हो रहा है। तो हम हैरान हो गए कि बच्चे की सेहत इतनी अच्छी है, इतना खुबसूरत बच्चा है और इतनी बड़ी समस्या लेकर पैदा हुआ है तो पहले 24 दिन तक तो बहुत ठीक रहा बच्चा बिलकुल normal रहा। अचानक उसका दिल एकदम काम करना बंद हो गया, तो हम जल्दी से उसको हॉस्पिटल लेके गए, वहाँ, डॉक्टरों ने उसको revive तो कर दिया लेकिन समझने में टाईम लगा कि इसको क्या दिक्कत आई इतनी बड़ी दिक्कत की छोटा सा बच्चा और अचानक दिल का दौरा पड़ गया तो हम उसको इलाज के लिए PGI चंडीगढ़ ले गए। वहां बड़ी बहादुरी से उस बच्चे ने इलाज़ के लिए संघर्ष किया। लेकिन बीमारी ऐसी थी कि उसका इलाज़ इतनी छोटी उम्र में संभव नहीं था। डॉक्टरों ने बहुत कोशिश की कि उसको revive करवाया जाए अगर छ: महीने के आस-पास बच्चा चला जाए तो उसका operation करने की सोची जा सकती थी। लेकिन भगवान को कुछ और मंजूर था, उन्होंने, केवल 39 days की जब हुई तब डॉक्टर ने कहा कि इसको दोबारा दिल का दौरा पड़ा है अब उम्मीद बहुत कम रह गई है। तो हम दोनों मियाँ-बीवी रोते हुए इस निर्णय पे पहुंचे कि हमने देखा था उसको बहादुरी से जूझते हुए बार बार ऐसे लग रहा था जैसे अब चला जाएगी लेकिन फिर revive कर रही थी तो हमें लगा कि इस बच्चे का यहाँ आने का कोई मकसद है तो उन्होंने जब बिलकुल ही जवाब दे दिया तो हम दोनों ने decide किया कि क्यों न हम इस बच्चे के organ donate कर दे। शायद किसी और की जिंदगी में उजाला आ जाए, फिर हमने PGI के जो administrative block है उनमे संपर्क किया और उन्होंने हमें guide किया कि इतने छोटे बच्चे की केवल kidney ही ली जा सकती है। परमात्मा ने हिम्मत दी गुरु नानक साहब का फलसफा है इसी सोच से हमने decision ले लिया।

प्रधान मंत्री जी– गुरुओं ने जो शिक्षा दी है जी उसे आपने जीकर के दिखाया है जी। सुप्रीत जी है क्या ? उनसे बात हो सकती है ?

सुखबीर जी– जी सर।

सुप्रीत जी– हेल्लो।

प्रधान मंत्री जी– सुप्रीत जी मैं आपको प्रणाम करता हूँ

सुप्रीत जी– नमस्कार सर नमस्कार, सर ये हमारे लिए बड़ी गर्व की बात है कि आप हमसे बात कर रहे हैं।

प्रधान मंत्री जी– आपने इतना बड़ा काम किया है और मैं मानता हूँ देश ये सारी बातें जब सुनेगा तो बहुत लोग किसी की जिंदगी बचाने के लिए आगे आयेंगे। अबाबत का ये योगदान है, ये बहुत बड़ा है जी।

सुप्रीत जी– सर ये भी गुरु नानक बादशाह जी शायद बक्शीश थी कि उन्होंने हिम्मत दी ऐसा decision लेने में।

प्रधान मंत्री जी– गुरुओं की कृपा के बिना तो कुछ हो ही नहीं सकता जी।

सुप्रीत जी– बिलकुल सर, बिलकुल।

प्रधान मंत्री जी– सुखबीर जी जब आप अस्पताल में होंगे और ये हिला देने वाला समाचार जब डॉक्टर ने आपको दिया, उसके बाद भी आपने स्वस्थ मन से आपने और आपकी श्रीमती जी ने इतना बड़ा निर्णय किया, गुरुओं की सीख तो है ही है कि आपके मन में इतना बड़ा उदार विचार और सचमुच में अबाबत का जो अर्थ सामान्य भाषा में कहें तो मददगार होता है। ये काम कर दिया ये उस पल को मैं सुनना चाहता हूँ।

सुखबीर जी– सर actually हमारे एक family friend हैं प्रिया जी उन्होंने अपने organ donate किये थे उनसे भी हमें प्रेरणा मिली तो उस समय तो हमें लगा कि शरीर जो है पञ्च तत्वों में विलीन हो जाएगा। जब कोई बिछड़ जाता है चला जाता है तो उसके शरीर को जला दिया जाता है या दबा दिया जाता है, लेकिन, अगर उसके organ किसी के काम आ जाएँ, तो ये भले का ही काम है, और उस समय हमें, और गर्व महसूस हुआ, जब doctors ने, ये बताया हमें, कि आपकी बेटी, India की youngest donar बनी है जिसके organ successfully transplant हुए, तो हमारा सर गर्व से ऊँचा हो गया, कि जो नाम हम अपने parents का, इस उम्र तक नहीं कर पाए, एक छोटा सा बच्चा आ के इतने दिनों में हमारा नाम ऊँचा कर गया और इससे और बड़ी बात है कि आज आपसे बात हो रही है इस विषय पे। हम proud feel कर रहे हैं।

प्रधान मंत्री जी – सुखबीर जी, आज आपकी बेटी का सिर्फ एक अंग जीवित है, ऐसा नहीं है। आपकी बेटी मानवता की अमर-गाथा की अमर यात्री बन गई है। अपने शरीर के अंश के जरिए वो आज भी उपस्थित है। इस नेक कार्य के लिए, मैं, आपकी, आपकी श्रीमती जी की, आपके परिवार की, सराहना करता हूं।

सुखबीर जी– Thank You sir.

साथियो, organ donation के लिए सबसे बड़ा जज्बा यही होता है कि जाते-जाते भी किसी का भला हो जाए, किसी का जीवन बच जाए। जो लोग, organ donation का इंतजार करते हैं, वो जानते हैं, कि, इंतजार का एक-एक पल गुजरना, कितना मुश्किल होता है। और ऐसे में जब कोई अंगदान या देहदान करने वाला मिल जाता है, तो उसमें, ईश्वर का स्वरूप ही नजर आता है। झारखंड की रहने वाली स्नेहलता चौधरी जी भी ऐसी ही थी जिन्होंने ईश्वर बनकर दूसरों को जिंदगी दी। 63 वर्ष की स्नेहलता चौधरी जी, अपना heart, kidney और liver, दान करके गईं। आज ‘मन की बात’ में, उनके बेटे भाई अभिजीत चौधरी जी हमारे साथ हैं। आइये उनसे सुनते हैं।

प्रधानमंत्री जी- अभिजीत जी नमस्कार।

अभिजीत जी- प्रणाम सर।

प्रधानमंत्री जी- अभिजीत जी आप एक ऐसी माँ के बेटे हैं जिसने आपको जन्म देकर एक प्रकार से जीवन तो दिया ही, लेकिन और जो अपनी मृत्यु के बाद भी आपकी माता जी कई लोगों को जीवन देकर गईं। एक पुत्र के नाते अभिजीत आप जरूर गर्व अनुभव करते होंगे

अभिजीत जी – हाँ जी सर।

प्रधानमंत्री जी- आप, अपनी माता जी के बारे में जरा बताइये, किन परिस्थितियों में organ donation का फैसला लिया गया ?

अभिजीत जी– मेरी माता जी सराइकेला बोलकर एक छोटा सा गाँव है झारखंड में, वहां पर मेरे मम्मी पापा दोनों रहते हैं। ये पिछले पच्चीस साल से लगातार morning walk करते थे और अपने habit के अनुसार सुबह 4 बजे अपने morning walk के लिए निकली थी। उस समय एक motorcycle वाले ने इनको पीछे से धक्का मारा और वो उसी समय गिर गई जिससे उनको सर पे बहुत ज्यादा चोट लगा। तुरंत हम लोग उनको सदर अस्पताल सराइकेला ले गए जहाँ डॉक्टर साहब ने उनकी मरहम पट्टी की पर खून बहुत निकल रहा था। और उनको कोई sense नहीं था। तुरंत हम लोग उनको Tata main hospital लेकर चले गए। वहां उनकी सर्जरी हुई, 48 घंटे के observation के बाद डॉक्टर साहब ने बोला कि वहां से chances बहुत कम हैं। फिर हमने उनको Airlift कर के AIIMS Delhi लेकर आये हम लोग। यहाँ पर उनकी treatment हुई तक़रीबन 7-8 दिन। उसके बाद position ठीक था एकदम उनका blood pressure काफी गिर गया उसके बाद पता चला उनकी brain death हो गई है। तब फिर डॉक्टर साहब हमें प्रोटोकॉल के साथ brief कर रहे थे organ donation के बारे में। हम अपने पिताजी, को शायद ये नहीं बता पाते कि, organ donation type का भी कोई चीज़ होता है, क्योंकि हमें लगा, वो उस बात को absorb नहीं कर पायेंगे, तो, उनके दिमाग से हम ये निकालना चाहते थे कि ऐसा कुछ चल रहा है। जैसे ही हमने उनको बोला की organ donation की बातें चल रही हैं। तब उन्होंने ये बोला की नहीं- नहीं ये मम्मी का बहुत मन था और हमें ये करना है। हम काफी निराश थे उस समय तक जब तक हमें ये पता चला था कि मम्मी नहीं बच सकेंगें, पर जैसे ही ये organ donation वाला discussion चालू हुआ वो निराशा एक बहुत ही positive side चला गया और हम काफी अच्छे एक बहुत ही positive environment में आ गए। उसको करते-करते फिर हम लोग रात में 8 बजे counseling हुई। दूसरे दिन हम लोगों ने organ donation किया । इसमें मम्मी का एक सोच बहुत बड़ा था कि पहले वो काफी नेत्रदान और इन चीजों में social activities में ये बहुत active थी। शायद यही सोच को लेकर के ये इतना बड़ा चीज़ हम लोग कर पाए, और मेरे पिताजी का जो decision making था इस चीज़ के बारे में, इस कारण से ये चीज़ हो पाया।

प्रधानमंत्री जी- कितने लोगों को काम आया अंग ?

अभिजीत जी– इनका heart, दो kidney, liver और दोनों आँख ये donation हुआ था तो चार लोगों की जान और दो जनों को आँख मिला है।

प्रधानमंत्री जी- अभिजीत जी, आपके पिता जी और माताजी दोनों नमन के अधिकारी हैं। मैं उनको प्रणाम करता हूँ और आपके पिताजी ने इतने बड़े निर्णय में, आप परिवार जनों का नेतृत्व किया, ये वाकई बहुत ही प्रेरक है और मैं मानता हूँ कि माँ तो माँ ही होती है। माँ एक अपने आप में प्रेरणा भी होती है। लेकिन माँ जो परम्पराएँ छोड़ कर के जाती हैं, वो पीढ़ी-दर-पीढ़ी, एक बहुत बड़ी ताकत बन जाती हैं। अंगदान के लिए आपकी माता जी की प्रेरणा आज पूरे देश तक पहुँच रही है। मैं आपके इस पवित्र कार्य और महान कार्य के लिए आपके पूरे परिवार को बहुत-बहुत बधाई देता हूँ। अभिजीत जी धन्यवाद् जी, और आपके पिताजी को हमारा प्रणाम जरूर कह देना।

अभिजीत जी– जरूर-जरूर, thank you.

साथियो, 39 दिन की अबाबत कौर हो या 63 वर्ष की स्नेहलता चौधरी, इनके जैसे दानवीर, हमें, जीवन का महत्व समझाकर जाते हैं। हमारे देश में, आज, बड़ी संख्या में ऐसे जरूरतमंद हैं, जो स्वस्थ जीवन की आशा में किसी organ donate करने वाले का इंतज़ार कर रहे हैं। मुझे संतोष है कि अंगदान को आसान बनाने और प्रोत्साहित करने के लिए पूरे देश में एक जैसी policy पर भी काम हो रहा है। इस दिशा में राज्यों के domicile की शर्त को हटाने का निर्णय भी लिया गया है, यानी, अब देश के किसी भी राज्य में जाकर मरीज organ प्राप्त करने के लिए register करवा पाएगा। सरकार ने organ donation के लिए 65 वर्ष से कम आयु की आयु-सीमा को भी खत्म करने का फैसला लिया है। इन प्रयासों के बीच, मेरा देशवासियों से आग्रह है, कि organ donor, ज्यादा से ज्यादा संख्या में आगे आएं। आपका एक फैसला, कई लोगों की जिंदगी बचा सकता है, जिंदगी बना सकता है।

मेरे प्यारे देशवासियो, ये नवरात्र का समय है, शक्ति की उपासना का समय है। आज, भारत का जो सामर्थ्य नए सिरे से निखरकर सामने आ रहा है, उसमें बहुत बड़ी भूमिका हमारी नारी शक्ति की है। हाल-फिलहाल ऐसे कितने ही उदाहरण हमारे सामने आये हैं। आपने सोशल मीडिया पर, एशिया की पहली महिला लोको पायलट सुरेखा यादव जी को जरुर देखा होगा। सुरेखा जी, एक और कीर्तिमान बनाते हुये वंदे भारत एक्सप्रेस की भी पहली महिला लोको पायलट बन गई हैं। इसी महीने, producer गुनीत मोंगा और Director कार्तिकी गोंज़ाल्विस उनकी Documentary ‘Elephant Whisperers’ ने Oscar जीतकर देश का नाम रौशन किया है| देश के लिए एक और उपलब्धि Bhabha Atomic Reseach Centre की Scientist, बहन ज्योतिर्मयी मोहंती जी ने भी हासिल की है। ज्योतिर्मयी जी को Chemistry और Chemical Engineering की field में IUPAC का विशेष award मिला है। इस वर्ष की शुरुआत में ही भारत की Under-19 महिला क्रिकेट टीम ने T-20 World cup जीतकर नया इतिहास रचा। अगर आप राजनीति की ओर देखेंगे, तो एक नई शरुआत नागालैंड में हुई है। नागालैंड में 75 वर्षों में पहली बार दो महिला विधायक जीतकर विधानसभा पहुंची है। इनमें से एक को नागालैंड सरकार में मंत्री भी बनाया गया है, यानि, राज्य के लोगों को पहली बार एक महिला मंत्री भी मिली हैं।

साथियो, कुछ दिनों पहले मेरी मुलाकात, उन जांबांज बेटियों से भी हुई, जो, तुर्किए में विनाशकारी भूकंप के बाद वहां के लोगों की मदद के लिए गयी थीं। ये सभी NDRF के दस्ते में शामिल थी। उनके साहस और कुशलता की पूरी दुनिया में तारीफ़ हो रही है। भारत ने UN Mission के तहत शांतिसेना में Women-only Platoon की भी तैनाती की है।

आज, देश की बेटियाँ, हमारी तीनों सेनाओं में, अपने शौर्य का झंडा बुलंद कर रही हैं। Group Captain शालिजा धामी Combat Unit में Command Appointment पाने वाली पहली महिला वायुसेना अधिकारी बनी हैं। उनके पास करीब 3 हजार घंटे का flying experience है। इसी तरह, भारतीय सेना की जांबाज captain शिवा चौहान सियाचिन में तैनात होने वाली पहली महिला अधिकारी बनी हैं। सियाचिन में जहाँ पारा माइनस सिक्सटी (-60) डिग्री तक चला जाता है, वहां शिवा तीन महीनों के लिए तैनात रहेंगी।

साथियो, यह list इतनी लम्बी है कि यहाँ सबकी चर्चा करना भी मुश्किल है। ऐसी सभी महिलाएं, हमारी बेटियां, आज, भारत और भारत के सपनों को ऊर्जा दे रही हैं। नारीशक्ति की ये ऊर्जा ही विकसित भारत की प्राणवायु है।

मेरे प्यारे देशवासियो, इन दिनों पूरे विश्व में स्वच्छ ऊर्जा, renewable energy की खूब बात हो रही है। मैं, जब विश्व के लोगों से मिलता हूँ, तो वो इस क्षेत्र में भारत की अभूतपूर्व सफलता की जरुर चर्चा करते हैं। खासकर, भारत, Solar energy के क्षेत्र में जिस तेजी से आगे बढ़ रहा है, वो अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है। भारत के लोग तो सदियों से सूर्य से विशेष रूप से नाता रखते हैं। हमारे यहाँ सूर्य की शक्ति को लेकर जो वैज्ञानिक समझ रही है, सूर्य की उपासना की जो परंपराएँ रही हैं, वो अन्य जगहों पर, कम ही देखने को मिलते हैं। मुझे ख़ुशी है कि आज हर देशवासी सौर ऊर्जा का महत्व भी समझ रहा है, और clean energy में अपना योगदान भी देना चाहता है। ‘सबका प्रयास’ की यही spirit आज भारत के Solar Mission को आगे बढ़ा रही है। महाराष्ट्र के पुणे में, ऐसे ही एक बेहतरीन प्रयास ने, मेरा ध्यान अपनी ओर खींचा है। यहाँ MSR-Olive Housing Society के लोगों ने तय किया कि वे society में पीने के पानी, लिफ्ट और लाईट जैसे सामूहिक उपयोग की चीजें, अब, solar energy से ही चलाएंगे। इसके बाद इस society में सबने मिलकर Solar Panel लगवाए। आज इन Solar Panels से हर साल करीब 90 हजार किलोवाट Hour बिजली पैदा हो रही है। इससे हर महीने लगभग 40,000 रूपये की बचत हो रही है। इस बचत का लाभ Society के सभी लोगों को हो रहा है।

साथियो, पुणे की तरह ही दमन-दीव में जो दीव है, जो एक अलग जिला है, वहाँ के लोगों ने भी, एक अद्भुत काम करके दिखाया है। आप जानते ही होंगे कि दीव, सोमनाथ के पास है। दीव भारत का पहला ऐसा जिला बना है, जो, दिन के समय सभी जरूरतों के लिए शत्-प्रतिशत Clean Energy का इस्तेमाल कर रहा है। दीव की इस सफलता का मंत्र भी सबका प्रयास ही है। कभी यहाँ बिजली उत्पादन के लिए संसाधनों की चुनौती थी। लोगों ने इस चुनौती के समाधान के लिए Solar Energy को चुना। यहाँ बंजर जमीन और कई Buildings पर Solar Panels लगाए गए। इन Panels से, दीव में, दिन के समय, जितनी बिजली की जरुरत होती है, उससे ज्यादा बिजली पैदा हो रही है। इस Solar Project से, बिजली खरीद पर खर्च होने वाले करीब, 52 करोड़ रूपये भी बचे हैं। इससे पर्यावरण की भी बड़ी रक्षा हुई है।

साथियो, पुणे और दीव उन्होंने जो कर दिखाया है, ऐसे प्रयास देशभर में कई और जगहों पर भी हो रहे हैं। इनसे पता चलता है कि पर्यावरण और प्रकृति को लेकर हम भारतीय कितने संवेदनशील हैं, और हमारा देश, किस तरह भविष्य की पीढ़ी के लिए बहुत जागृत है। मैं इस तरह के सभी प्रयासों की हृदय से सराहना करता हूँ।

मेरे प्यारे देशवासियो, हमारे देश में समय के साथ, स्थिति-परिस्थितियों के अनुसार, अनेक परम्पराएँ विकसित होती हैं। यही परम्पराएँ, हमारी संस्कृति का सामर्थ्य बढ़ाती हैं और उसे नित्य नूतन प्राणशक्ति भी देती हैं। कुछ महीने पहले ऐसी ही एक परंपरा शुरू हुई काशी में। काशी-तमिल संगमम के दौरान, काशी और तमिल क्षेत्र के बीच सदियों से चले आ रहे ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंधों को Celebrate किया गया। ‘एक भारत-श्रेष्ठ भारत’ की भावना हमारे देश को मजबूती देती है। हम जब एक-दूसरे के बारे में जानते हैं, सीखते हैं, तो, एकता की ये भावना और प्रगाढ़ होती है। Unity की इसी Spirit के साथ अगले महीने गुजरात के विभिन्न हिस्सों में ‘सौराष्ट्र-तमिल संगमम’ होने जा रहा है। ‘सौराष्ट्र-तमिल संगमम’ 17 से 30 अप्रैल तक चलेगा। ‘मन की बात’ के कुछ श्रोता जरुर सोच रहे होंगे, कि, गुजरात के सौराष्ट्र का तमिलनाडु से क्या संबंध है ? दरअसल, सदियों पहले सौराष्ट्र के अनेकों लोग तमिलनाडु के अलग-अलग हिस्सों में बस गए थे। ये लोग आज भी ‘सौराष्ट्री तमिल’ के नाम से जाने जाते हैं। उनके खान-पान, रहन-सहन, सामाजिक संस्कारों में आज भी कुछ-कुछ सौराष्ट्र की झलक मिल जाती है। मुझे इस आयोजन को लेकर तमिलनाडु से बहुत से लोगों ने सराहना भरे पत्र लिखे हैं। मदुरै में रहने वाले जयचंद्रन जी ने एक बड़ी ही भावुक बात लिखी है। उन्होंने कहा है कि – “हजार साल के बाद, पहली बार किसी ने सौराष्ट्र-तमिल के इन रिश्तों के बारे में सोचा है, सौराष्ट्र से तमिलनाडु आकर के बसे हुए लोगों को पूछा है।” जयचंद्रन जी की बातें, हजारों तमिल भाई-बहनों की अभिव्यक्ति हैं।

साथियो, ‘मन की बात’ के श्रोताओं को, मैं, असम से जुड़ी हुई एक खबर के बारे में बताना चाहता हूँ। ये भी ‘एक भारत-श्रेष्ठ भारत’ की भावना को मजबूत करती है। आप सभी जानते हैं कि हम वीर लासित बोरफुकन जी की 400वीं जयंती मना रहे हैं। वीर लासित बोरफुकन ने अत्याचारी मुग़ल सल्तनत के हाथों से, गुवाहाटी को आज़ाद करवाया था। आज देश, इस महान योद्धा के अदम्य साहस से परिचित हो रहा है। कुछ दिन पहले लासित बोरफुकन के जीवन पर आधारित निबंध लेखन का एक अभियान चलाया गया था। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि इसके लिए करीब 45 लाख लोगों ने निबंध भेजे। आपको, ये जानकर भी ख़ुशी होगी कि अब यह एक Guinness Record बन चुका है। और सबसे बड़ी बात है और जो ज्यादा प्रसन्नता की बात ये है, कि, वीर लासित बोरफुकन पर ये जो निबंध लिखे गए है उसमें करीब-करीब 23 अलग-अलग भाषाओँ में लिखा गया है और लोगों ने भेजा है। इनमें, असमिया भाषा के अलावा, हिंदी, अंग्रेजी, बांग्ला, बोडो, नेपाली, संस्कृत, संथाली जैसी भाषाओँ में लोगों ने निबंध भेजे हैं। मैं इस प्रयास का हिस्सा बने सभी लोगों की हृदय से प्रशंसा करता हूँ।

मेरे प्यारे देशवासियो, जब कश्मीर या श्रीनगर की बात होती है, तो सबसे पहले, हमारे सामने, उसकी वादियाँ और डल झील की तस्वीर आती है। हम में से हर कोई डल झील के नज़ारों का लुत्फ़ उठाना चाहता है, लेकिन, डल झील में एक और बात ख़ास है। डल झील, अपने स्वादिष्ट Lotus Stems – कमल के तनों या कमल ककड़ी, के लिये भी जानी जाती है। कमल के तनों को देश में अलग-अलग जगह, अलग-अलग नाम से, जानते हैं। कश्मीर में इन्हें नादरू कहते हैं। कश्मीर के नादरू की demand लगातार बढ़ रही है। इस demand को देखते हुए डल झील में नादरू की खेती करने वाले किसानों ने एक FPO बनाया है। इस FPO में करीब 250 किसान शामिल हुए हैं। आज ये किसान अपने नादरू को विदेशों तक भेजने लगे हैं। अभी कुछ समय पहले ही इन किसानों ने दो खेप UAE भेजी हैं। ये सफलता कश्मीर का नाम तो कर ही रही है, साथ ही इससे, सैकड़ों किसानों की, आमदनी भी बढ़ी है।

साथियो, कश्मीर के लोगों का कृषि से ही जुड़ा हुआ ऐसा ही एक और प्रयास इन दिनों अपनी कामयाबी की खुशबू फैला रहा है। आप सोच रहे होंगे कि मैं कामयाबी की खुशबू क्यों बोल रहा हूँ – बात है ही खुशबू की, सुगंध की ही तो बात है! दरअसल, जम्मू-कश्मीर के डोडा जिले में एक कस्बा है ‘भदरवाह’ ! यहाँ के किसान, दशकों से मक्के की पारंपरिक खेती करते आ रहे थे, लेकिन, कुछ किसानों ने, कुछ अलग, करने की सोची। उन्होंने, floriculture, यानी फूलों की खेती का रुख किया। आज, यहाँ के करीब 25 सौ किसान (ढाई हज़ार किसान) लैवेंडर (lavender) की खेती कर रहे हैं। इन्हें केंद्र सरकार के aroma mission से मदद भी मिली है। इस नई खेती ने किसानों की आमदनी में बड़ा इजाफ़ा किया है, और आज, लैवेंडर के साथ-साथ, इनकी सफलता की खुशबू भी, दूर-दूर तक फैल रही है।

साथियो, जब कश्मीर की बात हो, कमल की बात हो, फूल की बात हो, सुगंध की बात हो, तो, कमल के फूल पर विराजमान रहने वाली माँ शारदा का स्मरण आना बहुत स्वाभाविक है। कुछ दिन पूर्व ही कुपवाड़ा में माँ शारदा के भव्य मंदिर का लोकार्पण हुआ है। ये मंदिर उसी मार्ग पर बना है, जहां से कभी शारदा पीठ के दर्शनों के लिये जाया करते थे। स्थानीय लोगों ने इस मंदिर के निर्माण में बहुत मदद की है। मैं, जम्मू-कश्मीर के लोगों को इस शुभ कार्य के लिये बहुत-बहुत बधाई देता हूं।

मेरे प्यारे देशवासियो, इस बार ‘मन की बात’ में बस इतना ही। अगली बार, आपसे, ‘मन की बात’ के सौंवे (100वें) एपिसोड में मुलाकात होगी। आप सभी, अपने सुझाव जरूर भेजिए। मार्च के इस महीने में, हम, होली से लेकर नवरात्रि तक, कई पर्व और त्योहारों में व्यस्त रहे हैं। रमजान का पवित्र महीना भी शुरू हो चूका है। अगले कुछ दिनों में श्री राम नवमी का महापर्व भी आने वाला है। इसके बाद महावीर जयंती, Good Friday और Easter भी आएंगे। अप्रैल के महीने में हम, भारत की दो महान विभूतियों की जयंती भी मनाते हैं। ये दो महापुरुष हैं – महात्मा ज्योतिबा फुले, और बाबा साहब आंबेडकर। इन दोनों ही महापुरुषों ने समाज में भेदभाव मिटाने के लिये अभूतपूर्व योगदान दिया। आज, आजादी के अमृतकाल में, हमें, ऐसी महान विभूतियों से सीखने और निरंतर प्रेरणा लेने की जरुरत है। हमें, अपने कर्तव्यों को, सबसे आगे रखना है। साथियो, इस समय कुछ जगहों पर कोरोना भी बढ़ रहा है। इसलिये आप सभी को एहतियात बरतनी है, स्वच्छता का भी ध्यान रखना है। अगले महीने,‘मन की बात’ के सौवें (100वें) एपिसोड में, हम लोग, फिर मिलेंगे, तब तक के लिए मुझे विदा दीजिए। धन्यवाद। नमस्कार।

Exit mobile version