सेना में महिलाओं को स्थायी कमीशन देने संबंधी सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला राहतकारी और स्वागतयोग्य
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सेना में महिलाओं को स्थायी कमीशन देने संबंधी सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला राहतकारी और स्वागतयोग्य
महिलाओं को अवसर से वंचित करने के लिए, उन्हें कमजोर बताने वाली, संघी-भाजपाई सोच घृणित और शर्मनाक
गुरू गोलवलकर से लेकर मोहन भागवत तक दशकों पुरानी है, संघ और भाजपा की महिला विरोधी घृणित सोच : शोभा ओझा
भोपाल, 18 फरवरी, 2020
मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी मीडिया विभाग की अध्यक्षा श्रीमती शोभा ओझा ने आज जारी अपने वक्तव्य में कहा कि सेना में महिलाओं को स्थायी कमीशन देने संबंधी अपने ऐतिहासिक और स्वागतयोग्य फैसले के साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार को जो कड़ी फटकार लगाई है, उससे भाजपा व संघ का महिला विरोधी, भेदभावपूर्ण, घृणित चेहरा पूरी तरह से उजागर हो गया है।
आज जारी अपने वक्तव्य में उपरोक्त विचार व्यक्त करते हुए श्रीमती ओझा ने कहा कि देश की आधी आबादी के पक्ष में दिये गये अपने ऐतिहासिक फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि ‘‘सामाजिक व मानसिक कारण बताकर, महिला अधिकारियो को अवसर से वंचित करना न सिर्फ भेदभावपूर्ण है, बल्कि अस्वीकार्य और असंवैधानिक है, केन्द्र को अपनी सोच मे बदलाव लाना चाहिए।’’ सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डी.वाई. चन्द्रचूड़ व जस्टिस अजय रस्तोगी की पीठ द्वारा सरकार को तीन माह के भीतर ही, आदेशों का पालन सुनिश्चित करवाने की बात कहना भी, मोदी सरकार की महिला विरोधी सोच के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के कड़े रूख का स्पष्ट प्रमाण है।
श्रीमती ओझा ने कहा कि संघ की वैचारिक पृष्ठभूमि से निकली भाजपा की मोदी सरकार द्वारा न्यायालय में सामाजिक व मानसिक कारण बताकर महिला अधिकारियों को अवसर से वंचित करने की भेदभावपूर्ण, अस्वीकार्य और असंवैधानिक दलीलें, देश की जनता के लिए बिल्कुल भी आश्चर्यजनक नहीं हैं क्योंकि हम सभी जानते हैं कि संघ के सर्वाधिक पूज्य सरसंघ चालक गुरू गोलवलकर से लेकर वर्तमान सरसंघ चालक मोहन भागवत तक, महिलाओं के प्रति संघ की सोच अब तक क्या रही है!
श्रीमती ओझा ने कहा कि आज से दशकों पहले ही गुरू गोलवलकर ने महिलाओं के प्रति अपनी सोच को स्पष्ट करने हुए आरएसएस के मुखपत्र आॅर्गनाइजर में 30 जनवरी 1966 के अंक में लिखा था कि ‘‘अब यह साफ होता जा रहा है कि महिलाओं को मताधिकार देने का फैसला गलत और फिजूल था, इतिहास गवाह है कि जहां कहीं महिलाओं ने हुकूमत की है, वहां अपराध, गैर-बराबरी और अराजकता इस तरह फैली है, जिसका जिक्र भी नहीं किया जा सकता।’’ अपने उसी दुस्साहसी लेख में उन्होंने यहां तक लिख दिया था कि ‘‘महिला अगर विधवा हो और शासक हो जाए तो मुल्क की बदनसीबी शुरू हो जाती है।’’
श्रीमती ओझा ने कहा कि गुरू गोलवलकर के उक्त महिला विरोधी विचार आज भी संघ और भाजपा की सोच पर हावी हैं, गुरू गोलवलकर के निधन के दशकों बाद वर्तमान सरसंघ चालक मोहन भागवत ने भी अपनी निम्नस्तरीय सोच को उजागर करते हुए अपने एक भाषण में कहा है कि ‘‘जिसे आप विवाह संस्कार समझते हैं, दरअसल वह एक सौदा है, पुरूष, महिला से यह कहता है कि तुम मेरा घर संभालों, मैं तुम्हें भोजन व सुरक्षा दूंगा, इसलिए महिला से पुरूष का अधिकार ज्यादा है, जब तक महिला सौदे की शर्तों का पालन करती है, तब तक ठीक है, अन्यथा उसे छोड़ दो।’’
अपने बयान कें अंत में श्रीमती ओझा ने कहा कि केवल उक्त दो उदाहरणो से ही साफ है कि संघ प्रमुख या भाजपा अध्यक्ष पद पर आज तक किसी महिला को क्यों नियुक्त नहीं किया गया। सुप्रीम कोर्ट के हालिया निर्णय के बाद देश की आधी आबादी को दबाए रखने वाली, महिला विरोधी संघ और भाजपा की विचारधारा को लगा करारा झटका, महिलाओं के लिए सूकून के साथ ही शीतल हवा की सुखद बयार भी लेकर आया है।