मध्यप्रदेश विधान सभा में 21 दिसंबर, 2022 को मध्यप्रदेश विधान सभा में मुख्य विपक्षी दल इंडियन नेशनल काँग्रेस के नेता प्रतिपक्ष डॉ.गोविन्द सिंह द्वारा मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में गठित मंत्रि-मंडल के प्रति अविश्वास प्रकट पर सदन में रखे गए मुद्दे लगभग जस के तस
मध्यप्रदेश विधान सभा की प्रक्रिया नियम 143 (3) के तहत इस प्रस्ताव पर चर्चा
- मध्यप्रदेश विधान सभा में मुख्य विपक्षी दल इंडियन नेशनल काँग्रेस के नेता प्रतिपक्ष डॉ.गोविन्द सिंह ने बुधवार,21 दिसंबर, 2022 कहा की सदन मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में गठित मंत्रि-मंडल के प्रति अविश्वास प्रकट करता है". सदन में मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में गठित मंत्रि-परिषद के प्रति अविश्वास प्रकट पर मध्यप्रदेश विधान सभा के स्पीकर गिरीश गौतम ने सदन की कार्यवाही को आगे बढ़ाते हुए कहा की मध्यप्रदेश विधान सभा की प्रक्रिया नियम 143 (3) के तहत इस प्रस्ताव पर चर्चा के लिये 4 घंटे का समय निर्धारित किया जाता है.सदस्यों से अपेक्षा है कि समय सीमा को दृष्टिगत रखते हुए कार्यवाही के सुचारू संचालन में सहयोग करेंगे. इससे पहले अविश्वास के प्रस्ताव पर चर्चा प्रारंभ हो. सदन में स्थापित परम्पराओं-प्रक्रियाओं नियमों की ओर सदस्यों का ध्यानाकर्षित किया .
मध्यप्रदेश विधान सभा में मुख्य विपक्षी दल इंडियन नेशनल काँग्रेस के नेता प्रतिपक्ष डॉ.गोविन्द सिंह ने बुधवार,21 दिसंबर, 2022 कहा की सदन मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में गठित मंत्रि-मंडल के प्रति अविश्वास प्रकट करता है”.
सदन में मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में गठित मंत्रि-परिषद के प्रति अविश्वास प्रकट पर मध्यप्रदेश विधान सभा के स्पीकर गिरीश गौतम ने सदन की कार्यवाही को आगे बढ़ाते हुए कहा की मध्यप्रदेश विधान सभा की प्रक्रिया नियम 143 (3) के तहत इस प्रस्ताव पर चर्चा के लिये 4 घंटे का समय निर्धारित किया जाता है.सदस्यों से अपेक्षा है कि समय सीमा को दृष्टिगत रखते हुए कार्यवाही के सुचारू संचालन में सहयोग करेंगे. इससे पहले अविश्वास के प्रस्ताव पर चर्चा प्रारंभ हो. सदन में स्थापित परम्पराओं-प्रक्रियाओं नियमों की ओर सदस्यों का ध्यानाकर्षित किया . सदन की मान्य स्थापित परम्परा यह है कि ऐसे व्यक्ति जो इस सदन के सदस्य नहीं हैं. उन पर आरोप एवं टिप्पणी नहीं की जानी चाहिये. न्याय निर्णायाधीन मामलों पर चर्चा निश्चित है. विधान सभा की नियमावली में इस बात का उल्लेख है कि व्यक्तिगत आरोपों से बचा जाये. ऐसे आरोप भी सदस्य नहीं लगाये जाये जो सभा की गरिमा के विरूद्ध हों जिससे लोकहित सिद्ध न होता हो. मैं चाहूंगा कि दोनों पक्षों के सदस्य ऐसे आरोपों तथा आरोपों की पुनरावृत्ति से बचें ताकि चर्चा सार्थक हो. मुझे विश्वास है कि दोनों पक्षों के सदस्य इन बातों पर ध्यान रखकर ही चर्चा करेंगे. सदन की व्यवस्था बनाये रखने में मुझे सहयोग करेंगे।
एक बात और इसमें लिखा नहीं है लेकिन मैं अलग से कह रहा हूं. मेरा सारे सदस्यों से आग्रह यह है कि बहुत गंभीर विषय पर आप चर्चा करने जा रहे हैं. मेरा आग्रह यह है कि जब नेता प्रतिपक्ष खड़े हों तब कोई टोका-टाकी न हो. जब कोई विशेष बात हो तो हमसे अनुमति लें इसी तरह से जब सदन के नेता खड़े हों. अकसर यह देखा गया है कि अपनी बात कहने के बाद यदि कोई सदन का नेता खड़ा होता है तो फिर थोड़ी सी दिक्कत आती है. इसलिये मेरा दोनों पक्षों से आग्रह है कि जब नेता प्रतिपक्ष बोल रहे हों या हमारे सदन के नेता बोल रहे हैं तो शांतिपूर्वक एक बार आप इसको सुनो।
इसके बाद नेता प्रतिपक्ष( डॉ. गोविंद सिंह) ने कहा सबसे पहले वर्ष 1990 में, जब मैं, इस सदन में आया तो उसी समय शिवराज सिंह जी भी इस सदन के सदस्य के रूप में पहुंचे थे. उस समय मैं, यह देखता और सुनता था, मुख्य मंत्री जी तत्कालीन पूर्व विधायक उस समय लगातार धाराप्रवाह भाषण देते थे और मैं और गजराज सिंह जी थे. तो मैंने सोचा कि यह व्यक्ति आगे लंबे समय तक ऊंची की राजनीति में जायेंगे. सोचा था जायेंगे और ईश्वर ने उनको अवसर भी दिया और इनका एक भाषण और सुना था कि पांव में चक्कर, मुंह में शक्कर और दिमाग में ठंडक, लेकिन यह उस समय की बातें थीं. आज पूरी तरह से सत्ता के घमण्ड में मुख्य मंत्री जी ने इन बातों को तिलांजली दे दी. अब आप के आज के समय के भाषण सुनते हैं तो वह इस तरह के आक्रामक होते हैं कि भ्रष्टाचारियों को टंगवा दूंगा, गड्डे में गाड़ दूंगा. परन्तु आज तक एक वर्ष के अंदर न किसी को भाषण के अनुकूल गड्डे में गड़ा देखा, ना ही किसी को टंगा देखा. कई बार मैंने खुदे हुए गड्डे भी देखे कि यहां ना कोई गड़ गया हो, लेकिन वहां कोई गड़ा नहीं मिला.अब इसके बाद में कहना चाहता हूं कि आप कहते हैं कि यह हुआ, सत्ता में रहने के बाद मैंने यह सोचा था कि 17-18 वर्ष मुख्य मंत्री रहने पर बड़प्पन बढ़ जायेगा, गंभीरता आयेगी..
लेकिन वह सब समाप्त हो गयी. ना ही गंभीरता है, ना बड़प्पन है, बिल्कुल तानाशाही तरीके से प्रदेश को रौंदने का काम कर रहे हैं. प्रजातंत्र के मूल्यों का धीरे-धीरे अवमूल्यन कर रहे हैं. पहले तो पंचायती राज में जो अधिकार दिये, वह सब अधिकार आपने छीन लिये. जिस प्रकार विधायक चुनते हैं और वह मंत्री बनते हैं तो वह अपने अधिकारों का उपयोग करते हैं, जो दिग्विजय सिंह के कार्यकाल में जिला सरकार और पंचायती राज के संबंध में अधिकार दिये वह सब छीनकर शासकीय अधिकारियों और कर्मचारियों को ट्रांसफर कर दिया, ताकि मनमानी तरीके से जो चाहें सो करायें. आज ग्राम पंचायत के सरपंच और सचिव के सब पॉवर रोक दिये, सब छीन लिये. जनपद और जिला पंचायत सब पॉवर लेस हो चुके हैं. केवल वहां के प्रतिनिधि CEO जिला पंचायत और ग्राम पंचायत के सचिव रह गये हैं. हमारे पास तमाम सरपंच आते हैं कि सचिव हस्ताक्षर ही नहीं करता है, कहता है हमें 20-25 प्रतिशत चाहिए. आज आपने धीरे-धीरे इसका अवमूल्यन कर दिया है. विधान सभा में जब पहली बार वर्तमान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह जी सदन में उपस्थित थे, उस समय पटवा जी और जगदंबा प्रसाद निगम जी की एक विषय पर चर्चा प्रारंभ हुई और लगातार एक के बाद एक, चर्चा में रूलिंग रखी जाती थी, पौन घंटे तक एक ही प्रश्न पर विधान सभा चली. कहीं पटवा जी हाऊस ऑफ कॉमन की रूलिंग की बात कर रहे थे, तो कहीं कौल एण्ड शकधर की किताबों का उल्लेख हो रहा था. उस समय लगता था कि हम प्रजातंत्र के इस पवित्र मंदिर में आये हैं और प्रदेश का कल्याण करने, जनता की समस्या को सुलझाने के लिए, प्रदेश के विकास के लिए यहां आये हैं. परंतु अब मुख्यमंत्री जी ने ये सब परम्परायें समाप्त कर दी हैं. दिग्विजय सिंह जी के कार्यकाल में लंबे समय तक सदन चलता था. अभी पीठासीन अधिकारियों का सम्मेलन माननीय लोकसभा अध्यक्ष जी द्वारा बुलाया गया था, उसमें आप भी उपस्थित हुए थे. उसमें तय हुआ था कि बड़ी विधान सभायें कम से कम 75-90 दिन चलें, लोकसभा कम से कम 120 दिन चले और छोटे राज्यों की विधान सभायें भी 30-40 दिन चलें।
नेता प्रतिपक्ष ने कहा मुख्यमंत्री जी का 15-18 वर्ष का कार्यकाल हो गया, सबसे लंबे समय रहकर, इतिहास बनाया परंतु आपने सदन को कम से कम चलाने का इतिहास भी बनाया. मुख्यमंत्री जी आपको इस मामले में भी गोल्ड मैडल मिलेगा, जनता की आवाज नहीं चलने देना. राजनैतिक आधार पर सुशासन, पहले तो मैंने सोचा सुशासन होता क्या है मुख्यमंत्री जी का सुशासन, मैं सुनता रहा, देखता रहा.
नेता प्रतिपक्ष ने कहा की आज लगातार विपक्षी दलों के साथ क्या बर्ताव किया जा रहा है आपने, भारतीय जनता पार्टी की सरकार के समय करीब-करीब 17 आदेश सामान्य प्रशासन विभाग ने जारी किये. उनमें से 15 आदेश आपकी सरकार के समय के हैं. विधायकों का सम्मान किया जाये, कलेक्टर, एस.पी. के यहां जब विधायक जायें, तो वे उठकर उनका सम्मान करें. सम्मान से बैठायें, उन्हें कुर्सी दें. परंतु हमारे आठ विधायक साथी एक समस्या को लेकर रतलाम पहुंचे और वहां के कलेक्टर ने करीब 1 घंटा 45 मिनट उन्हें बाहर बैठाये रखा, उनसे मिले ही नहीं. आपके अधिकारी इतने निरंकुश हो गए हैं. प्रजातंत्र पर तंत्र हावी हो गया है, प्रजा रह गई है, तंत्र हावी है. आपने अपने सर्कुलर में लिखा है कि यदि कोई सम्माननीय विधायक या सांसद अगर किसी शासकीय अधिकारी, कर्मचारी को किसी समस्या से संबंधित कोई पत्र लिखता है तो वहां रजिस्टर रखा जायेगा और उसमें पत्र को दर्ज किया जायेगा और तीन दिन में जवाब दिया जायेगा कि आपका पत्र मिला और एक माह के भीतर यदि समस्या का निदान हो सकता है तो उससे अवगत करवाया जायेगा और यदि नहीं है तो बताया जायेगा कि यह काम इस तरह से संभव नहीं है. यह आपके समय का नया आदेश है.पूरे प्रदेश में यहां पक्ष-विपक्ष के सम्माननीय विधायक बैठे हैं, एक भी अधिकारी ने इस प्रकार का बर्ताव किया हो, पत्र का जवाब शासन के आदेशों का पालन करते हुए दिया हो, आजकल सभी अधिकारी निरंकुश होकर तानाशाही तरीके से काम करने में लगे हुए हैं. हमारे पत्रों की धज्जियां उड़ा रहे हैं, क्यों न उड़ायें, इसलिए उड़ा रहे हैं क्योंकि पहले परंपरा थी, संसद और विधान सभा दोनों जगहों पर थी, जब कोई सम्माननीय विधायक या सांसद, यदि मुख्यमंत्री अथवा मंत्री जी को पत्र लिखते थे तो वहां से जवाब आता था लेकिन श्रीमान जी जब से आप इस पद पर विराजमान हुए हैं. तब से उसका भी कोई मूल्य नहीं रहा है. न काई सुनने वाला है और न ही कोई जवाब देते हैं. कोई गंभीर समस्या है तो उसका भी जवाब नहीं मिल रहा है. हमने आज भी दिल्ली में सरकार को पत्र लिखे और हम केवल माननीय गडकरी जी का धन्यवाद देते हैं कि उन्होंने हमसे बिना कभी मिले-जुले हमारे पत्र का उत्तर भी दिया और जो काम होने लायक था वह काम भी किया. यह परम्परा ऊपर से नीचे तक चालू हो गई है तो उसका पालन श्रीमान जी क्यों नहीं करेंगे? क्या यह आपका सुशासन है।
नेता प्रतिपक्ष ने कहा विपक्षी दलों का अपमान करना, उनको झूठे मुकदमें में फंसाना, प्रताडि़त करना और अपनी पार्टी में शामिल करा लेना यह काम आपकी सरकार का चल रहा है. आपने सोचा कि जिस प्रकार के आपके भाषण हैं, काम हैं आप वही जनता के लिए करेंगे. आपने विकास तो किया नहीं पूरे प्रदेश को कर्ज की गर्त में डाल दिया है .मध्यप्रदेश की जो संस्थाएं खड़ी हुई थीं, जो संपत्तियां आजादी के बाद सृजित की गईं थीं जो कि करीब 38 संपत्तियां हैं, काफी उपयोगी संपत्तियां हैं और बड़ी कीमत वाली हैं. हजारों करोड़ की संपत्ति आपने केवल 459 करोड़ रुपए में बेच दी है. क्या यह सुशासन है जो इकट्ठा किया है हमारे बाप-दादाओं ने, हमारे पूर्वजों ने, पूर्व के मुख्यमंत्रियों ने उसको भी आप बेचने लगे. हमें नहीं लगता कभी ऐसा न हो कि आप विधान सभा को ही बेच दें. यह आपको अपनी क्षमता दिखाना था.
डॉ. गोविन्द सिंह– जब हमारे पोरसा का, अंबाह के बस स्टेण्ड बिक गए. बसे
खड़ी होने को जगह नहीं है. करीब 80 करोड़ की जमीन 17, 18 करोड़ रुपए में बेच दी तो यहां मुख्यमंत्री जी के राज में सब हो सकता है. पंडित जी आपके राज में नहीं होगा.
डॉ. गोविन्द सिंह कहा की आजकल हमारा गला खराब चल रहा है. मैं यह कहना चाहता हूं कि पिछले माह हमारे नेता राहुल गांधी जी पद यात्रा पर आए थे. मैं भी वहां पहुंचा मैंने आगर मालवा के कलेक्टर को, प्रशासन को पूर्व में सूचना दी वैसे तो हमें सैर-सपाटा करने का 5 स्टार होटल में ठहरने का ज्यादा शौक नहीं है. मैं गांव का किसान हूं, किसान का बेटा हूं और मुख्यमंत्री जी भी हैं, लेकिन उनके और हमारे रहन-सहन में काफी फर्क है. हम अपनी जीप से चलते हैं और आप उड़न-खटौला से चलते हैं तो यह तो आप मुख्यमंत्री होने के नाते व्यस्त रहते हैं समय कम होने के कारण आपको जाना भी पड़ता है इसमें हमें कोई एतराज नहीं है, लेकिन कम से कम निर्वाचित जनप्रतिनिधियों का तो अपमान न कराएं. हमने इसके पूर्व में भी लिखा कि जो विधायक नेता प्रतिपक्ष की हैसियत से सुविधाएं सरकार को देना चाहिए, लेकिन जब हम वहां वहां सर्किट हाऊस में पहुंचे तो पत्र आ गया कि यह आरक्षित है. जब हम वहां गए तो वहां कोई एस.डी.एम. रघुवंशी जी थे. वहां ताला लगा था, गंदगी का ढेर लगा था. उन्होंने कहा कि आपके लिए 4 नंबर कमरा खाली है आप 3 नंबर कमरे में नहीं ठहर सकते हैं तो हमने कहा कि क्या इसमें कोई और ठहरा है तो उन्होंने कहा कि यह सभी कमरे बुक हैं. आप जांच करा लें कि उस दिन कोई कमरा बुक नहीं था. बाहर के गेट में कुन्डी नहीं थी, नारियल की रस्सी से वह बंधा हुआ था. मैं उसका फोटो लाया हूँ और शायद मैंने आपको भी फोटो सहित लिखकर भेजा है. अन्दर जाकर जैसे ही मैंने बाथरुम की सीट पर पैर रखा तो बाथरुम की सीट गिर गई. उसके फोटो भी मैं लाया हूँ. वहां पर हमने नायब तहसीलदार को दिखाया. फिर मैं वहां पर मेरे एक मित्र के घर पर जाकर ठहरा था. यह हालत है. वल्लभ भवन के कई अधिकारी मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव, सचिव इनको फोन करें तो फोन नहीं उठाते हैं. यदि उनके स्टाफ को मिलने के लिए नोट करा दें तो दोबारा खुद कभी फोन नहीं करते हैं. जब यह नेता प्रतिपक्ष की स्थिति है तो बाकी हमारे साथी विधायकों की क्या दशा होगी. सत्तापक्ष के सदस्य तो मुख्यमंत्री जी के दबाव में ज्यादा कुछ नहीं कह सकते हैं. लेकिन हम लोगों को तो कहना पड़ेगा. आज बजट पास हुआ है. आपने भिण्ड जिले में करीब 30-35 सड़कें स्वीकृत की हैं. इसके पहले के बजट में भी इतनी संख्या थी. उसके पहले सप्लीमेंट्री में भी कुछ सकड़ें आईं थीं. लेकिन जो विधायक विपक्ष में हैं पत्र लिख रहे है, प्रस्ताव भिजवा रहे हैं. यही आपका सुशासन है, यही आपका न्याय है. जब आपने विधायक और मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी तब आपने कहा था कि राग द्वेष, बिना पक्षपात के न्याय करेंगे. क्या आपका यही न्याय है जो आप कर रहे हैं।
नेता प्रतिपक्ष ने कहा मुख्यमंत्री जी ने अधिकारियों को निर्देश दिए कि भाजपा के प्रत्येक विधायक से 15 करोड़ रुपए के 4-4 मेगा प्रोजेक्ट लें. हम लोगों ने कौन-सा अपराध किया है जनता से चुनकर आए हैं. हो सकता है कि हमारे भी कुछ मंत्रियों ने भेदभाव किया होगा लेकिन गोविन्द सिंह ने कभी नहीं किया. मैं तो सोचता हूँ कि चुनाव जीत गए तो हम पूरे क्षेत्र के एमएलए हैं, एक क्षेत्र के या कांग्रेस पार्टी के नहीं हैं. विधायक पूरे क्षेत्र का होता है हम उसी प्रकार से बर्ताव करते हैं. हम लोगों का क्या दोष है, जनता का तो दोष नहीं है. हो सकता है हमसे आपकी नाराजगी हो परन्तु जनता के काम के लिए तो बड़ा दिल दिखाइए.
एक तरफ सर्कुलर जारी कर रहे हैं और दूसरी तरफ जनप्रतिनिधियों का अपमान हो रहा है. राजगढ़ में मुख्यमंत्री जी आप मेडिकल कॉलेज का घोषणा अनुसार शिलान्यास करने के लिए गए थे. वहां पर हमारे विधायक बापू सिंह तंवर भी थे. आपके निर्देश हैं कि आमंत्रण पत्र पर विधायक का नाम लिखा जाएगा. सम्मान सहित कुर्सी मिलेगी. लेकिन कुर्सी नीचे दी गई, आमंत्रण पत्र में कहीं नाम नहीं लिखा गया. न पट्टिका पर लिखा है. लेकिन उन्होंने सोचा कि जनता के प्रतिनिधि हैं…
बीच में मुख्यमंत्री (श्री शिवराज सिंह चौहान) ने कहा की मैं टोका-टाकी नहीं करूंगा लेकिन मैं यह निवेदन कर रहा था कि बापू सिंह तंवर भी अच्छी तरह जानते हैं मैंने उनका भाषण करवाया था क्योंकि वे स्थानीय विधायक हैं तो वे जरुर बोलें. पहले जरुर यह था कि हम लोग लेट पहुंचे थे तो मंत्री और मुख्यमंत्री के ही बोलने का था लेकिन उन्होंने कहा कि हम बोलेंगे तो हमने बाकायदा कहा बोलिए. मैं बीच में नहीं टोकता हूँ लेकिन यह सच नहीं है.
मध्यप्रदेश विधान सभा में इंडियन नेशनल काँग्रेस के नेता प्रतिपक्ष डॉ.गोविन्द सिंह ने कहा की हम यह बात कहने वाले थे कि आपने बुलवाया लेकिन क्या आपके सामने आपके उच्च शिक्षा मंत्री डॉ.मोहन यादव जी वह आपका कुर्ता खींच रहे थे.
इस पर उच्च शिक्षा मंत्री (डॉ.मोहन यादव) ने बीच में बोलते हुए कहा की नेता प्रतिपक्ष जी, अभी बापूसिंह तंवर जी भी यहां मौजूद हैं, आप जरा उनसे भी पूछ लीजिए कि क्या हुआ…
डॉ.मोहन यादव ने कहा मेरा निवेदन है कि आपकी जानकारी के लिये मैं बड़ी विनम्रता के साथ कह रहा हॅूं कि मैंने अपना भाषण समाप्त किया, मैंने नहीं बोला. मैं प्रभारी मंत्री था लेकिन बापूसिंह जी को बोलने का मौका दिया. मैंने कहा कि आप बोल लीजिए, मैं नहीं बोलता.
डॉ.गोविन्द सिंह ने कहा की विधायक डॉ.विजयलक्ष्मी साधौ जी हैं. इनके महेश्वर में कार्यक्रम हुआ. इनका पट्टिका में न नाम लिखा गया और न आमंत्रण दिया गया और जबकि यह खुद विधायक हैं. कोरोना काल में अपने विधायक फंड से गैस के प्रोजेक्ट का प्लांट लगवाया और उसी के लिये पट्टिका में न नाम लिखा और न ही आमंत्रण दिया. ऐसे ही हमारे विधायक रामलाल मालवीय जी के साथ हुआ. खैर, अगर आपकी यही संस्कृति है तो हमें इसमें कोई बुराई नहीं है. हम लोग विपक्ष के लोग हैं. यह सब अपमान सहने के लिये पैदा हुए हैं. हम सहेंगे, सहर्ष सहेंगे।
मुख्यमंत्री जी, पहले तो एक बात किसानों की कर लें. आप किसान परिवार के बेटे हैं और हम भी किसान के बेटे हैं. हमारे पिताजी भी खेती करते थे. आपने बेरोजगारी के लिये जो योजना बनायी थी. मुख्यमंत्री के नाम से चल रही तीन योजनाएं हैं. उद्यमी योजना, स्वरोजगार योजना, कृषि उद्यमी योजना, यह सब योजनाएं आपने बंद कर दीं. जो नगरीय प्रशासन विभाग है उसमें करीब 50-60 परसेंट पद खाली पडे़ हैं. शिक्षकों के भी पद खाली पडे़ हैं, करीब 60-70 हजार पद खाली पडे़ हैं. जैसा कि हम समाचार पत्रों में पढ़ते हैं और ऐसा कोई विभाग नहीं है कि जहां काम चल रहे हों. अब आपने बिजली विभाग में संविदा कर दिया. वह आज क्या रहे हैं. वह गांव में जाते हैं उनको कोई डर नहीं है. उनकी सेवा की कोई गारंटी नहीं है कि सस्पेंड होंगे. डेलीवेजेस पर हैं ठेकेदारी पर हैं, जब चाहे निकाल दिये जाते हैं तो वह फर्जी बिल बनाते हैं और जिनके कारखाने चल रहे हैं उनका बिल आ रहा है 5000 रूपए और जो किसान परिवार के हैं किसान हैं साढ़े पांच हार्सपावर पर साढे़ बारह हार्सपावर का बिल आ रहा है और साढे़ बारह हार्सपावर पर पन्द्रह हार्सपावर का बिल आ रहा है. यह दतिया, भिण्ड जिले में, हमारे क्षेत्र में सेंवड़ा में कम से कम 60-70 लोगों ने बिल के दिये. हम स्वयं गये. हम इंजीनियर को लेकर गये कि आप चैक करो तो जैसा उन्होंने कनेक्शन दिया पांच का तो पांच निकला, लेकिन वसूली जारी है तो इसलिए संविदा के नहीं, भले ही आप काम ज्यादा लें. काम के जो आप 6 घंटे लेते हैं वह आप 8 घंटे, 10 घंटे लें. उनको आप परमानेंट रखेंगे तो उनको डर भी रहेगा. इसलिए यह संविदा और आउटसोर्स समाप्त कर देना चाहिए. यह हमारा आपसे आग्रह है. इन सब योजनाओं के बाद भारत सरकार के द्वारा आपके जो लिखित रजिस्टर्ड आपके रोजगार कार्यालय में करीब 32 लाख और भारत सरकार का एक जो आंकड़ा आया है वह तो पढे़-लिखे और बिना पढ़े-लिखे रजिस्टर्ड और बिना रजिस्टर्ड बेरोजगारों की संख्या 1 करोड़ 30 लाख है. यह आंकड़ा भारत सरकार द्वारा मध्यप्रदेश के बारे में बताया गया है. इसमें गांव के किसान के बेटे भी सम्मिलित हैं. मैंने आपसे कहा था कि जब सरकार द्वारा आरक्षण की व्यवस्था है, सरकार कमजोर वर्ग को, सबको आरक्षण देती है. गांव के जो पढ़े-लिखे बच्चे हैं, इंटर पास हैं, बीए पास हैं, वे आज बिल्कुल बेरोजगार हैं. गांवों में सामान्य परिवार का किसान का बेटा, मजदूर का बेटा बेरोजगार है. पुलिस की भर्ती में जाता है, एसएफ की भर्ती में जाता है और छोटे-मोटे काम करता है. पुलिस की भर्ती की परीक्षा में आपने हमारी एक बात मानी, उसके लिए धन्यवाद. हालांकि वह बात भी आधी मानी है. गांव में जो बच्चा इंटर पास कर लेता है, वह घर में भैंस दोहता है, उनके लिए चारा लाता है, शाम को फिर उसके लिए पानी भरता है. एक तरफ शहर के पैसे वाले लोग हैं, धनाढ्य लोग हैं, 12-12 हजार रुपये की तो एक महीने की ट्यूशन लगाते हैं. अब आप उनकी बराबरी गांव वालों से करेंगे. 15 साल में सिपाही को एक फीता देते हैं, वे हवलदार की फीता लगाते हैं. 15 वर्ष में उसको फीता तो लगा रहे हैं, लेकिन तफ्दीश का अधिकार नहीं है. उसका काम है सुरक्षा गार्ड का, चोरों को पकड़ना, अपराधियों को पकड़ना, सुरक्षा गार्ड की ड्यूटी वह देता है. उसके लिए आपने परीक्षा का प्रावधान किया था. जो बड़ी-बड़ी सेवाएं हैं, कंप्यूटर चलाना है, जहां परीक्षा की जरूरत है, वहां तो आप परीक्षा कराएं. पहले परंपरा थी कि पहले फिजीकल परीक्षा होती थी तो गांव के लड़कों का कम से कम फिजीकल कराएं. आज के कम्पीटिशन के युग में बाहर के कई प्रांतों के बच्चे हमारे यहां नौकरी में आ जाते हैं, हमारे यहां के बच्चे नहीं आ पा रहे हैं. इसलिए कृपा करके इस पर सुधार कर सकें तो करा दें.
किसान की एक ही बात करूंगा, महंगाई की, पूरी महंगाई की लंबी बात तो नहीं करूंगा. लेकिन आपके किसान के लड़के गांव में बीए, इंजीनियरिंग, बीटेक, एमटेक करके बेरोजगार फिर रहे हैं. कंप्यूटर साइंस करने वाले बच्चे को 5 हजार रुपये में भी नौकरी नहीं मिल रही है. अभी एक छात्र मेरे पास आए कि मुझे माधोपुर में फैक्टरी में लगवा दीजिए. हमने दो-तीन बार बात की, एक बार खुद गए तो उन्होंने कहा कि 5 हजार रुपये तनख्वाह देंगे. वह छात्र 5 हजार रुपये में नौकरी करने के लिए तैयार है. यह हालत आज के बच्चों की हो गई है. मां-बाप अपने बच्चों की पढ़ाई-लिखाई पर लाखों रुपये खर्च करते हैं और जब बच्चों को रोजगार नहीं मिलता तो वे गलत कदम उठाते हैं. बुढ़ापे में बेटा अपने मां-बाप का सहारा बनना चाहता है, उसके पिताजी भी कहते हैं कि जाओ, कुछ कमाओ, बहन की शादी करना है. मां बीमार है, इलाज की व्यवस्था करना है. दिन भर वह बच्चा नौकरी के लिए घूमता है और जब उसे नौकरी नहीं मिलती तो वे पढ़े-लिखे बेरोजगार बच्चे फांसी लगा लेते हैं, कोई जहर खा लेता है और वे आत्महत्या करने को मजबूर हैं. इसलिए हमारा अनुरोध है कि उन बच्चों के रोजगार के लिए आप व्यवस्था करें.
इंडियन नेशनल काँग्रेस के नेता प्रतिपक्ष ने कहा किसान परेशान है. जनता परेशान है. आपने जनता पर बहुत टैक्स लाद दिए हैं. 10 बीघा जमीन, 2 हेक्टेयर वाले किसानों को प्रधानमंत्री सम्मान निधि के 6 हजार रुपये सालाना मिल रहे हैं और मुख्यमंत्री जी आप भी अलग से 4 हजार रुपये उनको दे रहे हैं. इस तरह 10 हजार रुपये सालाना हो गए. मैं खुद भी किसान हूँ. मैंने पूरा हिसाब लगाया है. पटेल साहब, आप भी हिसाब लगा लेना. वर्ष 2014 में डीजल का जो भाव था, उसमें अभी तक कितनी बढ़ोतरी हुई है. किसान को निंदाई, गुड़ाई, कटाई, थ्रेसिंग सब करना पड़ना है. ट्रैक्टर ट्राली से गन्ना ले जाना और फिर उसको जाकर मण्डी में बेचना, इन सब कामों पर 10 बीघा जमीन वाले किसान को, 2 हेक्टेयर वाले किसान को 7,300 रुपये खर्चा आया. यह अकेले डीजल के भाव बढ़ने से हुआ है. अब 10 हजार रुपये सालाना में से 2,700 बच गए. वह भी कल्टीवेटर, थ्रेसर, ट्रैक्टर और जो कृषि यंत्र हैं, उन पर भाव बढ़ा दिए. कुल मिलाकर किसान को देना और दूसरी जेब से निकालना. आज पूरे विश्व में भोजन पर कहीं टैक्स नहीं लगता. बीमारी होती है उस पर जीएसटी लग गई, तो कम से कम कुछ ऐसे काम हैं, बीमार है तो पलंग पर टैक्स जीएसटी, दूध पर टैक्स, आटा पर टैक्स, शक्कर पर टैक्स, तो इस तरह किसान की जेबें, आम गरीब आदमी की जेबें खाली करने का काम सरकार कर रही है. उनको कमजोर कर रही है और कमजोर क्यों यह एक नीति के तहत है, इसलिए कमजोर किया जा रहा है ताकि यह लोग इतने कमजोर रहें, पेट की भूख में ही लगे रहें, बच्चों की पढ़ाई लिखाई में लगे रहें, सोचते रहें, सरकार क्या गड़बडि़यां कर रही है उस तरफ उनका ध्यान ही नहीं जाए. लंबे समय तक राज करने के लिए यह योजना योजनाबद्ध तरीके से साजि़श चल रही है.
उन्होंने मुख्यमंत्री जी, से पूंछा कि आप सबको चेतावनी दे रहे हैं तो आपका ईओडब्ल्यू क्या कर रहा है ईओडब्ल्यू में ई-टेंडरिंग की जांच पहले कांग्रेस की सरकार में हुई और उसके बाद आपने सबूत नष्ट किए, कोर्ट में गवाह, सबूत नहीं दिए तो सभी 6 लोग बरी हो गए. आप उसको वापस ले लो, कानून को खत्म कर दो. आर्थिक अपराध ब्यूरो को मैं देख रहा हूं कि इसका नाम बदलकर अब लूट अपराध ब्यूरो कर दो क्योंकि इसमें कुछ हो ही नहीं रहा है, कई केस हैं कि केस लगाकर बदल जाते हैं, इधर उसकी एफआईआर दर्ज करो और उधर एफआईआर बाद में मिलजुलकर समाप्त करवाने का काम हो रहा है. यह इसलिए क्योंकि लोकायुक्त में आप 280 अधिकारियों पर चालान की परमीशन नहीं दे रहे हैं. भाई, जब आप पाक-साफ हो तो उनको परमीशन देने का काम करो, तो परमीशन मिल जाए. जब मैं सामान्य प्रशासन मंत्री था तब मेरे सामने केवल दो मामले सामने आए, अधिकारी नहीं चाहते थे कि इसकी परमीशन मिले, हमने दी. आपसे भी हमारा अनुरोध है कि ऐसे भ्रष्टाचारियों से प्रदेश नहीं चलेगा. ऐसे लुटेरे अगर प्रदेश में हमारे तंत्र को नष्ट कर रहे हैं, उनके विरुद्ध भी जैसी आपकी कथनी है वैसा करने का काम भी करो.
जब सरकार की हालत करीब साढ़े तीन-चार लाख करोड़ का कर्जा हो गया, बजट से दोगुना, तो आप जरा अपव्यय करना भी थोड़ा बंद करो. भाई-भाई हैं किस्मत में होगा तो बनेगा मुख्यमंत्री वह तो किस्मत में होगा तो होगा, नहीं होगा तो कोई बात नहीं. अब आपने महाकाल लोक के उद्घाटन में 12 करोड़ खर्च कर दिए. मोदी जी चीते लाए, चीता छोड़ने के लिए भी आपने लाखों, करोड़ों रुपये की बसें लगवाईं, क्या जरूरत थी, पिंजरे में चीते आए छोड़ देते ? हजार, दो-चार, पांच हजार में छूट जाते. उसके लिए आपने 12-15 करोड़ रुपये खर्च कर डाले, तमाम विज्ञापन, रोजाना विज्ञापन छप रहे हैं. कहावत है कि ”घर में नहीं हैं दाने, तो अम्मा चली भुनाने.” जब कुछ है नहीं, जब आपके पास खजाना खाली पड़ा है तो फिर उसके लिए आप क्यों पैसे की बर्बादी करा रहे हैं ?
सीएजी तो भारत सरकार के अधीन है उसकी रिपोर्ट आ गई. उन सभी में आपके घोटाले बताए थे, उस दिन आपने बहस नहीं होने दी. टेक होम में, जब मध्यप्रदेश में कोरोना था, कर्फ्यू लगा हुआ था मार्च 2020 से जुलाई 2020 तक मात्र 4 माह की अवधि में ही 2 अरब, 8 करोड़, 339 लाख रुपये का पोषण आहार, और टेक होम राशन में आपने 89 करोड़, 50 लाख का व्यय कर दिया. सीएजी ने तो रिपोर्ट में लिखा है. जो आया नहीं उसका करोड़ों का भी भुगतान हो गया. मोटरसाईकिल से, 100 क्विंटल एक मोटरसाईकिल पर धरकर आ गये. हम अपने भिण्ड जिले की बात करते हैं वहां पर आपके सामाजिक विकास विभाग का अधिकारी बैठा दिया है. सब तरह की खरीदी हो रही है. वह इंदौर का रहने वाला है वहीं से खरीदी हो रही है. जो वस्तु का मूल्य 100 रुपये है तो वह 200, 250 रुपये में खरीदी जा रही है, पता नहीं सरकार और हमारे जिले के कलेक्टर क्यों उस पर मेहरबान हैं
नेता प्रतिपक्ष ने कहा की कोरोना के समय में जब तक कर्फ्यू रहा, किसी को घर से बाहर निकलने का अधिकार नहीं था, घर से निकलने नहीं दिया गया. एक बार हम निकल गये. बाहर पैदल सामने के घर में जा रहे थे तो बोले नहीं, नहीं साहब, कर्फ्यू लगा है. आप इसका उल्लंघन कर रहे हो तो हम वापस लौट गये. जब कोई निकल नहीं सकता था, गाड़ी चल नहीं सकती थी तो फिर उस समय भिण्ड जिले में कैसे अकेले लहार क्षेत्र में साढ़े 5 करोड़ रुपये का खाद्यान्न बंट गया? जब हमने विधान सभा में शिकायत की. मुख्यमंत्री जी को पत्र लिखा, कलेक्टर को लिखा. जोरदारी से प्रेस कांफ्रेंस की तो फिर क्या किया कि अधिकारियों ने जाकर आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं पर बाद में हमारे मुद्दा उठाने के बाद, उन पर दबाव देकर, तुम्हारी नौकरी नहीं रहेगी. आपको हटा देंगे तो उनसे लिखवा लिया कुछ पैसे देकर कि कुछ ले लो और लिख दो कि हमें मिला है. आखिर वहां ले जाने की किसने परमिशन दी? परमिशन है नहीं तो कम से कम ऐसे भ्रष्ट अधिकारियों पर भी तो आप कार्यवाही करें. अध्यक्ष महोदय, अब एक कोरोना की बात करता हूं. कोरोना में आपात संकट था. यह अचानक आया. दूसरी कोरोना की जब बाढ़ आई तो उस समय काफी लोगों हमारे साथी नहीं रहे. कोरोना में चिरायु अस्पताल पर आप बहुत मेहरबान रहे. चिरायु में करीब 70 करोड़ रुपये आपने दे दिये. अब आप कह सकते हो कि जमीन आपके समय की है. कांग्रेस की सरकार में उसको 30 एकड़ जमीन दी थी, 25 एकड़ मेडीकल कॉलेज को और 5 एकड़ डेंटल कॉलेज को दी थी. हालांकि वह कैचमेंट की एरिया जमीन है. पिछली बार जब बाढ़ आई तो पलंग डूब चुके थे. कई लोगों ने बताया कि इतना पानी था, अखबारों में दिखा, कमर से नीचे तक डूबे थे. उसमें क्या हुआ. हम नहीं कहते, हमारे भी कुछ मित्र हैं. उसको संरक्षण दे रहे हैं. उनका स्वागत सम्मान हो रहा है. लेकिन आपने इतनी मेहरबानी उस पर क्यों की एक ही अस्पताल को सबसे ज्यादा पैसा दिया. शासकीय अस्पतालों को पैसा दे देते. इनको ज्यादा फायदा हो सकता था, यंत्र आ सकते थे. उसने क्या किया है मैं आपको जरा एक दर्दनाक बात कहना चाहता हूं. हमारे मित्र श्री लक्ष्मीकांत शर्मा जी पूर्व मंत्री, यह जब गये तो उनसे परिवार के लोगों को मिलने नहीं दिया गया, वहां पर कोई डॉक्टर नहीं, दिन दिन भर कोई देखने वाला नहीं था. सबसे ज्यादा अगर 455 मौतें कहीं हुई हैं तो उस अस्पताल चिरायु में हुई है. उसके बाद भी उस पर मेहरबानी? मुख्यमंत्री जी क्यों इतने मेहरबान हैं, कम से कम यह तो देखिए श्री बृजेन्द्र सिंह राठौर हमारे मित्र साथी थे, उनका यह पत्र हमारे पास में रखा है. मार्मिक पत्र है वह ठीक से लिख भी नहीं पाए. उन्होंने लिखा है,वे राइटिंग ठीक से नहीं लिख पा रहे थे. विशेष आग्रह है, डी.एम., भोपाल. लवानिया जी, एच.एम. के दामाद हैं. आप उनके घर जाकर एच.एम. से कहकर हमारे प्राण बचायें. यहां कोई देखने नहीं आता है. छोटी स्लिप लिखी थी. कमलनाथ जी और मैं जब उनके घर गये श्रृद्धांजलि देने, तब उनके परिवार के लोगों ने रो-रो कर यह दिखाईं. यह दो चिट्ठी, पत्र हैं. अब एक पत्र तो इसमें आया, दूसरा पत्र है कि डॉक्टर साहब, कभी कभी तो ध्यान दो. यहां कोई आता नहीं है, मैं तड़फ रहा हूं. ठीक से सांसें नहीं चल रही हैं. वह आदमी तड़फ तड़फ कर मर गया. हमारे राजगढ़ जिले के विधायक वह भी और आप तो हमारे यहां विधायक जी बैठे हैं सामने, क्या बीती इन पर. इन्होंने भी जो सच्चाई थी, उस पर नाराजगी व्यक्त की है, उसके खिलाफ बोले भी. इसी प्रकार हमारे पूर्व विधायक थे मनमोहन सिंह बट्टी जी. उनकी बेटी को, जब उन्होंने कहा कि हम तो मर ही रहे हैं, कम से कम हमारी बेटी को मिलवा दो एक बार. हम उनको देख लें, उनको भी नहीं जाने दिया. वार्ड में दिन दिन भर कोई जाता नहीं था. एक हमारे मित्र हैं सुबोध अग्निहोत्री जी, 25 साल उन्होंने आपकी पत्रिका स्वदेश में काम किया और प्रभास जी के भी पारिवारिक संबंध हैं. उन्होंने उसको भर्ती तो करवा दिया. लेकिन वह तड़फ तड़फ कर बीच में वहां से छोड़ कर आये, तब बच पाये. अगर उसी अस्पताल में बने रहते तो वे भी शायद आज हमें दोबारा देखने को नहीं मिलते. तो ऐसे लोगों की अगर हम कहें कि कांग्रेस के समय में गलत आवंटन हुआ है, तो आपने तमाम सुधार किये, तो उसका भी सुधार करो और ऐसे आदमी को जो लगातार व्यापारी है, बड़ा आदमी बन जाता है पैसे के लिये, कमा कमा कर के तो लोगों की फिर उसके प्रति रुचि बढ़ जाती है. ये व्यापारी लोग जो हैं ऐसे, सभी के लिये नहीं कह रहा हूं, बहुत अच्छे भी हैं, लेकिन ऐसे कुछ लोग हैं, जो बेरहम हैं, जिन्होंने सुनवाई नहीं की.तो ऐसे लोगों को तो कुछ दंडित करना चाहिये. ऐसे लोगों को चिरायु अस्पताल जैसे, जिसका नाम चिरायु है, लेकिन काम कर रहा है, मरायु जैसा।
ऐसे लोगों पर कड़ा प्रतिबंध लगाना चाहिये. आयुष्मान योजना का भी पैसा उसी को ज्यादा जा रहा है. अगर कोई जन प्रतिनिधि, एमएलए, परिवार के लोग हैं, बोलते हैं कि कैसे भी हम लोग अपने परिवार के व्यक्ति के दर्शन कर लें, बात कर लें. डाक्टर साहब से बात करा दो, हमारे भाई के प्राण बचायें. अस्पताल में मतलब दिन में देखने की व्यवस्था करा दो. इस वार्ड से जनरल वार्ड में शिफ्ट करा दो, तो कम से कम कोई देखने आये. इसके लिये भी उसने बात करना, जो पीड़ित परिवार थे, उनके लोगों से, परिवार के लोगों से बात करना उचित नहीं समझा. कई गये मिलने. जैसे डॉक्टर साहब के घर में बड़े भाई हैं एक, अरुण गोयनका जी, उनके घर पहुंचे. उनसे निवेदन किया कि आप हमारे परिवार को मिलवा दो. जनरल वार्ड में शिफ्ट करवा दो. उसने कह दिया कि मेरे पास टाइम नहीं है. आप अपना काम करिये, मैं अपना काम करुंगा. यह इतना विद्वान आदमी है अजय गोयनका. कोरोना में क्या क्या नहीं हुआ. पूरे प्रदेश में मुख्यमंत्री जी, आपने आश्वासन दिया था कि जो पीड़ित लोग हैं, सरकारी कर्मचारी हैं, अगर उनकी कोरोना में मृत्यु हुई है, तो उनके परिवार को नौकरियां दी जायेंगी, कुछ राहत दी जायेगी. लेकिन ऐसे परिवार के तमाम लोग अभी तक भटक रहे हैं. उनको अभी तक नौकरी नहीं मिल पाई. कई लोगों को आपने पैसा देने की बात कही थी. हम 50 लाख रुपये देंगे. वह भी अभी नहीं मिल पाये. इस पर भी जरा आप सहृदयता से उनकी मदद करें.
नेता प्रतिपक्ष कहा की मुख्यमंत्री जी आपसे दो बार मिल चुका. यह भिण्ड जिले का है. भिण्ड जिले में 2018 और 2020 में ओला और अतिवृष्टि से 46 किसानों के खेत में नुकसान हुआ. आर.आई.,पटवारी,नायब तहसीलदार और कृषि विभाग के अधिकारियों ने सर्वे किया और जो सर्वे हुआ उसमें जिन किसानों का नुकसान पाया गया उनके लिये सरकार ने 32 करोड़ रुपये स्वीकृत किये और एस.डी.एम.,तहसीलदार ने क्या किया जो पीड़ित किसान थे बकनासा,बरोना,केथोदा,छरेटा गांव के इनको पैसे नहीं दिये और जहां ओले नहीं गिरे थे और सरकार की जो सूची आई गांव के नाम से कि इन गांवों के खाते में राशि दी जाए परन्तु कनीपुरा और तीन गांव ऐसे हैं जहां किसानों के खेत में ओले नहीं गिरे,कोई नुकसान नहीं हुआ उनके खाते में पैसे डाल दिये. तरकीब क्या सोची कि पैसा जिनको डाला उन्हीं के नाम से लिस्ट में मंजूर किया और ट्रेजरी के अधिकारी,एस.डी.एम. जिनके पास ड्राईंग,डिस्बर्सिंग पावर थी इन लोगों ने मिलकर जिन गांवों में ओले नहीं पड़े वहां के लोगों के खाते में पैसे डाल दिये. मेरे पास प्रमाण हैं. मैंने प्रमाण दिये. सिद्ध हो गये. किसान दो साल से लड़ रहे हैं. हमने धरना दिया. प्रदर्शन किया. आंदोलन किया. कलेक्टर के पास 17 बार लोगों ने शिकायत की. कमिश्नर को की. भोपाल में शिकायत की और हमने दो बार मुख्यमंत्री जी से मिलकर बताया और जब हमने जोर लगाया तो 95 लाख रुपये वसूल लिये. दो पटवारी सस्पेंड कर दिये लेकिन जिन ट्रेजरी के अधिकारियों,एस.डी.एम.,तहसीलदार पर, जांच में रिपोर्ट भी आई कि भ्रष्टाचार हुआ है. हमने मार्च में ध्यानाकर्षण भी लगाया. उस दिन गोविन्द सिंह राजपूत उपस्थित नहीं थे. उसका जवाब दिया विश्वास सारंग जी ने और आपने स्वीकार किया कि भ्रष्टाचार हुआ है. हम कार्यवाही करेंगे. जांच करेंगे. हमने कहा कि जब सिद्ध हो चुका तो जांच काहे की. हमने प्रमाण दिये. खाते नंबर दिये और जिन गांवों में ओले नहीं गिरे वहां एक व्यक्ति के नाम पर 16 बार पैसे डाले गये. उसमें पटवारी भी शामिल थे. सब शामिल थे नीचे से ऊपर तक. पैसा निकालो. 5-10 हजार दूसरों को दो और बाकी के ले लो और उसके बाद भी कार्यवाही हुई. मुख्यमंत्री जी मैं आपसे दो बार घर पर मिला हूं. आपने कहा कि सजा मिल गई. 95 लाख अगर दो पटवारियों ने जमा करा दिये लेकिन उसमें करीब 5 करोड़ रुपये खाये हैं. 2018 में भी ग्राम- बालन के पास वहां सरकारी जमीन पर मुआवजा बंट गया. वह खसरा नंबर भी मंत्री जी ने जवाब में स्वीकार किया कि सरकारी जमीन पर मिला है. हमने कहा कि प्रमुख सचिव रस्तोगी साहब को जांच दे दो. वह ईमानदार व्यक्ति हैं और सही दोषी व्यक्तियों पर कार्यवाही होगी वे जेल जाएंगे. मंत्री,विश्वास सारंग जी ने कहा कि कमिश्नर,चंबल से जांच करा देंगे. दो महीने हो गये आपके विधान सभा में आश्वासन के बाद भी. जांच के बाद काहे की जांच.
जब पूरे प्रमाण दे दिये, देख लो, ट्रेजरी के दस्तावेज हैं, खजाने में पैसा जमा कराने के दस्तावेज हैं, पूरी जांच आपके सामने रखी है. हमारा अनुरोध है कि कम से कम न्याय दो जो किसान भटक रहे हैं उनको मुआवजा मिल जाये. जो नुकसान हुआ है वह क्षतिपूर्ति हो जाये, सरकार चाहेगी तो वसूली हो जायेगी, जब हमने अकेले लड़कर 95 लाख करा दिये. (श्री सज्जन सिंह वर्मा जी के बैठे-बैठे कुछ कहने पर) बजट पर नहीं है, यह बजट थोड़ी है, यह सरकार का भ्रष्टाचार है, हम भ्रष्टाचार पर बोल रहे हैं.
दूसरा उदाहरण उसी तहसील का, सरकार में बड़े-बड़े कारनामें हो रहे हैं. भिंड जिले की गोहद तहसील में क्योंकि वहां एमएलए ज्यादा बदल जाते हैं, रिजर्व सीट से एक बार आते हैं दोबारा हार जाते हैं. अध्यक्ष जी वहां तीन कोटवारों की नियुक्ति का
3 कोटवार और एक भृत्य की वर्ष 2018 में नियुक्ति हो गई, वर्ष 2021 के बीच जब हमने मामला उठाया वहां न कोटवार हैं न उनके नाम हैं दूसरे लोगों के नाम से उनकी नियुक्त वहां है नहीं और आपका तहसीलदार और एसडीएम जो बिल मंजूर करता है तो वह मंजूर करता रहा, करीब 3 साल तक तनख्वाह लेता रहा और ट्रेजरी वाले बिल पास करते रहे, जब उसकी शिकायत हुई, जांच हुई तो जांच में पाया गया, उन्होंने लिखकर दे दिया कि हमें तो पता ही नहीं है, एक ने कहा कि हमारे भाई वहां रहते हैं, मजदूरी करते हैं पैसा आता है तो उनके पास खाता नहीं है, जब जांच हुई जांच में रिपोर्ट आ गई कि सब फर्जी है. दो-दो साल खजाने से फर्जी पैसा जा रहा है, राजस्व का पूरा का पूरा आहरण हो रहा है और उसके बाद भी, कलेक्टर पर 17 शिकायतें हैं 17 बार शिकायतें कीं, अब आपने नहीं सुनी तो कलेक्टर कहां से हमारी सुनेगा, हम तो खुद मिले थे हमारे पास दो पत्र रखे हैं एक बार खुद मिले थे एक बार डाक से भेजा था, एक दिनांक 28.09.22 का है और एक वर्ष 2021 का है. अब क्या ऐसे लोगों के खिलाफ कार्यवाही नहीं होना चाहिये, हालांकि करोड़ों नहीं है वह लाखों रूपये है, करीब 30-40 लाख के आसपास भुगतान हुआ है. अब उनको नौकरी से निकाल दिया और फिर क्या किया एक कोटवार है उसको बर्खास्त कर दिया कि यह बिल लेकर जाता है, वह बिल ले जाकर जमा करता था और उनके आदेश से पैसा लाकर दे देता था तो उसको बर्खास्त कर दिया, लेकिन जो दोषी हैं, इतना बड़ा घोटाला ट्रेजरी में हो गया, एसडीएम खुद फंसा हुआ है, हमने सब जगह लिखित में दीं, शिकायतें की, आंदोलन किया, धरना भी दिया लेकिन कोई कार्यवाही नहीं हुई. आखिर यह सरकार कैसे चल रही है, कभी सच्चाई पर जांच होगी, हम तो मय दस्तावेज के सारे प्रमाण दे देंगे.
नेता प्रतिपक्ष ने बताया की नर्सिंग कॉलेजों के घोटाले तो जगजाहिर हैं, क्या-क्या नहीं हुआ नर्सिंग कॉलेजों में, नर्सिंग कॉजेल के जो नॉर्म्स थे 100 बेड का अस्पताल और 22 हजार वर्गफीट में भवन बनना चाहिये. हमारे पास यह रिकार्ड है एक में तो आगे भैंसे बंधी है, एक कमरे का है वहां पर नर्सिंग कॉलेज चल रहा है. ऐसे करीब साढ़े पांच सौ नर्सिंग कॉलेज हैं, एफआईआर दर्ज हो गई इसके लिये धन्यवाद, दो, तीन, चार लोग गिरफ्तार हो गये, लेकिन छात्रों को बर्बाद करने का मानव बम बना दिये बिना पढ़े लिखे.
हरियाणा के, पंजाब के, दिल्ली के, बिहार के लोग यहां से फर्जी डिग्री लेकर चले गये हैं, न कभी कॉलेज लगे, न अस्पताल है, न डॉक्टर है, एक-एक व्यक्ति, कई ऐसे फैकल्टी में लोग हैं, जो वहां पर कहीं प्रिंसिपल हैं, कहीं प्रोफेसर हैं, कहीं असिस्टेंट प्रोफेसर हैं, पांच जगह एक व्यक्ति, यह कौन सा जादू पढ़ आये बंगाल से, ये जगह-जगह पहुंच जाते हैं. जैसे एक बार रावतपुरा महाराज मंदिर दर्शन करने हम गये, तो हमने कहा कि महाराज कहां हैं तो बोले ऊपर हैं, हम गये ऊपर तो बोले नहीं-नहीं अभी नहीं जाओगे छत पर, हमने कहा काये क्यों नहीं जायेंगे, अरे बोले अभी बंगाल में काली माई की पूजा कर रहे हैं.
डॉ.गोविन्द सिंह ने कहा देखो मैं तो ढोंग में विश्वास नहीं रखता पंडित जी, सुबह सुबह जब पांचवी क्लास में थे, तब से हनुमान चालिसा, बजरंग बाण, गायत्री जी का मंत्र, शिवजी का मंत्र और लेकर हमने लगाई अगरबत्ती, जय बजरंग बली तोड़ दुश्मन की नली और निकल गये इसलिये कह रहे हैं कि इनको जरा देखें मुख्यमंत्री जी, इसमें बहुत से बच गये हैं, इन पर कार्यवाही करा दें, दोषियों को जरा पता लगे कि जे गढ़ गये, हालांकि गढ़ना तो आपको अधिकार नहीं है, सजा देना तो न्यायालय का काम है, लेकिन आज आप इतने सत्ता में, मद में बिल्कुल घमंडी हो गये हो. हम दो भाईयों की संपत्ति संयुक्त परिवार में रहते थे, बंटवारा हो गया, आपने बुलडोजर दूसरे के ऊपर कर दिया, अरे भाई यह आपका कहां न्याय है।
न्यायपालिका को दंड देने का अधिकार है, कार्यपालिका को नहीं है, लेकिन आजकल हमारे मुख्यमंत्री जी न्यायाधीश भी बन गये हैं, लगातार लोगों को रोंधते चले जा रहे हैं, जे नहीं देख रहे हैं, अरे भाई अपराध किया है तो आप गवाह दो, सबूत दो, उनको फांसी पर लटकवाओ, जेल पहुंचाओ, सजा कराओ, आप ही न्याय करने लगे, लेकिन चल रहा है, जब तक आपका है चलेगा, समय है. इस प्रकार रावण का भी अंत हुआ था सबका होगा, हमारा भी होगा अंत तो सबका होता है, का जिंदा रहें, अमर होकर आये का हम आप अब आप बताओ एक ओर घोटाला. दूसरा यह एक हजार करोड़ रूपये का एन.पी.एस. घोटाला है, यह शायद आपकी जानकारी में नहीं आया होगा, यह शायद भोपाल का ही है, भोपाल में जो 13 मेडीकल कॉलेज हैं, उनमें करीब तीन हजार तीन सौ शासकीय मेडीकल चिकित्सक डॉक्टर हैं, नर्सिंग हैं, पैरामेडीकल स्टॉफ है, क्लेरीकल कर्मचारियों की संख्या कुल मिलाकर ऐसे लगभग पचास हजार के आसपास कर्मचारी हैं. न्यू पेंशन स्कीम आपने लागू की है, न्यू पेंशन स्कीम में उनका फंड कटता है और उतना ही दिया जाता है, यह भारत सरकार के तहत योजना है. आठ सौ करोड़ रूपये जमा हो गये हैं. कर्मचारी तीन महीने से मेडीकल कॉलेजों के परेशान हैं, धरना दे रहे हैं, ज्ञापन दिया, हमसे भी कई बार मिले, विधानसभा प्रश्न भी लगवाया. यह पैसा जमा होना चाहिये था, एक नये खाते में जमा होना चाहिये था, लेकिन पूरे मध्यप्रदेश के उसमें न कराकर मेडीकल कॉलेज के डीन के खाते में जमा करा दिया है, अब वह पैसा कहां उपयोग हो रहा है? डीन को क्या अधिकार, किस नियम के तहत, आठ सौ करोड़ रूपये मेडीकल के कॉलेज में कर दिया और उसका ब्याज भी नहीं मिल रहा है, अब जब रिटायर होंगे तो एन.पी.एस. में उनको कैसे पेंशन देंगे आप, इसका भी पता कर लें यह खाते में हैं भी या पूरा गायब हो गया है. बस एक आध विषय थोड़ा सा है. इसी प्रकार से इसमें बताया है. उसी प्रकार से आयुष्मान कार्ड से घोटाला, उनको प्रायवेट अस्पताल बिना देखे कैसे मंजूरी दे रहे हैं ? अस्पतालों में डॉक्टर्स नहीं हैं, कम्पाउण्डर नहीं हैं, उपकरण नहीं हैं, मरीज भर्ती नहीं हो रहे हैं. फिर एक-एक हॉस्पिटल से आपने एक-एक, दो-दो करोड़ रुपये वहां से ले लिये हैं और वीडियो भी वायरल हो चुका है कि पैसा लेन-देन कैसे हो रहा है. जिनके भी वीडियो वायरल हुए, उनकी भी जांच नहीं हुई, उन पर कार्यवाही नहीं हुई. मुख्यमंत्री जी, क्या आपका इसी प्रकार सुशासन चलेगा ? ठीक है, जब तक चलता है, तब तक आप चलाइये. रावण का भी चल गया, हिटलर का भी ऐसे ही चला था. कल के दैनिक भास्कर समाचार-पत्र में छपा है कि मनरेगा में अकेले हमारे भिण्ड जिले में जांच करा लो, अन्यथा हमारे खिलाफ कार्यवाही कर देना. मनरेगा के तहत भिण्ड जिले में सबसे ज्यादा गोहद में और सबसे कम लहार में है, इसलिए मेरी थोड़ी निगाह रहती है. कम से कम भिण्ड जिले में 50 करोड़ रुपये से ऊपर का ही घोटाला हुआ है, तालाब बने नहीं हैं, आपकी सुदूर सड़क योजना में सड़क बनती थी, वह सड़क नहीं बनी है. मुख्यमंत्री जी, यह सच्चाई है. भिण्ड जिले में लेबर नहीं है. भिण्ड जिले में एक भी मजदूर नहीं मिलता क्योंकि हमारे क्षेत्र के 1 से 1.25 लाख लोग 18 वर्ष के सामान्य परिवार के किसान के बेटे पूरे देश में रोजगार करने चले गए हैं. वे हर जगह मिल जायेंगे. अभी हम कन्याकुमारी गये थे, वहां कुछ लोग पानी पुरी के ठेले लगाए हुए मिल गए. उन्होंने कहा कि ‘डॉक्टर साहब, राम राम, तो हमने कहा कि तुम कहां के रहने वाले हो तो उन्होंने कहा कि हम करियावली के हैं. मैंने कहा कि तुम यहां क्या कर रहे हो तो उन्होंने कहा कि फुल्की बेचने का काम कर रहे हैं. उनकी एक दिन कमाई वहां पर 1,000 रुपये, 1,200 रुपये तथा 1,500 रुपये हो जाती है, तो सब गांव के गांव खाली हो गए हैं, वहां केवल बुजुर्ग लोग मिल रहे हैं, तो इसलिए वहां पर एक सिंगल मजदूर भी नहीं है. अब वहां मजदूर नहीं मिल रहे हैं, यह 100 प्रतिशत सच्चाई है, लेकिन मशीनों में भी काम तो हो जाये, लेकिन काम ही नहीं हो रहा है, केवल बस कागजों में बन जाता है, कागजों में हो गया, हम नाम ही नहीं ले रहे हैं, आपको प्रमाण भी देंगे और 20 प्रतिशत तो जिला पंचायतें को वहां दे दो. अब मिल-बांटकर खाओ, जब चोर-चोर मौसेरे भाई हैं, का किस्सा हो गया है, तुम भी खाओ, हम भी खाएं, तुम भी चोर, हम भी चोर हैं. मिल-बांटकर खाओ, यह हालात हैं.
नेता प्रतिपक्ष ने कहा की खण्डवा में 5 करोड़ रुपये रोजगार गारंटी का अकेले एक पंचायत में घोटाला हो गया है. सिवाना में दुबई, कतर और दुबई में रहने वाले उनके रिश्तेदार के नाम पर मजदूरी निकाल ली गई. हिन्दू परिवार में मुस्लिम सदस्यों को जोड़कर 3,000 फर्जी जॉबकार्ड बनाये गए. फिर हम लोगों ने कुछ साथियों से पूछा, जिस पत्रकार से भी हमने बात की तो वे बोले कि हम गांव में गए थे, हमने जॉब कार्ड देखे, सब फर्जी थे, तब हमने यह लिखा है. हमने कहा कि इसमें ऐसा तो नहीं है कि गप्प लिख दिया गया हो. यह बिल्कुल सच्चाई है, आप आ जाओ, हम दिखा देंगे. इस तरह का पूरे प्रदेश में हो रहा है. हम यह नहीं कहते हैं कि यह आपकी देख-रेख में हो रहा है, लेकिन आखिर अधिकारी इतने निरंकुश क्यों हैं इतनी छूट उन्हें क्यों है कि खुले आम लूट हो रही है ? फिर हम आपको शिकायतें कर रहे हैं. हमने जो गोहद का मामला बताया था, उसकी कम से कम 20 शिकायतें हुईं. हम कलेक्टर से मिले, हमने कलेक्टर को पत्रकार वार्ता में कहा. हालांकि कलेक्टर के पैसे लेने की शिकायत नहीं है, वह स्वयं नहीं हैं. वे 2-3 अधिकारियों की गिरफ्त में हैं. वह खुद सज्जन व्यक्ति हैं. अभी हमने जब उसके खिलाफ पत्रकार वार्ता लगाई तो उसको बड़ा कष्ट हुआ कि वह इसमें नहीं हैं. लेकिन कहीं न कहीं से पता चल ही जाता है कि कौन सा कैसा अधिकारी है ? क्या कर रहा है ? श्री पघारे एडीएम, जिसका आपने अभी-अभी ट्रांसफर कर दिया. उसे साल भर भी नहीं हुआ, वह खुद ही चला गया. विधायक निधि में हम राशि मंजूर करें, लेकिन 4-4 महीने तक फाईल ही नहीं लौट रही है. हमने कहा कि दुबे, हमारा सब इंजीनियर है, हमने कहा कि फाईल 4 महीने से क्यों नहीं लौट रही है. वहां एक अधिकारी है.
वहां एक योजना अधिकारी है, उसको हमने डांटा, 4-4 महीने फाइल रखे हों, वह बोला साहब आप हमें क्यों डांट रहे हो, हम क्या करें, फाइल तो वहां रखी है. तो वह चाहता था कि विधायक निधि, सांसद निधि से कमीशन मिले, उसने पीडब्ल्यूडी के इंजीनियर से कहा कि आप तो कमीशन खाते हो, हमें भी दो, पहले यहां दो, तब होगा. हमने कहा कि फाइल कहां रखी है तो फाइल उसके टेबल पर रखी है, वहां पर करीब 40 फाइलें रखी थी. मैंने उसको फोन लगाया कि पगारे जी, हमने कहा विधायकों की बड़े हिम्मती हो, बताओ कितने का चैक काट दे, तो कहने लगा, अरे साहब मैं नहीं हूं, मैंने तो कर दिया, वहां करीब 40 फाइलें रखी थी, हमारी भी फाइल थी और माननीय विधायकों की थी, तो मैंने कहा कि मैं यहीं भिण्ड में हूं मैं आ रहा हूं आपके पास, जब तक मैं पहुंचा, मैं तो लहार में था, ऐसे ही कह दिया था, जब तक मैं पहुंचा तो उसने उसको बुलाया कहां है, किसको शिकायत की है, तो उन्होंने कहा हमें पता नहीं. तत्काल उसने सभी में दस्तखत किया और फाइलें दे दिया. हमने कहा कि अब कैसे फाइल एक घंटे में आ गई, तो कहा नहीं साहब दस्तखत तो कर दिया था, फाइल ने नहीं गया. ये हालत है आपके अधिकारियों को, अभी उसका ट्रांसफर हो गया, चला गया.
इसलिए कभी कभी आपने जो अधिकार छीने हैं, पंचायतों के, जिला पंचायतों के. आपने अब वेतन का लालच दे दिया है, और बढ़ाओ, खुश करो, वे ऐसे खुश नहीं होने वाले हैं, आप उन्हें अधिकार दीजिए, वे भी जनता से चुनकर आए हैं. पहले योजना समिति में हमने कहा शासन को अधिकार आप इतने मत दो, लेकिन सब पर निगाहें हैं. अगर दवाईयां खरीदी जाती थी, तो जिला पंचायत के पक्ष विपक्ष सभी के सदस्य रहते थे, स्वास्थ्य समिति इसमें देखती थी कि माल आया या नहीं आया. कंपनी का चेक करती थी, अच्छी क्वालिटी की दवाएं हैं या नहीं हैं. आपका जो पोषण आहार का पैसा आता था, तो पहले वहां जाता था, सभी का कंट्रोल था, अब वे सभी अधिकारी निरंकुश हो गए और कुछ है भी तो पंचायतों के अधिकार छीन लिए, कहते हैं कि जनपद को कोई पावर नहीं है, सीधे भेजा, जिला पंचायत की जो भी योजनाएं हैं, उसमें जनपद को कोई पावर नहीं है, सीधे जाकर, यदि पावर भी है तो सीईओ होने नहीं देते, तो इस पर थोड़ा सुधार करवाइए.
डॉ. गोविन्द सिंह ने कहा की पहली बात ये सिंचाई विभाग का है आपका कारम बांध, इसमें दिल्ली की जो कंपनी थी, उसको ठेका दिया और उसने जाकर हमारे भिण्ड जिले के आपकी पार्टी के आगे के टिकट के उम्मीदवार मेहगांव से उनको मिल गया, वे ब्लैकलिस्टेड थे, उन्होंने तीसरे अपने सहयोगी को पार्टनर बना लिया, पहले उन्होंने कमीशन लिया, पहले वाले ने फिर उन्होंने कहा हमारा हिस्सा दो कम तुम्हें दे रहे हैं. पेटी कान्टेक्ट पर दे दिया. अब उसमें से करीब 25 से 30 प्रतिशत तो बंट गया, कुछ अधिकारियों ने लिया होगा, अब वह ठेकेदार आखिरी था, उसने कहा कौन पूछे भाजपा का बड़ा नेता है इसलिए कोई कार्यवाही नहीं होना है।
अध्यक्षीय सदन में घोषणा. करते हुए कहा की आज भोजनावकाश नहीं होगा.
डॉ. गोविन्द सिंह – ने कहा की और उन्होंने क्या किया आपको, उसमें मैं स्वयं गया था, उसमें बड़े बड़े बोल्डर डाल दिए. एक तो पेड़ कटा था, बोल्डर डाल दिए तो उसमें थोड़ी सांस हो जाती है, पानी आया, कच्चा बांध था, अब पेड़ पर कैसे रोलर चलेगा, तो उसमें छोटे छोटे छेद रह गए, अब बांध टूट गया. अभी तक कोई गिरफ़तारी नहीं हुई, न उसमें कोई काम हुआ. दूसरा आपके साथी अशोक भारद्वाज जी जिन्होंने अभी उनके छोटे भाई के नगर-पालिका मोह के अध्यक्ष थे वहां पर पेयजल योजना के लिये आपने उसमें 20-21 अथवा 29 करोड़ रूपये मंजूर किये. यह योजना सिंध नदी में पानी रोकने की है. वहां से 17 किलोमीटर की लाईन डली उस योजना का पूरा पैसा बर्बाद हो गया है. वहां पर नहर चलाते हैं तो फव्वारे निकलते हैं. उसी नदी में लहार की योजना भी बन रही है. आप उसकी जांच करा के देख लो पूरा का पूरा 20-21 अथवा 29 करोड़ रूपया चला गया है. मोह में भी आपकी पार्टी का अध्यक्ष है. अभी दोबारा बन गया है आप उनसे पूछो कि वहां पानी मिल रहा है क्या तीन-चार साल से योजना बन गयी और यही श्रीमान जी ठेकेदार थे आखिर उनको इतनी छूट क्यों दे रहे हो. कम से कम आप उसमें इतना तो करें कि टेंडर ज्यादा में ले लें और ठेकेदारी करें. वह बड़ा आदमी है वहीं जाकर के सब लोग नत-मस्तक होते हैं. आज ये प्रभारी मंत्री हैं उनके घर पर ही पहुंच जाते हैं भोजन चल रहा है तो काहे का डर जब सईंयां भये कोतवाल तो डर काहे का. वहां पर सामान्य योजना के कार्यक्रम वहीं पर चला रहे हैं उनके बंगले के अंदर सब अधिकारी बैठे हैं. वहीं पर विकलांगों को सायकिल बंटवा रहे हैं. तो उनको डर काहे का है. उनसे तो कलेक्टर भी डरता है. उनसे सब डर रहे हैं. एक मंत्री हैं एक का नाम तो ले लिया है. उनके यह परममित्र हैं वहां पर गरबईंयां डालते हैं आखिर उनको कोई डर नहीं हैं. ऐसे लोग जो पैसे का उपयोग कर रहे हैं. कुछ तो पैसा लगे उससे जनता का तो हित हो. इसकी भी आप जांच करा लें. पन्ना जिले में झुमटिली बांध था वह भी टूट गया है. बुंदेलखंड पैकेज योजना में जो काम लिये थे उसकी स्थिति भी अच्छी नहीं है. एक बार सिंचाई की आखिरी बात कहना चाहता हूं. धरमपुरी भी आपका है वहां पर आपने कुछ नहीं किया. अभी एक श्रीमान जी हैं जिनके खिलाफ शिकायत हमने की उसको विधान सभा में भी रखा उसमें सब असत्य जवाब मिले. अम्बाह बोरसा में पिछले पांच वर्षों से नहर की मिट्टी की सफाई नहीं हुई है. वहां पर हर साल होती है. वहां पर करोड़ो रूपये का घोटाला हो रहा है उसमें भी करोड़ो रूपये खा रहे हैं. वहां पर कोई नहीं सुन रहा है तो ट्रेक्टरों और जेसीबी से वहां पर मिट्टी की सफाई कर देते हैं. आप इसकी जांच करा लें इसमें आपकी पूरी सचाई का पता लग जायेगा. वहां पर कोई काम नहीं कराया है और वहां पर पूरा पैसा निकल रहा है. वहां चीफ इंजीनियर झा यह कार्य उनकी देख रेख में चल रहा है. उसकी हमने शिकायत की लोगों ने शिकायत की हमने उसका पत्र भी लिखा आपने उसकी जांच उसी को ही दे दी. इसके लिये तो आपको पद्मश्री अवार्ड देना चाहिये. जिसकी शिकायत उसी को उसकी जांच दे दी है. वहां पर क्या न्याय होगा ? ग्वालियर के चीफ इंजीनियर को राजघाट का भी चार्ज दे दिया. डबल चार्ज दोनों जगहों से लूटो अगर आपमें कोई दोष नहीं है आप कुछ गड़बड़ घोटाला नहीं कर रहे हैं तो आप उनको इतना संरक्षण क्यों दे रहे हैं. आप विधान सभा की धज्जिया उड़ाओ प्रश्नों के गलत जवाब दो. जिसकी शिकायत करें उसी को उसी की जांच दे दो आखिर कुछ तो थोड़ा-बहुत लिहाज करो आपने तथा माननीय मुख्यमंत्री जी ने मेरी बातों को ध्यान से सुना आपका बहुत बहुत धन्यवाद.