एमपीपोस्ट, 10,फरवरी 2022 ,भोपाल। देश के अन्य प्रदेश आज जब जैविक खेती की दिशा में कार्य शुरू कर रहे हैं तो मध्यप्रदेश की तारीफ करनी होगी जहाँ मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह ने वर्ष 2011 में ही जैविक कृषि नीति तैयार कर उस पर अमल शुरू कर दिया था। इसी का परिणाम है कि मध्यप्रदेश को न केवल जैविक कृषि लागू करने वाला देश के पहले प्रदेश बल्कि देश में सर्वाधिक प्रमाणित जैविक कृषि क्षेत्र वाले प्रदेश होने का गौरव भी हासिल है।
कृषि के क्षेत्र में मध्यप्रदेश की अपनी विशेषताएँ हैं और यह पिछले डेढ़ दशक में प्रमाणित भी हुआ है। इस अरसे में प्रदेश की कृषि विकास दर में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। खेती-किसानी नुकसान के जाल से बाहर निकली। अन्नदाताओं को उनकी मेहनत का फल वाजिब दामों के रूप में मिला। प्राकृतिक आपदाओं और मानसून की बेरूखी से होने वाले नुकसान के समय में सरकार के किसानों के साथ खड़े होने से प्रदेश का कृषि परिदृश्य लगातार बेहतर हुआ।
आर्गेनिक वर्ल्ड रिपोर्ट 2021 के आधार पर वर्ष 2019 में विश्व का 72.3 मिलियन हेक्टयर क्षेत्र जैविक खेती हेतु उपयोग में लिया गया है। इसमें एशिया का 5.1 मिलियन हेक्टयर क्षेत्र भी शामिल है। भारत में भी पिछले कुछ वर्षों में जैविक खेती में वृद्धि हुई है जिसमें मध्यप्रदेश जैसे राज्यों का विशेष योगदान है। इसका मुख्य कारण अधिक रासायनिक खादों एवं कीटनाशकों से होने वाला दुष्प्रभाव हैं, जिसने सरकार को इस दिशा में विचार करने के लिए प्रेरित किया।
जैविक खेती के अंतर्गत मुख्यतः खाद्यान्न फसलें, दलहन, तिलहन, सब्जियाँ तथा बागान वाली वाली फसलों का उत्पादन किया जा रहा है। इन सब फसलों में जैविक खेती का बढ़ता प्रचलन मुख्यतः उपभोक्ता की माँग पर आधारित है। उपभोक्ता की माँग मुख्यतः खाद्य उत्पाद की गुणवत्ता पर निर्भर करती है। पारम्परिक खेती में बढ़ते रसायनों का उपयोग तथा उनके कुप्रभाव, दूरगामी स्तर पर उपभोक्ता में अविश्वास का कारण बन रहे हैं।
जैविक खेती से उत्पन्न खाद्य उत्पादों की विदेशों में बढ़ती माँग भी इसके महत्त्व को प्रदर्शित करती है। मुख्यतः ऑस्ट्रेलिया, जापान, कनाडा, न्यूजीलैंड, स्विट्ज़रलैंड, इज़राइल, संयुक्त अरब अमीरात तथा वियतनाम जैसे देशों में निर्यात की संभावनाएँ बनी हैं। मुख्यमंत्री ने कृषि निर्यात पर विशेष ध्यान देने के लिये कहा है। इस दृष्टि से मध्यप्रदेश के लिये भी भविष्य में जैविक उत्पाद के निर्यात की नई संभावनाएँ बनेंगी।
जैविक खेती
प्रदेश में जैविक खेती का कुल क्षेत्र लगभग 16 लाख 37 हजार हेक्टेयर है, जो देश में सर्वाधिक है। जैविक उत्पाद का उत्पादन 14 लाख 2 हजार मी.टन रहा, जो क्षेत्रफल की भाँति ही देश में सर्वाधिक है। जैविक खेती को प्रोत्साहन स्वरूप प्रदेश में कुल 17 लाख 31 हजार क्षेत्र हेक्टेयर जैविक प्रमाणिक है, जिसमें से 16 लाख 38 हजार एपीडा से और 93 हजार हेक्टेयर क्षेत्र, पी.जी.एस. से पंजीकृत है। इस तरह पंजीकृत जैविक क्षेत्र के मामले में भी मध्यप्रदेश देश में अग्रणी है।
प्रदेश ने पिछले वित्त वर्ष में 2 हजार 683 करोड़ रुपये के मूल्य के 5 लाख मी.टन से अधिक के जैविक उत्पाद निर्यात किये हैं। प्रदेश का जैविक उत्पाद निर्यात लगातार तेजी से बढ़ रहा है। वर्ष 2020-21 में प्रदेश में 5 लाख 41 हेक्टेयर में जैविक फसलों की बोनी की गई। अब भारत सरकार की सहायता से प्रदेश में प्राकृतिक कृषि पद्धति के अंतर्गत क्लस्टर आधारित कार्यक्रम लिया गया है। इस वर्ष प्रदेश में 99 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में प्राकृतिक खेती का लक्ष्य है। प्रदेश जैविक खेती की अपार संभावनाओं से पूरित है। यहाँ सभी धान्य फसल, सब्जियाँ, फल, मसाले, सुगंधित एवं औषधीय फसलें न्यूनतम रासायनिक इनपुट के उपयेाग से ली जाती हैं। प्रदेश के पास प्राकृतिक चारागाहों, प्राकृतिक उपवनों, सुदूर जनजातीय जिलों में अप्रदूषित कृषि भूमि का बड़ा क्षेत्र और नर्मदा घाटी के उपजाऊ क्षेत्र उपलब्ध है। साथ ही प्रदेश के प्राकृतिक एवं घने वनों में प्रचुर मात्रा में पलाश, रोहिणी, इत्यादि के पुष्प भी उपलब्ध है।
प्रदेश में कई जिले, ग्राम, विकासखण्ड और ग्राम पंचायत क्षेत्र ऐसे हैं, जो राज्य औसत से कम से कम 50 से 60 प्रतिशत कम बाह्य आदान जैसे रासायनिक उर्वरक, कृषि रसायन आदि का उपयोग कर रहे हैं। इस दृष्टि से अधिकांश जनजातीय जिले जैसे मंडला, डिंडौरी, बैतूल, झाबुआ, अलीराजपुर आदि जैविक कृषि विकास के अनुकूल है।
गौ-वंश आधारित ग्रामीण अर्थ-व्यवस्था प्रदेश में प्राकृतिक/जैविक खेती के विस्तार को मिशन मोड में गति देने में मददगार प्रमाणित होने वाली है।
जैविक खेती में प्रदेश को देश में अग्रणी बनाने में परम्परागत कृषि विकास योजना का भी योगदान रहा है। योजना में भारत सरकार द्वारा अभी तक 3,728 क्लस्टर अनुमोदित किये गये हैं। इन क्लस्टरों में करीब एक लाख 16 हजार कृषक शामिल है, जो सभी पीजीएस पोर्टल पर पंजीकृत है। पंजीकृत कृषकों के जैविक उत्पादों की स्थानीय स्तर पर तथा जैविक केन्द्र, मंडला और जबलपुर के माध्यम से मार्केटिंग में मदद की जा रही है।
प्रदेश में जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 2008 से अब तक के अरसे में राष्ट्रीय विकास योजना में भी 20 परियोजनाएँ स्वीकृत की गई हैं। प्रमुख रूप से नाडेप एवं बर्मी कम्पोस्ट पिट निर्माण, जैव उर्वरक एवं पोषक तत्व वितरण, जैविक खेती जागरूकता अभियान, नर्मदा नदी के किनारों के सभी जिलों के सभी विकासखण्डों में जैविक खेती कार्यक्रम, जैविक प्रक्षेत्रों की स्थापना, हरी खाद के लिए सहायता, जैव उर्वरकों की निर्माण इकाइयों की स्थापना, नर्मदा किनारे के गाँवों में बायोगैस प्लांट का निर्माण और जैव उर्वरकों के परीक्षण के लिए प्रयोगशालाओं के निर्माण की इन परियोजनाओं से जैविक खेती को प्रदेश में गति मिली है।
मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान के निर्देश पर प्राकृतिक और जैविक कृषि की विस्तृत कार्य-योजना तैयार की जा रही है। नर्मदा के किनारे के सिंचित परन्तु अधिक रसायन के उपयोग वाले कृषि क्षेत्रों को चिन्हित कर प्रांरभिक तौर पर किसानों के कुल रकबे में से कुछ क्षेत्र में जैविक कृषि को प्रोत्साहन देने पर काम किया जायेगा। राज्य जैविक खेती विकास परिषद का पंजीयन भी किया गया है। प्रदेश के कृषि विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में जैविक/प्राकृतिक खेती को शामिल करने की योजना है। दोनों कृषि विश्वविद्यालय में कम से कम 25 हेक्टेयर भूमि को प्राकृतिक खेती प्रदर्शन क्षेत्र में बदला जायेगा।
कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा निर्मित पाठ्यक्रम को प्रदेश के कृषि विश्वविद्यालयों- गोविंद वल्लभ पंत कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर और राजमाता विजयाराजे कृषि विश्वविद्यालय, ग्वालियर के पाठ्यक्रम में शामिल करने की तैयारी है। स्नातक उपाधि के चतुर्थ वर्ष के प्रथम सत्र में ग्रामीण कृषि कार्य अनुभव कार्यक्रम में एक तिहायी विद्यार्थियों को विशेष रूप से प्राकृतिक कृषि में प्रशिक्षण दिया जायेगा। प्रदेश के दोनों कृषि विश्वविद्यालयों के कृषि फार्म में कम से कम 25 हेक्टेयर भूमि को प्राकृतिक कृषि प्रदर्शन क्षेत्र में बदला जायेगा। पाठ्यक्रम में सस्य विज्ञान, मृदाविज्ञान, पौध संरक्षण, समेकित पोषक तत्व प्रबंधन, पशुपालन, वाटरशेड प्रबंधन तथा विस्तार शिक्षा आधारित विषयों में प्राकृतिक कृषि अध्याय का समावेश किया गया है।