अब आसानी से मिलेगी छोटे उद्योगों को जमीन,डेवलपर्स स्वयं ला सकेंगे निवेशक
मध्यप्रदेश में क्लस्टर आधारित छोटी औद्योगिक इकाइयों को बढ़ावा देकर बड़े पैमाने पर रोजगार पैदा करने के लिए मध्यप्रदेश मंत्रि-परिषद ने मंगलवार को एम एस एम ई के लिए नए भूमि आवंटन और विकास नियमों को मंजूरी दी है। अब उद्यमियों को जहाँ सस्ती दर पर भूमि उपलब्ध हो सकेगी वहीं उस पर भूमि का विकास भी अब उद्यमी स्वयं कर पाएंगे। साथ ही अब उद्यमी स्वयं ही निवेश भी आमंत्रित कर सकेंगे।
मुख्यमंत्री श्री शिवराजसिंह चौहान की अध्यक्षता में सम्पन्न मंत्रि-परिषद की बैठक में नवीन भूमि आवंटन नीति को मंजूरी मिलने पर लघु, सूक्ष्म, मध्यम उद्यम मंत्री श्री ओमप्रकाश सखलेचा ने आभार व्यक्त किया है। उन्होंने कहा कि मध्यप्रदेश को आत्म-निर्भर बनाने की दिशा में नई पॉलिसी ऐतिहासिक है। इससे स्थानीय स्तर पर बड़ी संख्या में रोजगार सृजित होंगे।
मंत्रि-परिषद के निर्णय की जानकारी देते हुए मंत्री श्री सखलेचा ने बताया कि नई पॉलिसी में प्रदेश में पहली बार उद्यमियों को नगरीय तथा गैर नगरीय भूमि पर स्व-निर्धारित डिजाइन के अनुसार क्लस्टर विकसित तथा संधारित करने का अवसर मिलेगा। इन क्लस्टर्स में भूमि विकास के लिए डेवलपर्स को कलेक्टर की असिंचित भूमि की गाइडलाइन के मात्र 25 प्रतिशत पर भूमि आवंटित की जायेगी। अब डेवलपर्स विकसित क्लस्टर्स में अपनी इच्छा से निवेशक ला सकेगा और संधारण कार्य भी उनके द्वारा स्वयं किया जायेगा।
इस नवीन नीति से प्रदेश में तेजी से फार्मा, खिलौना, फर्नीचर क्लस्टर विकसित हो सकेंगे और इससे रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। नवीन नियमों में भूखण्ड आवंटन की प्रक्रिया को अत्यधिक सरल, पारदर्शी एवं समयबद्ध बनाया गया है। अब समस्त भूखण्डों को इलेक्ट्रानिक नीलामी के माध्यम से विक्रय किया जायेगा। जिन भूखण्डों में कोई नीलामीकर्ता उपलब्ध नहीं होता है ऐसे को ‘ प्रथम आओ, प्रथम पाओ ‘ की नीति से विक्रय किया जायेगा।
नवीन नियमों में विभिन्न प्रक्रियाओं में लगने वाले समय को भी लगभग आधा किया गया है। पूर्व से स्थापित इकाइयों के पास पड़ी अनुपयोगी भूमि की आवंटन प्रक्रिया को भी सरल बनाया गया है। बैंक और वित्तीय संस्थाओं में आवंटित भूखण्डों का हस्तांतरण महाप्रबंधक उद्योग को मात्र सूचना देने के बाद किया जा सकेगा।
आवंटित भूखण्डों पर स्टाफ तथा श्रमिकों के निवास के लिए पहली बार नियमों में संशोधन किया गया है। इससे श्रमिक वहीं रह सकेंगे। श्रमिकों के कार्य-स्थल पर निवास करने से आवागमन में लगने वाला समय कम होगा और उत्पादकता में वृद्धि होगी।