हम सब भारत माँ के लाल, भेदभाव का कहाँ सवाल- शिवराज सिंह चौहान (ब्लॉग)
भोपाल । कोरोना के विश्वव्यापी कहर ने भारत में दस्तक दी ही थी कि हमारे युगदृष्टा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने इसके संकट को पहचान कर पूरे देश में लॉकडाउन कर दिया। इससे कोरोना का फैलाव रुका, लोगों में जागरूकता आई और स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार के लिए समय मिल गया। विशेषज्ञ मानते हैं कि यदि समय पर लॉक डाउन न हुआ होता तो अब तक लाखों लोग संक्रमित हो गये होते और न जाने कितने हजार अपने प्राणों से हाथ धो बैठते। इसके अलावा कोई चारा ही नहीं था। जान है तो ही जहान है।
इन्हीं प्रयासों का परिणाम है कि अन्य देशों की तुलना में बड़ी जनसंख्या व घनी आबादी होते हुए भी भारत में कोरोना के कम फैलाव से सारा संसार चकित है। इसके पीछे कारण है प्रधानमंत्री जी का संकट को सही समय पर पहचान लेना और उनके आह्वान पर सारे देश द्वारा दिखाई गई अभूतपूर्व एकता। मैं प्रधानमंत्री जी को धन्यवाद देता हूँ और देश की कोटि-कोटि जनता को प्रणाम करता हूँ।
परंतु जान बचना ही पर्याप्त नहीं है। संसार में जीने के लिए रोटी कपड़ा और मकान भी चाहिए। इसके लिए आर्थिक गतिविधियॉं प्रारंभ की जाना आवश्यक हैं। इसलिए प्रधानमंत्री जी ने अगले चरण में नारा दिया कि जान है और जहान भी है और लॉकडाउन के तीसरे चरण से कुछ छूट देकर कुछ क्षेत्रों में उद्योग, दुकानें आदि प्रारंभ कर दिये गये। वहीं अन्य क्षेत्रों में कुछ प्रतिबंध जारी हैं। अब लॉकडाउन के चौथे चरण में और भी छूट देने पर विचार चल रहा है।
भारत अनेकता में एकता का गुलदस्ता है। हमारा संविधान सभी को पूरे देश में कहीं भी आने-जाने, निवास करने और जीविकोपार्जन करने का अधिकार देता है। इसलिए अपने हुनर का उपयोग करने, रोजगार के अवसर तलाशने और अपने परिवार के अच्छे भविष्य के सपने को पूरा करने के लिए बड़ी संख्या में लोग एक राज्य से दूसरे राज्य में जाते हैं। आर्थिक गतिविधियॉं बंद होने और कोरोना से भय का वातावरण बन जाने से होने से बड़ी संख्या में श्रमिक अपने गृह राज्यों में वापस जा रहे हैं। लॉकडाउन में चरणबद्ध छूट के साथ ही उद्योग धंधे प्रारंभ होंगे और पुन: रोजगार मिलना प्रारंभ हो जाएगा। परंतु यह मानवीय स्वभाव है कि वह संकट में अपनों के बीच रहना चाहता है। हमारी चुनौती है कि हम कैसे उन्हें सुरक्षित उनके घरों तक पहुँचाऍं और वहॉं उनके हुनर का उपयोग करें, उन्हें रोजगार प्रदान करें।
मध्यप्रदेश इसके लिए पूरी तरह तैयार है। प्रदेश में मनरेगा कार्यक्रम के तहत हर गाँव में कार्य प्रारंभ किये जा रहे हैं। अभी तक 14 लाख से अधिक श्रमिकों को रोजगार दिया जा चुका है। यह प्रक्रिया जारी है। जितने भी लोग आऍंगे हम उन्हें काम देने के लिए प्रतिबद्ध हैं। इनमें अधिकतर के पास पैसा भले ही न हो परंतु किसी न किसी तरह का हुनर है। बाहर रहकर उन्होंने इस हुनर को निखारा है । इसी की बदौलत तो उनकी अन्य प्रदेशों में मांग है। मेरा प्रयास है कि उनके इस हुनर का प्रदेश में ही उपयोग हो। कोरोना के कारण कई देशों से उद्योग विस्थापित हो रहे हैं। उद्योग नई जगहें तलाश रहे हैं। मध्यप्रदेश को ईश्वर ने सब कुछ दिया है। जल, जमीन, जंगल की बहुतायत है। हुनरमंद युवाशक्ति है। इसलिए मैनें श्रम कानूनों में संशोधन किया है ताकि अधिक से अधिक उद्योग मध्यप्रदेश में आऍं ।इससे रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। उद्योगों और श्रमिकों के बीच सौहार्द्र का वातावरण बनेगा। कोरोना एक चुनौती है। इस चुनौती को हमें अवसर में बदलना है।
मध्यप्रदेश देश का हृदय है, बीचों बीच स्थित है। इसलिए अन्य प्रदेशों के श्रमिक अपने राज्यों में जाने के लिए मध्यप्रदेश से भी गुजर रहे हैं। यह किसी भी जाति, धर्म, भाषा या क्षेत्र के हों, हमने प्रदेश में इन श्रमिकों को हरसंभव मदद करने की व्यवस्था की है।
हमारे प्रदेश में मुख्य रूप से यह प्रवासी श्रमिक सेंधवा से प्रवेश करके इंदौर, देवास, गुना, शिवपुरी होते हुए झॉंसी तक और शिवपुरी से ग्वालियर, भिंड होते हुए उत्तरप्रदेश की सीमा तक जा रहे हैं। इसी प्रकार देवास से सीहोर, सागर, छतरपुर होते हुए महोबा तक जा रहे हैं। हमनें इन मार्गों पर इनके लिए ट्रांजिट प्वाइंट बनाए हैं जहां इन्हें छाया, भोजन, चाय, पानी, दवाऍं उपलब्ध हैं। हमारा यह भी संकल्प है कि हम इन्हें मध्यप्रदेश में पैदल नहीं चलने देंगे। प्रदेश की सीमा में प्रवेश करते ही इन्हें वाहन उपलब्ध कराने और दूसरे छोर पर सीमा तक छोड़ने की व्यवस्था की गई है। इन वाहनों का किराया राज्य सरकार दे रही है।
यह समय भी गुजर जाएगा। हम चुनौती को अवसर में बदलेंगे। हमारे इन प्रयासों से प्रदेश का विकास होगा। युवाओं को घर पर ही रोजगार मिलने की संभावनाऍं बढ़ेंगी। अन्य प्रदेशवासी हमारे बारे में सुखद यादें लेकर जाऍंगे। यह सद्भावना ही हमारी पूँजी होगी जो पूरे देश में मध्यप्रदेश की एक अलग पहचान बनाएगी। (ब्लॉगर मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री हैं)