लोकसभा सचिवालय द्वारा जारी कैलेंडर से संविधान की प्रस्तावना गायब करना, मोदी सरकार की सोची समझी साजिश
भाजपा और संघ के मन में आज भी संविधान की जगह “बंच आफ थाॅट्स”, क्रांतिकारियों की जगह मुखबिर व माफीवीर और गांधी की जगह गोडसे बसे हुए हैं : शोभा ओझा
भोपाल, 7 फरवरी, 2020
मध्यप्रदेश कांग्रेस मीडिया विभाग की अध्यक्षा श्रीमती शोभा ओझा ने आज जारी अपने वक्तव्य में कहा कि लोकसभा सचिवालय द्वारा “संविधान थीम” पर बनाए गए कैलेंडर से संविधान की आत्मा “प्रस्तावना” को ही गायब कर देना, दरअसल केंद्र की मोदी सरकार द्वारा संविधान की मूल भावना के खिलाफ हमले और सुनियोजित षड्यंत्र कि उसी कड़ी का एक हिस्सा मात्र है, जिसमें मोदी सरकार अपनी सत्ता संभालने के बाद से ही पूरी तरह जुटी हुई है।
आज जारी अपने वक्तव्य में श्रीमती ओझा ने कहा कि यह आश्चर्यजनक है कि लोकसभा सचिवालय ने संविधान पर कैलेंडर तो बनाया लेकिन उसकी आत्मा को ही नजरअंदाज कर दिया, शायद मोदी सरकार इस बात से डर गई कि संविधान की प्रस्तावना में पंथनिरपेक्ष, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक, न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता के साथ ही राष्ट्र की एकता और अखंडता को सुनिश्चित करने और बंधुता को बढ़ाने की बात कही गई है और हम सभी जानते हैं कि मोदी सरकार, इन सब आदर्शों के ठीक विपरीत आचरण कर रही है।
श्रीमती ओझा ने अपने बयान में आगे कहा कि यह संविधान पर हमले और उसकी मूल भावना के विरुद्ध षड्यंत्र की एक सोची-समझी साजिश का सुविचारित हिस्सा है क्योंकि जब कैलेंडर बन रहा था तब उसमें प्रस्तावना की बात उल्लेखित थी लेकिन जब कैलेंडर तैयार हो गया तब उसमें प्रस्तावना को सम्मिलित करने की मंजूरी लोकसभा अध्यक्ष द्वारा नहीं दी गई।
अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए श्रीमती ओझा ने आगे कहा कि भाजपा दरअसल जिस राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विचारधारा से आती है, उसने कभी संविधान का सम्मान नहीं किया बल्कि उसके द्वारा 11 दिसंबर 1949 को बाबा साहब अंबेडकर के पुतले के साथ संविधान की प्रतियां भी जलाई जा चुकी हैं, इसलिए ऐसे लोगों से संविधान को सुरक्षित रखने और उसके सम्मान की आशा करना पूरी तरह से व्यर्थ है।
अपने बयान के अंत में श्रीमती ओझा ने आगे कहा कि भाजपा और संघ के लोगों द्वारा संविधान, महापुरुषों क्रांतिकारियों और राष्ट्रपिता के प्रति जो सम्मान दर्शाया जाता है, वह दरअसल पूरी तरह से दिखावटी है क्योंकि उनके मन में आज भी संविधान की बजाय गोलवलकर की “विचार नवनीत (बंच आॅफ थाॅट्स)”, महापुरुषों और क्रांतिकारियों की जगह मुखबिर व माफीवीर और महात्मा गांधी की जगह गोडसे बसे हुए हैं, जिन्हें वे कभी भुला नहीं सकते।