कोरोना काल में तकनीक संकटमोचक बनकर सामने आई
एमपीपोस्ट द्वारा सकारात्मक डिजिटल जर्नलिज्म के दो दशक के अवसर पर आज विशेष सीरीज के तहत आयोजित ऑनलाइन आयोजन फेसबुक लाइव ” वर्चुअली टुगेदर इन पोस्ट कोविड वर्ल्ड ”विषय पर एक संवाद
भोपाल 07, जून 2020। कोरोना वायरस के दौर में लॉकडाउन की अभूतपूर्व परिस्थितियों के बावजूद देश अगर विचलित हुए बिना आगे बढ़ता रह सका तो उसमें तकनीक की महत्वपूर्ण भूमिका रही। अगर तकनीक न होती तो भारत सहित विभिन्न देशों में कोरोनावायरस से होने वाला आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक और शैक्षणिक दुष्प्रभाव और अधिक हो सकता था। लोगों के स्वास्थ्य के संदर्भ में और भी ज्यादा बड़ी कीमत देनी पड़ सकती थी। लेकिन कोरोनावायरस का संकट ऐसे समय पर आया जब हमारे पास ज़रूरी तकनीकी शक्ति मौजूद थी और देश ने इस शक्ति का प्रयोग इस तरह किया कि हमारा प्रशासनिक, चिकित्सकीय, बैंकिंग, शैक्षणिक आदि तंत्र काफी हद तक सुचारु रूप से चलते रहे। तकनीक ने संभवतः पहली बार आम आदमी के दैनिक जीवन को इतनी गहराई से प्रभावित किया और पहली बार हमने इतने बड़े स्तर पर उसकी सकारात्मक शक्ति का इस्तेमाल किया।
श्री बालेंदु शर्मा दाधीच, निदेशक (स्थानीयकरण तथा सुगम्यता), माइक्रोसॉफ्ट इंडिया, ने एमपीपोस्ट द्वारा सकारात्मक डिजिटल जर्नलिज्म के दो दशक के अवसर पर आज विशेष सीरीज के तहत आयोजित ऑनलाइन आयोजन फेसबुक लाइव ” वर्चुअली टुगेदर इन पोस्ट कोविड वर्ल्ड ” विषय पर एक संवाद के दौरान यह बात कही । श्री दाधीच ने कोविड-पश्चात के दौर में तकनीक के विभिन्न आयामों पर विस्तार से चर्चा की जिनमें सोशल, क्लाउड, एनालिटिक्स, मोबाइल, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, संचार, कोलेबरेशन, ई-गवरनेंस, ई-कॉमर्स, ई-शिक्षा आदि प्रमुख थे। उन्होंने कहा कि आज अगर कोरोनावायरस का टीका तथा दवा निर्मित करने में सुखद संकेत मिल रहे हैं तो इनके पीछे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, एनालिटिक्स और क्लाउड कंप्यूटिंग की भी भूमिका है जिन्होंने इन प्रक्रियाओं को ज्यादा तेज और प्रभावी बना दिया।
कोरोना काल ने लोगों को टेक्नोलॉजी के सहारे न केवल वर्चुअली करीब ला दिया है वरन हेल्थ प्रबंधन को मजबूती प्रदान की। लोगों ने इस सुविधा का बहुत ही तरीके से सकारात्मक उपयोग किया है। टेक्नोलॉजी ने कोरोना काल के लॉक डाउन को जहाँ एक ओर सफल बनाया है वहीँ दूसरी ओर टेक्नोलॉजी आधारित काम प्रभावित नहीं हुआ। माइक्रोसॉफ्ट का काइजाला एप स्वास्थ्य सेवाओं सहित अनेक सुविधाएं जनमानस को उपलब्ध करा रहा है, इसके अलावा माइक्रोसॉफ्ट की कई जनोपयोगी सेवाएं हैं।
उन्होंने विस्तार से बताया कोरोना संकट काल में दो चीजें हर आम और खास के लिए प्रासंगिक हो गयी हैं-पहली,सोशल डिस्टेंसिंग और दूसरी, सोशल मेसेजिंग. इन दोनों का असर हमारे घर, दफ्तर, कारोबार, अर्थव्यवस्था, सामाजिक जीवन, शिक्षा, यहां तक कि साहित्य-संस्कृति पर भी पड़ा है. ज्यादातर लोग अनायास ही इनके इतने निकट आ गये, हालांकि अब ऐसा लगता है कि यह संबंध लंबे समय तक चलेगा. सोशल मेसेजिंग को महज चैट के रूप में देखने की बजाय डिजिटल संपर्क के प्रतीक के रूप में देखा जा सकता है, जो अपने व्यापक अर्थों में बहुत सारी दूसरी घटनाओं को समेट लेता है, जैसे- ऑनलाइन कोलेबोरेशन, डिजिटल मनोरंजन, आभासी बैठकें, डिजिटल कारोबार और आभासी शिक्षा आदि. इस त्रासद दौर में जो चंद सकारात्मक बातें हुई हैं, उनमें से एक है हम सबका तकनीक के करीब जाना, उसकी क्षमताओं से परिचित होना और उसका इस तरह इस्तेमाल करना कि अपने कामकाज को कुछ हद तक सामान्य ढंग से चलाया जा सके।
तकनीक की शक्ति, नहीं होती तो इस महामारी से निपटना निजी तथा राष्ट्रीय स्तर पर मुश्किल होता
तकनीक, विशेषकर इंटरनेट और क्लाउड की शक्ति, नहीं होती, तो इस महामारी से निपटना निजी तथा राष्ट्रीय स्तर पर बहुत ज्यादा मुश्किल होता. एक कहावत है कि अगर आप तीन सप्ताह तक किसी खास अंदाज में काम करते हैं या किसी खास चीज का प्रयोग करते हैं, तो वह आपकी आदत बन जाती है. तकनीक का हमारी आदत में तब्दील हो जाना वैश्वीकरण और तकनीकी दबदबे के मौजूदा दौर में एक अच्छी घटना है. इसी तरह कोरोना वायरस से बचाव के प्रयासों में तकनीक का बड़े पैमाने पर सहयोगी बनकर उभरना भारत में पहली बार देखा गया. तकनीक ने न सिर्फ लोगों को जोड़े रखने में, बल्कि तेजी से सूचनाएं पहुंचाने,गतिविधियों को व्यवस्थित करने और यहां तक कि संभावित रोगियों पर नजर रखने में भी मदद की है।
तकनीक की सीमा भी सामने आ गयी
ज्यादातर छोटे कामगारों के पास स्मार्टफोन नहीं, बल्कि सस्ते मोबाइल फोन हैं, जिन पर एंड्रोइड एप नहीं चलते. यहां तकनीक की सीमा सामने आ गयी. आरोग्य सेतु एप संकेत देता है कि आपके आसपास कोई कोरोना संक्रमित व्यक्ति तो नहीं है.इसी तरह, एप रखने वाले किसी व्यक्ति के संक्रमित हो जाने पर यह सरकारी एजेंसियों को सूचित करने का भी एक अच्छा जरिया है. वह तीसरे पक्ष के लिए भी जरूरी है, ऐसे लाखों छात्र लॉकडाउन में ऑनलाइन शिक्षा के दायरे से बाहर रह गये,जिनके पास स्मार्टफोन या पर्सनल कंप्यूटर नहीं है. ऐसे बहुत से लोग कोलेबोरेशन या सहकर्म के दायरे से बाहर रह गये, जिनके घर पर कंप्यूटर नहीं है या फिर अच्छी इंटरनेट कनेक्टिविटी नहीं है ।
जहां शहरी इलाकों की बड़ी आबादी का काम तकनीकी माध्यमों की मदद से चलता रहा, वहीं ग्रामीण और अविकसित इलाकों में बहुतों को पता ही नहीं चला कि ऐसा भी कोई रास्ता निकाला गया था. पता चलता भी, तो बिजली की अनुपलब्धता, डिजिटल उपकरण या फिर तकनीकी दक्षता के अभाव के कारण वे पीछे ही रहते. यदि भाषा की चुनौती तथा गरीबी से जुड़े मसले जोड़ दें, तो ऐसा लगेगा कि इस दौर में डिजिटल विभाजन बढ़ा ही है. सच यही है कि तकनीक समृद्ध लोग आगे निकल गये हैं और तकनीक वंचित पीछे छूट रहे हैं. सोशल मीडिया ने संकट काल में सूचनाओं के माध्यम से लोगों को एक-दूसरे से जोड़े रखा, लेकिन इन्हीं माध्यमों पर गलत सूचनाएं, फेक न्यूज और दुष्प्रचार ने भी जोर पकड़ा. लोगों के बीच भय और नफरत फैलाने वालों को तो अच्छा मौका मिला, क्योंकि इस समय लोगों के पास अतिरिक्त समय था।
कोरोना महामारी से जंग में काम आएगा आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस
बालेंदु शर्मा दाधीच का मानना है भारत समेत दुनिया के कई देश कोरोना वायरस कोविड-19 की वैक्सीन खोजने में जुटे हैं.जैसे-जैसे कोरोना महामारी दुनिया भर में अपने पैर पसार रही है इसकी वैक्सीन बनाने के लिए अलग-अलग क्षेत्रों में काम करने वाले एक्सपर्ट एक साथ आ रहे हैं.वैज्ञानिक, शोधकर्ता और दवा बनाने वाले आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (एआई) और मशीन लर्निंग एक्सपर्ट के साथ मिल कर इस चुनौती को कम से कम समय में पूरी करने की कोशिश में लगे हैं.आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस के पहले के दौर में कोई नई वैक्सीन या दवा बनने में सालों का वक्त लगता था।
फेसबुक लाइव दी गई फेसबुक पेज लिंक :- https://www.facebook.com/Mpposthindi/videos/1328102914246966/ पर देख सकते हैं।