Madhya Pradesh Assembly Election 2023-आम मतदाता बनें लोकतंत्र के प्रहरी,डिजिटल तंत्र से हो रही चुनाव की निगरानी,सोशल मीडिया पर भी पैनी नज़र
CEO MP- एमपी पोस्ट पर मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी, मध्यप्रदेश, श्री अनुपम राजन का विशेष साक्षात्कार
आम मतदाता बनें लोकतंत्र के प्रहरी
डिजिटल तंत्र से हो रही चुनाव की निगरानी,सोशल मीडिया पर भी पैनी नज़र
एमपी पोस्ट पर मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी, मध्यप्रदेश, श्री अनुपम राजन का विशेष साक्षात्कार
अब सूचना प्रोद्योगिकी आधारित प्रयोगों और व्यवस्थाओं से निर्वाचन प्रक्रिया और आसान हो गई है, मतदाताओं, उम्मीदवारों और निर्वाचन तंत्र को सबसे ज्यादा सहूलियत हुई है,अब मतदाताओं से अपेक्षा है कि वे खुद लोकतंत्र के प्रहरी बनें।
अब आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन के मामलों पर निगरानी रखना और ज्यादा आसान हो गया है, वर्तमान निर्वाचन प्रक्रिया को सूचना प्रोद्योगिकी के अधिकाधिक उपयोग से किस प्रकार चुस्त – दुरुस्त बनाया गया है इसे विस्तार से मध्यप्रदेश के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी, श्री अनुपम राजन ने एमपीपोस्ट के चुनाव आयोग कार्यक्रम संवाद में विशेष साक्षात्कार में साझा किया। प्रस्तुत है पूरा साक्षात्कार :-
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हमारे साथ मौजूद हैं, मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी, मध्यप्रदेश, श्री अनुपम राजन। अनुपम राजन जी इस समय मध्यप्रदेश में जो विधानसभा के चुनाव चल रहें हैं, विधानसभा चुनाव मध्यप्रदेश 2023 के चुनाव बहुत ही निष्पक्ष और स्वतंत्र रूप से संपन्न हो इसके लिए भरपूर प्रयास कर रहें है। और लगातार अपनी पूरी कोशिश कर रहें हैं,वे लगातार अपनी निगरानी में रखें हुए हैं पूरी चुनाव प्रक्रिया को, वे लगातार दौरे कर रहें हैं और एक-एक चीज पर उनकी नजर है। तो हम उन्हीं से जानेंगे कि मध्यप्रदेश का चुनाव है उसमें किस प्रकार की प्रक्रिया का पालन हो अभी रहा है।
सर, आपका बहुत स्वागत है हमारे चुनाव आयोग कार्यक्रम संवाद में।
सवाल: सर, जब चुनाव की प्रक्रिया जब चालू होती है तो सबसे पहले चुनाव के क्षेत्र में जो राजनीतिक दल शामिल होते हैं उनके लिए मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट यानी की आदर्श आचार संहिता बहुत ही महत्वपूर्ण होती है। तो उस संदर्भ में बताए कि वह राजनीतिक दलों पर किस तरह से प्रभावी होती है?
जवाब: आदर्श आचार संहिता जिसको हम मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट कहते हैं, जिस दिन से चुनाव की घोषणा होती है उस दिन से ही प्रभावशील हो जाती है। एक सेट ऑफ रूल्स हैं। एक विहेवियर है।
लोगों को से बात होती है की आप क्या करे और क्या ना करें। जो राजनीतिक दल होते है या उम्मीदवार होते हैं, उनसे अपेक्षा है की कौन सा व्यवहार करें या कौन सी चीजें करें और कौन सी ना करें। इसमें बहुत सी चीजें है जैसे कितने वाहनों के साथ आपको चलना चाहिए, नामांकन दाखिल कराते समय कितने लोग होने चाहिए, प्रचार-प्रसार और चुनाव के दौरान किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए, इस तरह की तमाम सब चीज इसमें कार्रवाई होती है। यदि कोई आदमी इसका उल्लंघन करता है जैसे के मान लीजिए धर्म के नाम आप वोट नहीं लेंगे, धार्मिक स्थानों का उपयोग नहीं करेंगे, कोई ऐसी बात नहीं कहेंगे अपने प्रचार के दौरान जिससे वैमनस्यता फैलने, पार्टी की नीतियों की आलोचना करेंगे व्यक्तिगत जीवन पर टिप्पणी नहीं करेंगे, बेबुनियादी आरोप नहीं लगाएंगे नहीं करेंगे। एक सेट ऑफ रूल्स हैं जिनका पालन सभी दलों और उम्मीदवारों से अपेक्षित होता है और यदि इसका कहीं इसका उल्लंघन मिलता है तो नियमानुसार कार्रवाई की जाती है।
सवाल: चुनाव आयोग ने चुनाव के दौरान बहुत सारे डिजिटल मीडिया केंद्रित या जिसे आई.टी. कहते हैं काम काज चालू किए हैं जैसे की सी-विजिल ऐप, सुविधा ऐप, या क्यूलेस सिस्टम और एनकोर सिस्टम है। यह किस तरह राजनैतिक दलों की निगरानी हैऔर किस तरह से आम मतदाता और जनता को सपोर्ट करता है ?
जवाब: जैसे की हम देख रहें हम सभी के जीवन में तकनीक का उपयोग बढ़ता जा रहा है। जैसे की सी-विजिल ऐप सिटीज़न के लिए ऐप है, इसलिए उसे सिटीजन विजिल ऐप कहते हैं। लोकतंत्र की प्रक्रिया में जो सबसे बडे भागीदार हैं या स्टेकहोल्डर्स हैं उसकी बैकबोन या बुनियाद बनाने वाले मतदाता है या नागरिक हैं वो स्वयं निगरानी करे की जो व्यवहार या आचार विचार जो दलों से अपेक्षित है उसका पालन हो रहा है की नहीं हो रहा । सी विजिल ऐप के माध्यम से कोई भी व्यक्ति व्हाट्सएप या मैसेज,वीडियो के माध्यम शिकायत दर्ज करा सकता है और जो भी शिकायत प्राप्त होती है उसका 100 मिनट में निराकरण किया जाता है ।
कई बार यदि कोई नागरिक अपनी पहचान गोपनीय रखता है, पहचान उजागर नहीं करना चाहता तो वह बिना पहचान बताए भी शिकायत दर्ज करा सकता है और क्योंकि ये सब जियोटैग तकनीक से जुड़ा है से जुड़ी है जो व्यक्ति जहां से शिकायत दर्ज करता है उसका लैटलॉन्ग चूँकि उस पर मैप्ड है हमारे फ्लाइंग स्क्वाड वहां पहुंच जाती है और तत्काल निराकरण करती हैं। ये तो सी विजिल की बात हो गई।
सुविधा ऐप के माध्यम से परमिशन और परमिट लिंक्ड है। कई बार चुनावी दलों को प्रचार के दौरान सभा की अनुमति है, वाहनों की अनुमति है, गेस्टहाउस के उपयोग करने की अनुमति है, । यह ध्यान में रखा जाता है की पार्टी इन पावर की मोनोपोली ना हो। इस सारे की टाइम स्टैंपिंग है तो ‘फर्स्ट कम फर्स्ट टेक’ के आधार पर इसका एलॉटमेंट होता है।
सक्षम ऐप है, जो हमारे दिव्यांग साथियों को चुनाव के दौरान मतदान केंद्र पर सहायता चाहते है उसके लिए वो कर सकते हैं। फार्म 12-डी के जरिए होम वोटिंग का विकल्प भी आयोग प्रदान कर रहा है।
आपने क्यूलेस ऐप की बात की जिसका हम प्रयास कर रहें हैं इस चुनाव में जिससे मतदाता अपने लिए एक टाइम स्लॉट तय कर सकती है, जिससे मतदाता जाकर वोट डाल सकें, चुनाव के दौरान वेटिंग टाइम को घटाने के लिए बनाया गया है। ऐसे तमाम सारे एप्पस हैं जिसके माध्यम से हम पूरी प्रक्रिया को सरल सुगम और निष्पक्ष बनानें का प्रयास करते हैं।
सवाल: एनकोर सिस्टम पूरी चुनाव प्रक्रिया में किस तरह सहायक सिद्ध हो रहा है।
जवाब: एनकोर सिस्टम के माध्यम से नामांकन दस्तावेज, पूर्व–आपराधिक घटनाओं का हलफनामा, मतदान प्रतिशत से जुड़ी जानकारी लाइव रूप से रियल टाइम में जनता को पारदर्शी एवं सटीक रूप से देता है। तो काफी बड़ा रोल है एनकोर सिस्टम का।
सवाल: सोशल मीडिया अभी बहुत ज्यादा प्रचलन में है। चुनाव में सोशल मीडिया के जरिए फैलने वाली फेक न्यूज को रोकना और कंट्रोल करना चुनाव आयोग के समक्ष चुनौती है। इसको किस तरह से रोकने का प्रयास आयोग कर रहा है?
जवाब: जितने सोशल मीडिया प्लेटफार्म हैं हम उनकी निगरानी कर रहे हैं। हर जिले में एवं राज्य स्तर पर सोशल मीडिया की निगरानी के लिए सेल बने हैं। यदि ऐसा कोई पोस्ट आता है जो हमे अनवारेंटेड पोस्ट लगता है या कोई सूचना आचार संहिता का उल्लंघन करता है या दो कम्युनिटी के बीच में हेटरेड फैला रहा है या सोशल अनरेस्ट का कारण बन सकता है, या डिस्टरबेंस का कारण बन सकता है। तो आयोग के विभिन्न सोशल मीडिया के साथ टेकडाउन एग्रीमेंट हैं।
चाहे वो फेसबुक, ट्विटर हो या इंस्टाग्राम हो , उनसे हम रिक्वेस्ट करते हैं वो अपनी इंक्वायरी के बाद उसको हटा देते हैं।
सवाल: चुनाव के दौरान मतदान और मतगणना के दौरान चुनाव आयोग अपने स्तर पर इंटरनेट के माध्यम से वेब कास्टिंग करता है । इस बार मध्यप्रदेश चुनाव के दौरान आयोग के द्वारा कितनी वेब कास्टिंग संभव है?
जवाब: आयोग के निर्देश है की कम से कम 50 प्रतिशत केंद्रों पर वेब कास्टिंग और लाइव स्ट्रीमिंग की जाए। हमारे लगभग 65000 मतदान केंद्र हैं जिनमें से हम न्यूनतम 50 प्रतिशत केंद्रों पर वेब कास्टिंग करवाएंगे। आयोग ने न्यूनतम की बात की है इसके अतिरिक्त भी मतदान केंद्र की आवश्यकता होती है और उसकी संवेदनशीलता एवं उम्मीदवार कौन हैं उसका का क्षेत्र की संवेदनशीलता पर प्रभाव को मद्देनजर रख उसकी वेब कास्टिंग की जाएगी। प्रयास यह है की वेब कास्टिंग के माध्यम से मतदान केंद्रों की निगरानी बेहतर एवं सुचारु रूप से रियल टाइम कर सकेगा दूर से बैठ कर ।
सवाल: उम्मीदवार जो चुनाव में शामिल होते हैं और जब चुनाव के दौरान अपना नामांकन दर्ज कराते हैं तो उन्हें जानकारी नहीं होती की उनका खर्च कब से लागू होगा और यदि कोई स्टार प्रचारक कोई सभा करता है, उनके नाम का उल्लेख करता है मीटिंग में या उन्हें डाइस पर बुलाता है तो वो खर्चा उनके खाते में कब से जुड़ता है?
जवाब: उम्मीदवार जब से नामांकन दर्ज करता है उस दिन से उसका खर्चा जुड़ता है। खर्च की कुल सीमा विधायकों के लिए 40 लाख है , हर विधानसभा क्षेत्र में आयोग के एक्सपेंडिचर ऑब्जर्वर हैं सब लोग आ भी गए हैं जो खर्च पर नजर रखते हैं। पूरे चुनावी प्रक्रिया के दौरान हर उम्मीदवार को स्वयं या एजेंट के माध्यम से अपने चुनावी खर्चों का विवरण कुल समय के दौरान तीन बार जमा करना होता है। जो खर्चा वो बताते हैं उसको हमारे टीम है वो भी हिसाब किताब रखती है, शैडो रजिस्टर बने होते हैं। हर जिले के रेटस कार्ड बने हैं उसको मैच करते हैं। यदि आयोग को बताए गए खर्च कम करके बताया जाता है आयोग उम्मीदवार को नोटिस जारी करता है, उम्मीदवार को 48 घंटे के भीतर खर्चे को समझाते हुए उत्तर जमा करना पड़ता है। और फिर फाइनल खर्चे को जमा करेगा।
वेरिफिकेशन का मैकेनिज्म है।
सवाल: चुनाव की प्रक्रिया में बहुत सारे लोगों का योगदान,निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनाव के लिए ज़रूरी है । मध्यप्रदेश के मतदाता, नागरिकों एवं मीडिया के लिए आपका संदेश,अपील क्या है?
जवाब: सबसे पहले मैं यह कहना चाहूंगा जागरूक मतदाता बनें। हमने सी–विजिल की बात की उसके के जरिए यदि किसी को भी आचार संहिता के उल्लंघन दिखे तो उसका उपयोग कर शिकायत दर्ज कराएं हम तत्काल उस पर कार्यवाही करेंगे। इसके अतिरिक्त मैं अनुरोध करना चाहूंगा एथिकल वोटिंग की, यह बहुत बड़ा अधिकार है जो हमें लोकतंत्र से मिला है। जिसे हम कहते हैं नैतिक मतदान,नागरिक किसी भी चीज से बिना प्रभावित हुए मतदान करें। तीसरी और अंतिम बात मतदान अवश्य करें, 17 नवंबर को मतदान है। वो सभी मेरे साथी जिनका नाम मतदाता सूची में है आप मतदान जरूर करिये । मतदान एक बहुत बड़ा अधिकार है हमें इसे खोना नहीं है। लोकतंत्र की मजबूती के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है की आप इस प्रक्रिया में अपनी हिस्सेदारी निभाएं।
सवाल: जो कैश ट्रांसफर होता है एटीएम,बाकी के माध्यम से आयोग उसकी निगरानी किस प्रकार कर रहा है?
जवाब: सभी बैंकस, स्टेट लेवल और डिस्ट्रिक्ट लेवल बैंकर्स कमिटी के साथ बैठ कर एसओपी बनाई गई है की एटीएम के माध्यम से होने वाले लेन देन की पर्याप्त डिटेल्स होते हैं,जिसमें कई दस्तावेजों भी शामिल हैं जो एटीएम वाले रखते हैं। जिससे उन्हें अनावश्यक नाकों पर दिक्कत नहीं हो और ये भी ध्यान रखा जाए उनकी आड़ में होने वाले अनैतिक परिवहन ना हो। तो हमलोग उसका ध्यान रखते हैं
सवाल: पॉलिटिकल पार्टीस को विज्ञापन चलाने से पहले आयोग के पास से प्री-सर्टिफिकेशन कराना होता है, यदि वे ना कराए तो यह किस श्रेणी में आता है?
जवाब: किसी भी प्रकार के इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में विज्ञापन को चलाने से पूर्व राजनैतिक दलों को आयोग से प्री-सर्टिफिकेशन कराना अनिवार्य है अन्यथा कानूनी प्रावधान के तहत कार्रवाई की जाती है, प्रिंट मीडिया में वे चला सकते हैं क्योंकि उसमें 48 घंटे के भीतर प्री-सर्टिफिकेशनकी आवश्यकता होती है लेकिन इसमें एमसीसी के प्रावधान लागू होते हैं। लेकिन विज्ञापन के माध्यम से आप इसका उल्लंघन करते हैं तो पर भी कार्रवाई होती है।
सवाल: पेड न्यूज पर भी आयोग की नजर रहती है?
जवाब: आयोग की पूरी नजर रहती है प्रतिदिन अखबार में छपने वाली खबरों पर नजर रखता यदि कोई खबर पेड न्यूज की श्रेणी में आती है तो राज्य एवं जिला स्तर पर एमसीएमसी गठित हैं उनके माध्यम से उस पर कार्रवाई होती है।