( सरमन नगेले )
भारत में प्रजातंत्र को समृद्ध करने में डिजिटल पत्रकारिता वर्तमान समय में निःसंदेह प्रभावी उत्प्रेरक साबित हुई है। इसलिए सरकार की ओर से अपेक्षित प्रोत्साहन मिलना अनिवार्य हो गया है।
भारत सरकार जब एक झटके में चीन के एप्लीकेशन बंद कर सकती है, डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म्स को भारत का कानून मानने पर बाध्य कर सकती है,इंडिया में उनका प्रतिनिधि होना अनिवार्य कर सकती है,संसद की समिति के समक्ष सोशल मीडिया प्लैटफ़ॉर्म्स कंपनियों के अधिकृत प्रतिनिधियों की सुनवाई हो सकती है तो डिजिटल मीडिया के मसले पर हस्तक्षेप भी कर सकती है। डिजिटल पत्रकारिता को सहारा देने के लिए यह वक्त इसलिए सही है क्योंकि भारत सरकार खुद डिजिटल मीडिया आचार संहिता 2021 लेकर आयी है।
राज्य सत्ता दो स्थितियों में बाज़ार में दख़ल देता हैं। पहला तब जब बाज़ार ठीक ढंग से काम नहीं कर रहे हों या दूसरा तब जब मुद्रा का नए सिरे से वितरण करने की ज़रूरत महसूस की जा रही दरअसल मौजूदा डिजिटल और सूचना क्रांति वाले युग में सेवा प्रदाताओं – डिजिटल प्लैटफ़ॉर्म्स मसलन :सोशल नेटवर्किंग वेबसाइटस,फेसबुक,गूगल,माइक्रो ब्लागिंग वेबसाइट,टविटर,वीडियो मंच यूट्यूब,फ्लिकर,टम्बलर,स्टेमबेलपोन,लिंक्डइन,इंस्टाग्राम,व्हाट्सअप और न्यूज़ पब्लिशर्स के बीच धन के वितरण में मुफ़्तख़ोरी के स्वरूप में बाज़ार की नाकामी का कोई उत्प्रेरक नजर तो नहीं आता. अलबत्ता इन दोनों में सहजीवी रिश्ता जरूर है जो जग जाहिर है।
जहां एक तरफ डिजिटल प्लैटफ़ॉर्म्स उपयोगकर्ताओं को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए समाचार सामग्रियों का इस्तेमाल करते हैं, वहीं दूसरी तरफ समाचार प्रकाशकों – ख़ासतौर से छोटे आकार वाले पब्लिशर्स को इन प्लैटफ़ॉर्म्स के ज़रिए इंटरनेट पर परोक्ष ट्रैफ़िक हासिल होता है। ये बात न केवल बिल्कुल सही है की डिजिटल माध्यमों का पलड़ा भारी है बल्कि वे शक्तिशाली भी है तभी तो विज्ञापन से हुई कमाई में उन्हें मोटा हिस्सा प्राप्त होता है।
एक स्वस्थ लोकतंत्र और सेहतमंद मानव समाज के लिए पत्रकारिता का क्षेत्र बेहद महत्वपूर्ण है,इसलिए डिजिटल पत्रकारिता के वित्तीय रूप से टिकाऊ न रहने की स्थिति में राज्यसत्ता मूकदर्शक बनकर नहीं रह सकती,इसी पृष्ठभूमि के चलते राज्यसत्ता द्वारा दख़ल दिए जाने को जायज़ ठहराया जाता है। एक स्वस्थ समाज के संरक्षण और पोषण के अच्छे उद्देश्य से उसमें स्वस्थ और विविध स्वरूप वाले मीडिया क्षेत्र की मौजूदगी सुनिश्चित करना ज़रूरी समझा गया है।
भारत डिजिटल प्लैटफ़ॉर्म्स का सबसे बड़ा बाज़ार है। भारत सरकार जब एक झटके में चीन की सेकड़ों मोबाइल ऍप्लिकेशन्स बंद कर सकती है, डिजिटल प्लैटफ़ॉर्म्स को भारत का कानून मानने पर बाध्य कर सकती है,इंडिया में उनका प्रतिनिधि हो इस पर अमल करा सकती है,संसद की समिति के समक्ष उनकी सुनवाई हो सकती है,तो भारत के डिजिटल मीडिया को सहारा क्यों नहीं दे सकती। जबकि भारत सरकार के अधीन अनेक शक्तियां हैं जिसका उपयोग डिजिटल प्लैटफ़ॉर्म्स पर कर अपना राज्य सत्ता का धर्म निभाए।
डिजिटल पत्रकारिता को सहारा देने के लिए नीतिगत स्तर पर कई उपायों पर विचार किया गया. इस दिशा में यूरोपीय संघ ने एक ठोस क़दम उठाया था. ईयू ने प्रेस प्रकाशनों में ‘फुटकर समाचारों’ समेत एक नए ‘नेबरिंग राइट’ का प्रावधान किया. इसके ज़रिए उम्मीद की गई थी कि डिजिटल माध्यमों द्वारा समाचारों का इस्तेमाल किए जाने पर प्रकाशकों को भी अपने आईपी-संरक्षित सामग्रियों के बदले कमाई करने का मौका मिल जाएगा. ‘फुटकर समाचार’ में प्रकाशकों के हाइपरलिंक्ड वेबपेज से लिए गए लेखों के संक्षिप्त अंश, तस्वीरें, इंफ़ोग्राफिक्स और वीडियो शामिल होते हैं. ईयू से पहले जर्मनी ने इसी तरह का क़दम उठाया था।
लब्बोलुआब यह है की ‘फुटकर समाचारों’ के रूप में एक नई तरह के संपदा अधिकारों को मान्यता देकर डिजिटल प्लैटफ़ॉर्म्स को सामग्रियों की लाइसेंसिंग प्राप्त करने के अधिकार दिए जाएं,आम तौर पर बौद्धिक संपदा कानून में ‘फुटकर समाचारों’ के लिए किसी तरह के संपदा अधिकारों को मान्यता नहीं दी जाती है।
बौद्धिक संपदा (आईपी) न्यायशास्त्र के दृष्टिकोण से नए ‘नेबरिंग राइट’ के निर्माण को जायज़ नहीं ठहराया जा सकता. इसकी वजह ये है कि डिजिटल प्लैटफ़ॉर्म्स प्रकाशकों की सामग्रियों को मुफ़्त में इस्तेमाल नहीं करते. बौद्धिक संपदा संरक्षण प्रदान किए जाने के पीछे मुफ़्तख़ोरी के रूप में बाज़ार की नाकामी को जायज़ वजह के तौर पर प्रमुखता से पेश किया जाता रहा है, इसलिए क़ानूनों से जुड़े शैक्षणिक जगत ने इस नए विधान की घोर आलोचना की. उनका कहना था कि ये नया क़ानून धन का पुनर्वितरण सुनिश्चित करने के बावजूद बौद्धिक संपदा की क़ानूनी हदों की अनदेखी करता है।
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भारत में डिजिटल मीडिया प्रजातांत्रिक व्यवस्था का महत्वपूर्ण उपकरण बन गया है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिये सोशल मीडिया का मंच अधिकाधिक उपयोग किया जा रहा है। संविधान विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देता है। संविधान के अनुच्छेद 19 (1) में इसका स्पष्ट प्रावधान है। इमरजेंसी के अलावा सामान्य स्थितियों में राज्य का दायित्व है कि नागरिकों के इस अधिकार की रक्षा करे। हालांकि संविधान के मुताबिक यह स्वतंत्रता असीमित या अमर्यादित नहीं है और अनुच्छेद 19 (2) में बताया गया कि राज्य किन स्थितियों में इस स्वतंत्रता को सीमित कर सकता है। ये स्थितियॉं हैं-देश की सम्प्रभुत्ता और एकता की रक्षा, भारत की सुरक्षा, दूसरे देशों के साथ दोस्ताना संबंध, लोक-व्यवस्था ( पब्लिक ऑर्डर) या फिर न्यायपालिका की अवमानना, मानहानि या किसी को अपराध के लिए उकसाना।
भारत में इंटरनेट मौलिक अधिकार बने:
15 अगस्त को आजादी के 75 साल हो गए। दिलचस्प यह है कि इसी दिन 15 अगस्त 1995 को भारत के अवाम को इंटरनेट पर विचारों की अभिव्यक्ति का अधिकार भी मिला। 15 अगस्त को इंटरनेट ने भी भारत में अपनी 26 वीं सालगिरह मनाई। सच तो है यह कि इंटरनेट इस युग में जीने और आगे बढ़ने के सबसे शक्तिशाली माध्यम के रूप में स्थापित हो रहा है। इंटरनेट के माध्यम से आज हर तरह की सूचना हमें बड़ी आसानी से मिल जाती है।
वर्ल्ड वाइड वेब के जन्मदाता टिम बर्नर्स ली चाहते हैं कि इंटरनेट को मूल अधिकारों में शामिल किया जाए।
भारत में डिजिटल मीडिया आचार संहिता लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अनुकूल है। इसका उद्देश्य विविधताओं से भरे लोकतांत्रिक देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कायम रखते हुए ओटीटी प्लेटफॉर्म पर प्रसारित होने वाली सामग्री की गुणवत्ता के स्तर को बनाये रखना है। भारत के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा डिजिटल मीडिया आचार संहिता 2021 जारी की गई है।
भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सभी को समान रूप से अधिकार है। किसी भी प्रकार के समाचार प्रसारित और प्रसारण करने वाले मीडिया संस्थान जैसे समाचार पत्र न्यूज पोर्टल,न्यूज वेबसाइट या अन्य माध्यम जो इलेक्ट्रानिक्स एवं आईटी मंत्रालय सरकार ने सूचना प्रौद्योगिकी ( मध्यवर्ती संस्थानों के लिए दिशा-निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता ) नियम 2021 अधिसूचित किए है। उसके लिए कोई प्री-क्वॉलिफिकेशन – पूर्व अर्हता नहीं रखता है।
भारत सरकार के मुताबिक़ सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों द्वारा भारत में कारोबार करने का स्वागत है, लेकिन उन्हें भारत के संविधान और कानूनों का पालन करना होगा,सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल निश्चित तौर पर सवाल पूछने और आलोचना करने के लिए किया जा सकता है।
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों ने आम उपयोगकर्ताओं को सशक्त बनाया है, लेकिन इसका दुरुपयोग होने और गलत लाभ उठाने पर वे अवश्य जवाबदेह होंगे।
क्या हैं नए नियम?
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नए नियमों ने सोशल मीडिया के सामान्य उपयोगकर्ताओं को सशक्त बनाया है और इनमें उनकी शिकायतों के निवारण व समय पर समाधान के लिए उपयुक्त व्यवस्था है।
डिजिटल मीडिया और ओटीटी से जुड़े नियमों में आतंरिक एवं स्व-नियमन प्रणाली पर अधिक फोकस किया गया है जिसमें पत्रकारिता व रचनात्मक स्वतंत्रता को बनाए रखते हुए एक मजबूत शिकायत निवारण व्यवस्था की गई है।
प्रस्तावित रूपरेखा प्रगतिशील, उदार और समसामयिक है इसमें रचनात्मकता और अपने विचार व्यक्त करने एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने के बारे में किसी भी गलतफहमी को दूर करते हुए लोगों की विभिन्न चिंताओं को दूर करने का प्रयास किया गया है।
इंटरनेट पर कोई सामग्री देखने और किसी थिएटर एवं टेलीविजन के दर्शक के बीच अंतर को ध्यान में रखते हुए ही दिशा-निर्देश तैयार किए गए हैं।
आचार संहिता के भाग 3 से जुड़े प्रावधान बताता है की आचार संहिता का उद्देश्य किसी को दंडित करना नही है।
पिछले कुछ वर्षो में डिजिटल मीडिया की भूमिका काफी बढ़ी है और पिछले 6 वर्षो में इंटरनेट डेटा का इस्तेमाल 43 प्रतिशत तक बढ़ चुका है। एवं ओटीटी प्लेटफॉर्म पर प्रसारित की जाने वाली सामग्री को लेकर शिकायतें हों रही थीं। सोशल मीडिया, ओटीटी प्लेटफॉर्म पर प्रसारित होने वाले कॉन्टेंट को लेकर देश के अनेक मुख्यमंत्रियों, मंत्रियों, सांसद और विधायकों के अलावा आम नागरिकों ने भी शिकायतें की थीं। जिसके चलते भारत के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा डिजिटल मीडिया आचार संहिता 2021 बनायी गयी है। इसके तहत न्यूज पोर्टल, न्यूज वेबसाइट या ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर काम कर रहे लोग उनके मीडिया संस्थान आते हैं ।
इन प्लेटफॉर्म्स पर भी देश के मौजूदा कानून लागू होंगे और इसका उद्देश्य ऐसी सामग्री के प्रसारण पर रोक लगाना है जो मौजूदा कानूनों को उल्लंघन करने के साथ-साथ महिलाओं के प्रति आपत्तिजनक और बच्चों के लिए नुकसानदेह हैं, इसके लिए समाचार प्रकाशकों और ओटीटी प्लेटफॉर्म और कार्यक्रम प्रसारकों को अपने यहां एक शिकायत निवारण अधिकारी की नियुक्ति करनी होगी और इन शिकायतों की जानकारी भी प्रदर्शित करनी होगी। इसके साथ ही समाचार प्रकाशकों को एक नियामक संस्था का सदस्य भी बनना होगा ताकि कार्यक्रम से संबंधित शिकायतों का निपटारा हो सके। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय एक अन्तर मंत्रालय समिति का गठन करेगा जो समाचार प्रकाशक या नियामक संस्था द्वारा न सुझायी गयी शिकायतों का निपटारा करेगा।
इस समिति मे महिला एवं बाल विकास, गृह, कानून, सूचना प्रद्यौगिकी, विदेश मंत्रालय के प्रतिनिधियों के साथ-साथ डोमेन एक्सपर्ट भी शामिल होंगे। मंत्रालय किसी भी न्यूज पोर्टल, न्यूज वेबसाइट या ओटीटी पोर्टल का पंजीकरण नही कर रहा है बल्कि इनके बारे में जानकारी जुटाने का उद्देश्य यह है कि कॉन्टेंट और कार्यक्रम के बारे में कोई शिकायत मिलने पर उनसे सम्पर्क किया जा सके। इससे छोटे और मझोले स्तर के समाचार पोर्टल पर कोई विपरीत प्रभाव नही पड़ेगा। आचार संहिता का उद्देश्य समाचार प्रकाशकों और ओटीटी प्रस्तुतकर्ताओं को उन नियमों और मर्यादाओं के बारे में जागरूक करना है, जिनके पालन से देश की एकता, अखंडता एवं सौहार्द कायम रह सके।
https://prajaatantra.com/the-need-to-support-digital-platforms-with-control/
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{ लेखक : डिजिटल मीडिया के जानकार और दो दशक से डिजिटल मीडिया पर सक्रिय हैं। }