आश्चर्य इस बात का है कि पूरा मीडिया बचता रहा यह स्वीकार करने में कि यह हंग पार्लियामेंट है , खंडित, त्रिशंकु जनादेश है। किसी एक दल को बहुमत नहीं मिला
( सरमन नगेले )
आखिर भारत को एक गठबंधन की सरकार मिल गई। क्या अब भारत एक संतुलित निर्णयों की श्रंखला देख पाएगा? यह एक अनूठा समय होगा।
एक तरफ 5 जून को इंडियन नेशनल डेवलपमेंट इन्क्लूसिव अलायंस -इंडिया गठबंधन की बैठक हुई तो 7 जून को एनडीए – नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस की मीटिंग हुई। लेकिन ऊहापोह की स्थिति इसलिए बनी रही की कौन गठबंधन सरकार बनाने का दावा पेश कर रहा है किसी ने जल्द बाजी नहीं दिखाई बहुत सावधानी बरती । आश्चर्य इस बात का है कि पूरा मीडिया बचता रहा यह स्वीकार करने में कि यह हंग पार्लियामेंट है , खंडित, त्रिशंकु जनादेश है। किसी एक दल को बहुमत नहीं मिला।
लिहाजा यह जानना नवोदित पत्रकारों, नागरिकों और राजनीति में रुचि रखने वालों के लिए बेहद जरूरी हो जाता है की चुनाव परिणाम के सही मायने क्या हैं। आखिर लगभग संपूर्ण मीडिया से इस तथ्य की अनदेखी कैसे हो गई । जबकि लोकसभा चुनाव में भारत के मतदाता ने खंडित जनादेश दिया। किसी भी एक राजनैतिक दल को बहुमत प्राप्त नहीं हुआ।
चूँकि इस लेख के लेखक ने 4 जून को सुबह 8 से 9 के बीच एक नेशनल और उसी के रीजनल चैनल पर यह विचार प्रकट कर दिया गया था की इस बार हंग पार्लियामेंट बनने जा रही है। इसी परिपेक्ष्य में विस्तार से विमर्श करने और लिखने पर विवश होना पड़ा।
जैसे ही 6 जून को मुख्य निर्वाचन ने दोनों निर्वाचन आयुक्तों के साथ राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु से मुलाकात की। जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 73 की शर्तों के अनुरूप, भारत निर्वाचन आयोग द्वारा जारी की गई अधिसूचना की एक प्रति उन्होंने राष्ट्रपति को सौंपी, जिसमें 18वीं लोकसभा के लिए हुए आम चुनाव के परिणामस्वरूप लोकसभा हेतु चुने गए सदस्यों के नाम शामिल हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 6 जून को राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु से मुलाकात की। प्रधानमंत्री ने अपना और केन्द्रीय मंत्रिपरिषद का त्यागपत्र सौंपा। राष्ट्रपति ने त्यागपत्र स्वीकार करते हुए प्रधानमंत्री तथा उनके सहयोगियों से नई सरकार के गठन तक अपने पद पर बने रहने का अनुरोध किया।
7 जून को एनडीए के संयुक्त प्रतिनिधिमंडल ने राष्ट्रपति से मुलाक़ात कर सरकार बनाने का दावा पेश किया।
राष्ट्रपति ने संविधान के अनुच्छेद 75 (1) के तहत नरेंद्र मोदी को भारत का प्रधानमंत्री 7 जून को ही नियुक्त कर दिया।
चर्चा में क्यों?
1962 के बाद पहली बार 2024 के नतीजों के बाद कोई सरकार एक दशक तक लगातार दो कार्यकाल पूरा करने के बाद तीसरी बार सरकार में वापिस आई है।
अलबत्ता, यह परिणाम एक पार्टी के प्रभुत्व को कम करने की न केवल तसदीक करता है वरन केंद्र में एक गठबंधन सरकार की वापसी का जनादेश भी देता है।
गठबंधन सरकार क्या है?
जब लोकसभा य विधान सभा चुनाव में किसी एक राजनैतिक पार्टी को बहुमत नहीं मिलता तब कई राजनीतिक दल मिलकर सरकार बनाते हैं।
इसे गठबंधन की सरकार वैधानिक रूप से कहा जाता है।
गठबंधन की सरकार एक साझा कार्यक्रम के आधार पर राजनीतिक सत्ता और सरकार का संचालन करते हैं।
आधुनिक संसदों में गठबंधन आमतौर पर तब होता है जब किसी एक राजनीतिक दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलता।
यदि निर्वाचित सदस्यों के बहुमत वाली कई पार्टियाँ अपनी नीतियों से बहुत अधिक समझौता किये बिना एक साझा योजना पर सहमत हों, तो वे सरकार बना सकती हैं।
गठबंधन का तात्पर्य सरकार बनाने के लिये कम-से-कम दो पार्टियों के एक साथ आकर बहुमत के नंबर बताकर सरकार बनाने की पहल करना है ।
गठबंधन राजनीति की पहचान विचारधारा नहीं बल्कि व्यावहारिकता पर निर्भर रहती है।
गठबंधन की राजनीति स्थिर नहीं बल्कि गतिशील विषय है। गठबंधन के घटक और समूह अपने दल के हितों को देखते हुए कभी भी विघटित हो जाते हैं एवं नए समूह बनाकर नई सरकार बनाने की कोशिश करते हैं।
गठबंधन सरकार न्यूनतम कार्यक्रम के आधार पर कार्य करती है, जो गठबंधन के सभी सदस्यों की आकांक्षाओं को संतुष्ट करने भी सफल भी होती है और असफल भी ।
चुनाव पूर्व और चुनाव पश्चात् गठबंधन:
देखने में आता है की चुनाव पूर्व गठबंधन काफी लाभदायक होते हैं क्योंकि यह पार्टियों को संयुक्त घोषणापत्र के आधार पर मतदाताओं को लुभाने के लिये एक साझा मंच प्रदान करता है।
जबकि आम लोकसभा चुनाव 2024 में सभी दलों ने अपने -अपने घोषणा पत्र जनता के समक्ष पेश किये। ।
चुनाव-पश्चात संघ का उद्देश्य मतदाताओं को राजनीतिक सत्ता साझा करने तथा सरकार चलाने में सक्षम बनाना है।
भारत सरकार ने केन्द्र-राज्य संबंधों से संबंधित मुद्दे पर विचार के बाद भारत की राजनीति और अर्थव्यवस्था में आए परिवर्तनों को ध्यान में रखते हुए केन्द्र-राज्य संबंधों से संबंधित नए मुद्दों पर विचार करने के लिए 27 अप्रैल, 2007 को भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति मदन मोहन पुंछी की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया था।
गठबंधन पर पुंछी आयोग की सिफारिशें:-
पुंछी आयोग ने स्पष्ट नियम स्थापित किये कि राज्यपालों को त्रिशंकु विधानसभाओं में मुख्यमंत्रियों की नियुक्ति कैसे करनी चाहिये। ये दिशा-निर्देश राष्ट्रपति के लिये भी लागू हैं:-
जिस पार्टी या पार्टियों के गठबंधन को विधानसभा में व्यापक समर्थन प्राप्त हो, उसे सरकार बनाने के लिये आमंत्रित किया जाना चाहिये।
यदि कोई चुनाव पूर्व समझौता या गठबंधन पर आधारित है, तो उसे एक राजनीतिक दल माना जाना चाहिये और यदि ऐसे गठबंधन को बहुमत प्राप्त होता है, तो ऐसे गठबंधन के नेता को राज्यपाल द्वारा सरकार बनाने के लिये बुलाया जाएगा।
यदि किसी भी पार्टी या चुनाव पूर्व गठबंधन को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलता है, तो राज्यपाल को यहाँ दर्शाए गए वरीयता क्रम के आधार पर मुख्यमंत्री का चयन करना चाहिये।
चुनाव पूर्व गठबंधन करने वाले दलों का समूह सबसे अधिक सीटें जीतता है। सबसे बड़ी पार्टी द्वारा अन्य दलों के समर्थन से सरकार बनाने का दावा।
चुनाव के बाद का गठबंधन जिसमें सभी सहयोगी सरकार में शामिल होंगे।
चुनाव-पश्चात् गठबंधन जिसमें कुछ दल सरकार में शामिल होंगे तथा शेष दल निर्दलीय होंगे, जो सरकार को बाह्य समर्थन प्रदान करेंगे।
सरकारिया आयोग ने पाया था कि भारतीय संघवाद में समस्याएँ केंद्र और राज्यों के बीच परामर्श तथा संवाद की कमी के कारण उत्पन्न होती हैं।
यह पाया गया कि अंतर-राज्यीय परिषद ने तब कार्य किया जब राष्ट्रीय स्तर पर क्षेत्रीय राजनीतिक दलों की प्रमुख भूमिका थी। यह गठबंधन सरकार की भूमिका को दर्शाता है जिसमें क्षेत्रीय दलों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।
गठबंधन सरकार के गुण और दोष –
गुण: गठबंधन सरकार विभिन्न दलों को एक साथ लाकर संतुलित निर्णय लेती है तथा विभिन्न हित धारकों के हितों को संतुष्ट करती है।
भारत की विविध संस्कृतियाँ, भाषाएँ और समूह, गठबंधन सरकारों को एकदलीय सरकारों की तुलना में अधिक प्रतिनिधि एवं लोकप्रिय जनमत को प्रतिबिंबित करते हैं।
गठबंधन की राजनीति, एकदलीय सरकार की तुलना में क्षेत्रीय ज़रूरतों के प्रति अधिक सजग रहकर भारत की संघीय प्रणाली को मज़बूत बनाती है।
दोष: ये अस्थिर हैं क्योंकि गठबंधन सहयोगियों के बीच नीतिगत मुद्दों पर असहमति होने के कारण सरकार गिर सकती है।
गठबंधन सरकार में प्रधानमंत्री का अधिकार सीमित होता है क्योंकि महत्त्वपूर्ण निर्णय लेने से पहले उन्हें गठबंधन सहयोगियों से परामर्श करना आवश्यक होता है।
गठबंधन सहयोगियों के लिये ‘सुपर-कैबिनेट’ की तरह संचालन समिति, शासन में कैबिनेट के अधिकार को सीमित करती है।
गठबंधन सरकार में छोटी पार्टियाँ संसद में अपने पात्रता से अधिक की मांग करके महत्त्वपूर्ण प्रभाव डाल सकती हैं।
क्षेत्रीय दलों के नेता अपने क्षेत्र के विशिष्ट मुद्दों की वकालत करके राष्ट्रीय निर्णयों को प्रभावित करते हैं तथा गठबंधन वापसी के खतरे के तहत अपने हितों के अनुरूप कार्य करने के लिये केंद्र सरकार पर दबाव डालते हैं।
गठबंधन सरकार में, गठबंधन में शामिल सभी प्रमुख दलों के हितों के कारण मंत्रिपरिषद का विस्तार होता है।
गठबंधन सरकारों में, सदस्य अक्सर एक-दूसरे पर दोषारोपण करके गलतियों की ज़िम्मेदारी लेने से बचते हैं, इस प्रकार सामूहिक और व्यक्तिगत जवाबदेही दोनों से बचते हैं।
गठबंधन सरकारों के ऐतिहासिक संदर्भ: भारत में गठबंधन की राजनीति का इतिहास लगभग 70 साल पुराना है।
लेकिन यहाँ पिछले तीन दशक पर प्रकाश डालने का प्रयास किया है।
वर्ष 1991 के बाद से भारत में गठबंधन सरकारें देखने को मिली हैं, जहाँ अग्रणी पार्टियाँ बहुमत के आँकड़े यानि 272 सीटें प्राप्त करने से काफी दूर रही हैं।
गठबंधन सरकारों ने भारत के इतिहास में नया अध्याय लिखा है।
पी. वी. नरसिम्हा राव सरकार (1991-1996)
देवेगौड़ा सरकार (जून 1996 -अप्रैल 1997)
अटल बिहारी वाजपेयी सरकार (मार्च 1998-मई 2004)
मनमोहन सिंह सरकार (2004-2014)
नरेंद्र मोदी सरकार ( 2014 – 2024 तक 2024 में पुनः एनडीए की सरकार के रूप में में निरंतर। )
आम लोकसभा चुनाव 2024 में भारतीय जनता पार्टी को 240 सीटें मिली जो बहुमत से 32 दूर रहा। लेकिन नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस यानि एनडीए की सरकार बनने जा रही है।
अंतर्निहित चुनौतियों के बावजूद, गठबंधन सरकारें विविध मतों के लिये एक मंच प्रदान करती हैं और सर्वसम्मति से संचालित नीतियों को बढ़ावा दे सकती हैं।
पारस्परिक सम्मान, मज़बूत नेतृत्व और राष्ट्रीय प्रगति के प्रति प्रतिबद्धता प्रदर्शित करने की नींव पर निर्मित एक सुचारू रूप से कार्य करने वाला गठबंधन, एक जीवंत लोकतंत्र की जटिलताओं से निपट सकता है।
(लेखक: वरिष्ठ पत्रकार और चुनावी विशेषज्ञ हैं)