भारत के संविधान की दसवीं अनुसूची,अनुच्छेद 10(2)191(2) दल परिवर्तन और एस.आर. बोम्मई (1994 AIR 1918 SC(1994) SCC1 3) क्या कहता है समझें
दल बदल के लिए संविधान क्या कहता :-
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने दिग्विजय सिंह द्वारा जो आरोप बीजेपी नेताओं पर एक दिन पहले लगाए गए हैं उन आरोपों पर आज 03 मार्च 2020 को मीडिया के सम्मुख अपनी सहमति प्रकट की है। कमलनाथ ने कहा कि हमारे विधायकों को खूब पैसों का ऑफर दिया जा रहा है। एक दिन पहले वरिष्ठ कांग्रेस नेता और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने भारतीय जनता पार्टी के नेताओं पर आरोप लगाया है कि वे राज्य में कांग्रेस के विधायकों को अपने पाले में मिलाने के लिए 25-35 करोड़ रुपए का ऑफर दे रहे हैं। दिग्विजय सिंह ने दिल्ली में मीडिया समक्ष यह बयान दिया था। दिग्विजय सिंह ने कहा था, ‘‘मध्य प्रदेश में भाजपा जब से प्रतिपक्ष में है, शिवराज सिंह, नरोत्तम मिश्रा और वे सभी जिन्होंने 15 साल तक राज्य को लूटा, अब खुलकर कांग्रेस पार्टी के विधायकों को 25 -35 करोड़ रुपए का ऑफर दे रहे हैं।’
मुख्यमंत्री और मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष कमलनाथ ने अब कहा है, की ”कांग्रेस के विधायकों को खरीदने की कोशिश हो रही है। बीजेपी के नेता डर रहे हैं कि आने वाले समय में उनके पिछले 15 सालों के भ्रष्टाचार का खुलासा हो सकता है इसलिए ऐसा कर रहे हैं।” उन्होंने कहा, ”कई विधायकों ने मुझसे भी इसकी शिकायत की है। मैं तो विधायकों को कह रहा हूं कि फोकट का पैसा मिल रहा है, तो ले लेना। कमलनाथ ने जोड़ा बीजेपी के भी कई विधायक हमारे संपर्क में हैं।”
मध्य प्रदेश में कांग्रेस पार्टी के पास भारतीय जनता पार्टी के मुकाबले ज्यादा विधायक हैं और पार्टी ने प्रदेश में मुख्यमंत्री कमलनाथ के नेतृत्व में सरकार बनाई हुई है। मध्य प्रदेश विधानसभा में भाजपा के 107 और कांग्रेस के 114 विधायक हैं कांग्रेस को समाजवादी पार्टी के 1 और बहुजन समाज पार्टी के 2 और 04 निर्दलीय विधायकों का भी समर्थन प्राप्त है। मध्य प्रदेश की 3 राज्यसभा सीटों के लिए चुनाव नोटिफिकेशन हो चुका है ऐसे में राज्यसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस दोनो अपने-अपने प्रत्याशी को जिताने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते।
दल बदल के लिए संविधान क्या कहता है ऐसे समझे :
भारत के संविधान की दसवीं अनुसूची, अनुच्छेद 102 (2) और अनुच्छेद 191 (2) दल परिवर्तन के आधार पर निरर्हता के बारे में उपबंध तथा मध्यप्रदेश विधानसभा सदस्य दल परिवर्तन के आधार पर निरर्हता नियम, 1986 (सप्तम संस्करण) मध्यप्रदेश विधानसभा सचिवालय 2013 स्पष्ट रूप से यह बताता है कि दल बदल करने के लिए दो तिहाई मौजूदा विधानसभा में सदस्य बल संख्या के आधार पर सदस्यों की जरूरत होगी। तब ही दल बदल होगा और मौजूदा सरकार गिर सकती है। इसके अलावा दो अवसर आते हैं जब सरकार के लिए संकट का समय होता है। पहला कि विधानसभा के चालू सत्र के दौरान मुख्य विपक्षी दल सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाए और दूसरा जब सरकार वित्तीय काम काज करता है यानि की अनुदानों की मांगे पारित होती है या बजट पारित होता है उस दौरान मुख्य विपक्षी दल सदन के अंदर डिवीजन की मांग करता है उस वक्त सत्ता धारी दल -ट्रेजरी बैंच के सदस्यों की संख्या विपक्षी दल की तुलना में कम रहती है तभी सरकार गिरती है। इसके अलावा सामान्य कामकाज के दौरान किसी भी विधेयक पर डिवीजन मांगने के दौरान विधेयक जरूर गिर जाता है लेकिन सरकार नहीं गिरती है…
मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने मध्यप्रदेश भाजपा पर मीडिया के समक्ष जैसे ही यह आरोप लगाया की कांग्रेस विधायको को 25 करोड़ में खरीदना चाहती है बीजेपी,शिवराज और नरोत्तम मिश्रा पर खरीद फरोख्त का लगाया आरोप,यह कर्नाटक नहीं है,कांग्रेस के विधायक बिकाऊ नहीं है ,एमपी में सरकार गिराने की कोशिश में बीजेपी इसके बाद तो राज्य की राजनीति का पारा अचानक बढ़ गया।
राजनैतिक सरगर्मी बढ़ गई , चर्चा- वाद -विवाद का दौर चालू हो गया टी वी चैनल पर डिबेट शुरू हो गई। हो भी क्यों नहीं क्योंकि इस विषय पर प्रदेश के साढ़े सात करोड़ नागरिकों का परोक्ष,अपरोक्ष जुड़ाव बना रहता है। यह भी एक बात बार- बार होती रहती है की कमलनाथ सरकार अल्पमत की सरकार है अस्थिर सरकार है ,लंगड़ी – लूली सरकार है अपने बोझ तले गिर जायेगी, गुटबाजी के चलते भरभराकर कर गिर जायेगी। जब चाहेंगे सरकार गिरा देंगें,अपने कर्मों से गिर जायेगी,वगैहरा – वगैहरा…
संसदीय परम्परा यह है है कि जब तक किसी भी राज्य की सरकार को अल्पमत की सरकार नहीं कहा जा सकता है जब तक जिन दलों ने या सदस्यों ने समर्थन दिया है वे राज्यपाल महोदय को समर्थन वापसी के पत्र नहीं सौंप देते है तब तक नहीं कहा जा सकता है साथ ही गठबंधन की सरकार कहना तभी उचित होगा जब मध्यप्रदेश के संदर्भ में चुनाव से पूर्व चुनाव क्षेत्र में गठबंधन कर चुनाव लडा गया हो। जैसा कि पूर्व में यूपीए की सरकार थी और अभी वर्तमान में एनडीए की सरकार है।
एस.आर. बोम्मई बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (1994 AIR 1918 SC: (1994) SCC1 3) के ऐतिहासिक फैसले में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 356 और इससे जुड़े विभिन्न प्रावधानों पर विस्तार से चर्चा की थी। अनुच्छेद 356 के दुरुपयोग को इस फैसले के द्वारा रोक दिया गया। इस मामले के कारण केन्द्र-राज्य संबंधों पर भारी प्रभाव पड़ा।
मामला
सितम्बर 1988 में कर्नाटक में जनता पार्टी और लोक दल पार्टी ने मिलकर एक नई पार्टी जनता दल बनाकर सरकार बनाने का दावा किया था। जनता दल एसआर बोम्मई के नेतृत्व में राज्य की बहुमत वाली पार्टी बनी थी। मंत्रालय में 13 सदस्यों को रखा गया। लेकिन इसके दो दिन बाद ही जनता दल विधायक के आर मोलाकेरी ने राज्यपाल के समक्ष एक पत्र पेश किया जिसमें उन्होंने बोम्मई के खिलाफ अर्जी दी थी। उन्होंने अपने पत्र के साथ 19 अन्य विधायकों की सहमती पत्र भी जारी किया था।
इसके बाद राज्यपाल पी वेंकटसुबैया ने राष्ट्रपति को एक रिपोर्ट भेजी जिसमें कहा गया था कि सत्ताधारी पार्टी के कई विधायक उनसे खफा हैं। राज्यपाल ने आगे लिखा था कि विधायकों द्वारा समर्थन वापस लेने के के बाद मुख्यमंत्री बोम्मई के पास बहुमत नहीं बचता है जिससे उन्हें सरकार बनाने नहीं दिया जा सकता। यह संविधान के खिलाफ था और उन्होंने राष्ट्रपति से भी सिफारिश की थी कि वह उन्हें अनुच्छेद 356 (1) के तहत शक्ति का प्रयोग करें। राज्यपाल की इस रिपोर्ट के आधार पर केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति से घोषणा करवा कर बोम्मई की सरकार को बर्खास्त कर दिया गया।
हालांकि कुछ दिन बाद ही उन्नीस विधायक जिनके हस्ताक्षर के बल पर असंतोष प्रस्ताव पेश किया गया था, उन्होंने यह दावा किया कि पहले पत्र में उनके हस्ताक्षर जाली थे और उन्होंने फिर से अपने गठबंधन को समर्थन देने की पुष्टि की। इसके बाद मामले को लेकर कोर्ट में याचिका दाखिल की गई।
इस मुकदमे के निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य की सरकारों को बर्खास्त करने संबंधी अनुच्छेद की व्याख्या की और कहा कि अनुच्छेद 356 के तहत यदि केन्द्र सरकार राज्य में चुनी हुई सरकार को बर्खास्त करती है तो सर्वोच्च न्यायालय सरकार बर्खास्त करने के कारणों की समीक्षा कर सकता है और न्यायालय केंद्र से उस सामग्री को कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत करने के लिए कह सकता जिसके आधार पर राज्य की सरकार को बर्खास्त किया गया है।
इस निर्णय में राज्यपालों को यह हिदायत भी दी गईं की ‘किसी भी राज्य सरकार को बहुमत हैं या नहीं हैं,इसका निर्णय राजभवन में नहीं होना चाहिए इसका निर्णय विधानसभा में होना चाहिए