आरक्षण के मामले पर भाजपा का बयान बेबुनियाद — भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के महासचिव मुकुल वासनिक
भोपाल, 17 फरवरी, 2020
आरक्षण के विषय पर देश में अनुसूचित जाति, जनजाति एवं पिछडे वर्ग के लोगों के बीच में लगातार आक्रोश बढता जा रहा है। इस आक्रोश को भांपते हुए कांग्रेस पार्टी ने पूरे देश में भाजपा के बेबुनियाद बयान का खुलासा करने की पहल की है। इसी तारतम्य में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के महासचिव मुकुल वासनिक ने 17 फरवरी 2020 को भोपाल में एक पत्रकारवार्ता के दौरान आरक्षण के मामले पर भाजपा के बयान को बेबुनियाद और तथ्यहीन बताया जिसमें भाजपा की दलील थी कि उत्तराखंड के संबंध में आरक्षण के विषय में जो मामला चला था तब कांग्रेस की सरकार थी।
एक सवाल के जवाब में मुकुल वासनिक ने कहा कि उत्तराखंड की पूर्व कांग्रेस सरकार ने कभी भी सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर नहीं की थी उत्तराखंड सरकार बनाम अवधेश कुमार व मुकेश कुमार व स्टेट आफ उत्तराखंड का सुप्रीम कोर्ट का 7 फरवरी 2020 को निर्णय भाजपा की उत्तराखंड की सरकार द्वारा दायर किये गये एसएलपी सिविल 27715 आफ 2019 19 नवम्बर 2019 में दिया गया ।
श्री वासनिक ने बताया कि इससे स्पष्ट होता है कि भाजपा की दलील और तथ्य बेबुनियाद और आरक्षण विरोधी हैं। आरक्षण के विषय का यह मामला भाजपा शासन की देने है क्योंकि कांग्रेस शासन उत्तराखंड में बहुत पहले था। जबकि विषय से संबंधित सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी भाजपा शासन के समय दायर की गई। उन्होंने बताया कि सुप्रीम कोर्ट में अपील उत्तराखंड भाजपा सरकार द्वारा डाली गई। भाजपा सरकार के वकीलों ने दलील दी और उस दलील के आधार पर गरीबों के अधिकार को रद्द कर दिया तो ऐसे में कांग्रेस की पूर्व सरकार पर आरोप गढ़ने का कोई औचित्य नहीं बच जाता।
उन्होंने एक सवाल के जवाब में बताया कि कांग्रेस पार्टी शुरू से अनुसूचित जाति, जनजाति वर्गो के कल्याण व उनके हितों की रक्षक रही है। इन वर्गो के कल्याण के लिए अनेक योजनाएं कांग्रेस पार्टी ने दी। उन्होंने बताया कि पूरे देश में आदिवासी वर्गो के लोगों को वनाधिकार पट्टा दिया जाना है जो शेष रह गये हैं यह विषय सुप्रीम कोर्ट में चला गया तो सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व की मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार व केन्द्र की मोदी सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में प्रभावशाली तरीके से पक्ष नहीं रखा गया। जिससे देश के आदिवासी वर्ग के सामने भूअधिकार पट्टे का संकट खडा हो गया था लेकिन मध्यप्रदेश की वर्तमान कमलनाथ सरकार ने उनकी चिंता रखी और मध्यप्रदेश की ओर से प्रभावी तरीके से पक्ष रखा। नतीजतन मध्यप्रदेश के जिन तीन लाख से अधिक आदिवासियों को भूअधिकार पट्टा दिया जाना है उनको देने के पहले की परीक्षण कार्य चालू हो चुका है।