म.प्र. कांग्रेस मीडिया विभाग के अध्यक्ष के.के.मिश्रा ने आज यहां जारी पत्रकार वार्ता में शिवराज सरकार पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि एक तरफ नरेन्द्र मोदी भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी ‘गारंटी‘ दे रहे है, दूसरी तरफ मध्यप्रदेश में हुए अरबों रूपयों के प्रामाणिक घोटालों पर उनकी और गृह मंत्री अमित शाह की गारंटी पर आवाज कहां खो गई है? उन्होंने यह भी कहा कि म.प्र. देश का पहला राज्य है जहां विभिन्न घोटालों में राज्यपाल, मुख्यमंत्री पर एफआईआर हुई, मंत्री जेल गए, आईएएस और आइपीएस अफसरों पर भी विभिन्न किस्म के माफियाओं के साथ मिलकर भ्रष्टाचार के आरोप लगे ।
यह बात अलग है कि राजनैतिक दबाव और प्रभाव के कारण भ्रष्टाचारी आज मौज कर रहे है और उन्हें पैसा देने वाले जेल की सींखचों में है । कुल मिलाकर आदिवासी, दलित, युवा, किसान, महिला और मजदूरों को ऐसे घोटालों ने विकास से दूर कर दिया है। कांग्रेस ने शिवराज सरकार के 18 सालों में हुए लगभग 253 प्रामाणिक घोटालों की एक सूची भी जारी की है जिसमें हुए प्रमुख घोटालों की धनराशि का भी जिक्र किया गया है।
शिवराज ने भ्रष्ट पदाधिकारियों को दिया संरक्षण
मिश्रा ने कल देर रात भ्रष्टाचार के एक आरोपी आजीविका मिशन के सीइओ का दायित्व निभा रहे एमएल बेलवाल जो सेवानिवृत्त हो जाने के बाद भी मुख्यमंत्री एवं मुख्य सचिव की कृपा और संरक्षण के बाद भ्रष्टाचार की गतिविधियों को निरन्तर अंजाम दिए जा रहे थे, के इस्तीफे को कमलनाथ सरकार के आने का भय निरूपित करते हुए कहा कि उन सहित ऐसे कई भ्रष्टाचारियों का अब भावी मुख्यमंत्री कमलनाथ की चक्की में महीन पिसना सुनिश्चित है । उनके आने की आहट के पहले से ही भ्रष्टाचारी चुहों का बिल से भागना भ्रष्टाचार के खिलाफ एक वास्तविक संदेश साबित होगा । मिश्रा ने यह भी गंभीर आरोप लगाया कि उक्त भ्रष्टाचारों के आरोपितों को मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव का सीधा संरक्षण प्राप्त रहा और मुख्यमंत्री ने ही प्रामणिक भ्रष्टाचार करने वाले नेताओं को संरक्षित किया है।
उन्होंने मुख्यमंत्री से यह पूछा है कि यदि मध्यप्रदेश में भ्रष्टाचार को लेकर जीरों टारलेंस है तो क्या कारण है कि वर्ष 2000-2005 में इंदौर नगर निगम पालिक के तत्कालीन महापौर, पूर्व मंत्री और भाजपा के मौजूदा विवादास्पद राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय के कार्यकाल में वृद्धावस्था, दिव्यांगों, विधवाओं और असहाय बुजुर्गों को मिलने वाली पेन्शन राशि में 33 करोड़ रूपये के हुए घोटालों को आपने संरक्षित क्यों किया ? आज तक उसके आरोपित आपके ही संरक्षण में क्यों और कैसे घूम रहे हैं?
मिश्रा ने कहा कि मेरी ही याचिका पर न्यायालय द्वारा राज्य सरकार से मांगी गई अभियोजन की स्वीकृति आपने 18 सालों से क्यों नहीं दी । यहां तक कि उच्च न्यायालय की इंदौर खंडपीठ में राज्य सरकार की और से दिए गए शपथ पत्र में यह बात स्वीकार की गई कि इस प्रकरण की अभियोजन की स्वीकृति लंबित है, यही नहीं मेरे ही द्वारा इस अभियोजन की स्वीकृति को जारी किए जाने बाबत उक्त उच्च न्यायालय में दायर याचिका क्रमांक 19271/2022 दिनांक 23 सितम्बर 2022 के पारित आदेश में माननीय न्यायालय ने तीन माह में संबंधित विभागों को उचित कार्यवाही के निर्देश दिए थे, बावजूद उसके संबंधित विभागों ने किसी भी प्रकार की सक्रियता किसके दबाव में क्यों नहीं दिखाई, यह सीधे तौर पर न्यायालयीन अवमानना है।
गिनाए भाजपा के प्रमुख घोटाले
उन्होंने प्रमुख घोटालों की राशि सार्वजनिक करते हुए कहा कि इन वर्षों में पोष्ज्ञण आहर घोटाला (15 हजार करोड़), व्यापम महाघोटाला (2 हजार करोड़), एमएचएम पेपर लीक घोटाला (100 करोड़), मिडडे मिल घोटाला (1200 करोड़), सर्वशिक्षा अभियान घोटाला (2000 हजार करोड़), स्मार्ट क्लास घोटाला (100 करोड़), पैरामेडिकल छात्रवृत्ति घोटाला (2500 करोड़), नर्सिग घोटाला (2 हजार करोड़), आंगनवाडी नल-जल घोटाला (9500 करोड़), शाला त्यागी बालिका घोटाला (1 हजार करोड़), गणवेश घोटाला (600 करोड़), पटवारी भर्ती घोटाला (800 करोड़), बिजली घोटाला (94 हजार करोड़), शराब घोटाला (86 हजार करोड़), ई-टेण्डर घोटाला (3 हजार करोड़), आरटीओ घोटाला (25 हजार करोड़), चेक पोस्ट घोटाला (50 हजार करोड़), अवैध खनन घोटाला (50 हजार करोड़), जल जीवन मिशन घोटाला (10 हजार करोड़), टोल घोटाला (15 हजार करोड़), गृह निर्माण सहकारी संस्था घोटाला (10 हजार करोड़), सीवेज निर्माण घोटाला (1100 करोड़), आदिवासी जमीन घोटाला, (50 हजार करोड़), फसल क्षतिपूर्ति घोटाला (3 हजार करोड़), चावल घोटाला (700 करोड़), बीज प्रामाणिकरण घोटाला (10 हजार करोड़), संबल और श्रम कल्याण घोटाला (8 हजार करोड़), कारम बांध घोटाला (300 करोड़), आयुष्मान घोटाला (1500 करोड़), वृक्षारोपण घोटाला (3 हजार करोड़) और महाकाल लोक घोटाला (150 करोड़)।
मिश्रा ने कहा कि यदि इन सभी घोटालों का अनुमान लगाया जाए तो यह राशि 6 लाख करोड़ रूपये के ऊपर जाती हैं जबकि मध्यप्रदेश सरकार पर अब तक 4 लाख 30 हजार करोड़ का कर्ज बोझ है और औसत 50 हजार रूपये आज पैदा होने वाला बच्चा इस कर्ज बोझ में शामिल है, इस प्रकार कुल 10 लाख करोड़ से अधिक की धन राशि यह सरकार डकार गई है ।
मिश्रा ने दूसरा गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि शिवराज सरकार ने 150 करोड़ रूपयों का राज्य शिक्षा केन्द्र, स्कूल विभाग का डयूअल डेस्क खरीद का टेण्डर जो लघु उद्योग निगम भोपाल के माध्यम से जारी किया गया था इस टेण्डर को अपनी पंसदीदा कंपनियों को अतिरिक्त लाभ दिलाने के उद्देश्य से पुरानी 2022 की आरसी जो 5590 रू.के बदले प्रति डेस्क 2023 में 7265 रू. अनुबंध किया गया जिसमें नियमों और कानून को बला-ए-ताक रख जमकर कमीशन खोरी हुई है यह भ्रष्टाचार का एक बड़ा और स्पष्ट स्वरूप सामने आया है, इस भ्रष्टाचार में म.प्र. उद्योग निगम की अध्यक्ष और विधानसभा चुनाव में डबरा निर्वाचन क्षेत्र से भाजपा की सिंधिया समर्थक प्रत्याशी इमरती देवी की संलिप्तता सामने आई है। क्या मुख्यमंत्री, जो अब संभव नहीं है, कोई कार्रवाई करेंगे?
तो लगा दो निर्वाचन भवन पर ताला
मिश्रा ने कहा कि एक ओर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सहित गृहमंत्री अमित शाह भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी गांरटी का आलाप कर रहे है, वहीं दूसरी और श्योपुर के कलेक्टर संजय कुमार ने सार्वजनिक तौर पर कहा कि जिले में मनरेगा योजना में करोड़ों का भ्रष्टाचार हुआ है, फर्जी ठेकेदारों ने इसे अंजाम दिया है । मध्यप्रदेश में ही कान्ट्रेक्टर 50 फीसदी कमीशन के आरोप लिखित में लगा रहे हैं, भाजपा के मंत्री का दर्जा प्राप्त एक नेता जसवंत जाटव यह स्वीकार कर रहे है कि यहा बिना लेन देन के कोई काम नहीं होता, इनके मंत्री महेन्द्र सिसौदिया कहते है कि रिश्वत भगवान को चढ़ाए जाने वाला प्रसाद है एवं इस डबल इंजन सरकार के सांसद जनार्दन मिश्र 15 लाख तक के भ्रष्टाचार को जायज बताते है, भाजपा ने हमसे खूब प्रमाण मांगे की 35 करोड़ प्रति विधायक खरीदे के सबूत दो, तो इनके ही नेता रोशन सिंह यादव ने हाईकोर्ट में कहा कि अशोकनगर विधायक जसपाल सिंह जज्जी ने 50 करोड़ रूपये लेकर विधायक पद से इस्तीफा दिया था, तो भ्रष्टाचार के खिलाफ दिए गए भाजपा के नेताओं के प्रामाणिक बयानों पर भाजपा क्यों मौन साध लेती है ? यह तो बात हुई नेताओं की ब्यूरोंक्रेसी भी इस भ्रष्टाचार के सागर में बराबरी से गोता लगा रही है, ऐसा क्यों है कि बड़वानी जिले में अपर कलेक्टर लोकेश जांगीड़ ने जब आरोप लगाया कि बड़वानी कलेक्टर शिवराज वर्मा पैसे नहीं खा पा रहा था इस आरोप पर उनका तबादला कर दिया गया, तो भ्रष्टाचार के खिलाफ गारंटी देने वाले मौनी बाबा क्यों बन जाते हैं, ऐसा क्यों होता है एनजीटी को टिप्पणी करनी पड़ी थी कि मुख्यसचिव बिना तैयारी के ही पक्ष रखने आ गए और म.प्र. शासन का पूरा सिस्टम ही इनकाम्पीटेंट है?
पन्ना कलेक्टर संजय कुमार मिश्रा 25 साल तक भाजपा को जिताने के लिए धमकी देते है तो ये भाजपा सरकार के आंखों के तारे क्यों बने हुए हैं। ईडी, आईटी, सीबीआई के साथ अब चुनाव आयोग भी बना भाजपा का अनुसांगिक संगठन कार्रवाई नहीं कर सकते हैं, तो निर्वाचन भवन पर ताला लगा दें।
मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी कर लें भाजपा की सदस्यता ग्रहण
मिश्रा यहीं नहीं रूके उन्होंने म.प्र. विधानसभा चुनावों में मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी अनुपम राजन पर भी गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि वे राजनैतिक दबाववश कांग्रेस पार्टी द्वारा अब तक की गई 300 शिकायतों के बावजूद भी एक भी शिकायत पर कोई निर्णय नहीं ले पाएं हैं और न ही वे भाजपा से संबंधित किसी प्रत्याशी को कानूनी नोटिस देकर भी उनसे जवाब मांगने की हिम्मत जुटा पाएं हैं । यदि वे देश के गृहमंत्री अमित शाह के भाजपा कार्यकर्ताओं को दिए गए उस संदेश से भय लग रहा है कि वे आचार संहिता के नाम पर डरे नहीं, तो कांग्रेस को उनकी योग्यता पर सवालिया निशान लगाने का संवैधानिक अधिकार प्राप्त है, उन्हें मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी को यह स्पष्ट करना चाहिए कि वे एक संवैधानिक संस्था के मुखिया हैं और किस मजबूरी के तहत वे अपने आपको असहाय महसूस कर रहे हैं, यदि वे कुछ भी नहीं कर पाने की स्थिति में हैं तो उन्हें निर्वाचन भवन में ताला लगाकर भाजपा की ही सदस्यता ग्रहण कर लेना चाहिए।