जब संकल्प के साथ साधना जुड़ जाती है, जब मानव मात्र के साथ हमारा ममभाव जुड़ जाता है, अपनी व्यक्तिगत उपलब्धियों के लिए ‘इदं न मम्’ यह भाव जागने लगता है, तो समझिए, हमारे संकल्पों के जरिए एक नए कालखंड का जन्म होने वाला है। सेवा और त्याग का यही अमृतभाव आजादी के अमृत महोत्सव में नए भारत के लिए उमड़ रहा है। इसी त्याग और कर्तव्यभाव से करोड़ों देशवासी स्वर्णिम भारत की नींव रख रहे हैं। हमारे और राष्ट्र के सपने अलग-अलग नहीं हैं, हमारी निजी और राष्ट्रीय सफलताएं अलग-अलग नहीं हैं। राष्ट्र की प्रगति में ही हमारी प्रगति है। हमसे ही राष्ट्र का अस्तित्व है और राष्ट्र से ही हमारा अस्तित्व है। ये भाव, ये बोध नए भारत के निर्माण में भारतवासियों की सबसे बड़ी ताकत बन रहा है। आज देश जो कुछ कर रहा है, उसमें सबका प्रयास शामिल है। ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास, और सबका प्रयास’ ये देश का मूल मंत्र बन रहा है। आज हम एक ऐसी व्यवस्था बना रहे हैं, जिसमें भेदभाव की कोई जगह न हो, एक ऐसा समाज बना रहे हैं, जो समानता और सामाजिक न्याय की बुनियाद पर मजबूती से खड़ा हो, हम एक ऐसे भारत को उभरते देख रहे हैं, जिसकी सोच और अप्रोच नई है, जिसके निर्णय प्रगतिशील हैं।
भारत की सबसे बड़ी ताकत ये है कि कैसा भी समय आए, कितना भी अंधेरा छाए, भारत अपने मूल स्वभाव को बनाए रखता है। हमारा युगों-युगों का इतिहास इस बात का साक्षी है। दुनिया जब अंधकार के गहरे दौर में थी, महिलाओं को लेकर पुरानी सोच में जकड़ी थी, तब भारत मातृशक्ति की पूजा, देवी के रूप में करता था। हमारे यहां गार्गी, मैत्रेयी, अनुसूया, अरुंधति और मदालसा जैसी विदुषियां समाज को ज्ञान देती थीं। कठिनाइयों से भरे मध्यकाल में भी इस देश में पन्नाधाय और मीराबाई जैसी महान नारियां हुईं। और अमृत महोत्सव में देश जिस स्वाधीनता संग्राम के इतिहास को याद कर रहा है, उसमें भी कितनी ही महिलाओं ने अपने बलिदान दिये हैं। कित्तूर की रानी चेनम्मा, मतंगिनी हाजरा, रानी लक्ष्मीबाई, वीरांगना झलकारी बाई से लेकर सामाजिक क्षेत्र में अहिल्याबाई होल्कर और सावित्रीबाई फुले तक, इन देवियों ने भारत की पहचान बनाए रखी। आज देश लाखों स्वाधीनता सेनानियों के साथ आजादी की लड़ाई में नारी शक्ति के इस योगदान को याद कर रहा है और उनके सपनों को पूरा करने का प्रयास कर रहा है। आज सैनिक स्कूलों में पढ़ने का बेटियों का सपना पूरा हो रहा है। अब देश की कोई भी बेटी, राष्ट्र-रक्षा के लिए सेना में जाकर महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां उठा सकती है। महिलाओं का जीवन और करियर दोनों एक साथ चलें, इसके लिए मातृ अवकाश को बढ़ाने जैसे फैसले भी किए गए हैं। देश के लोकतंत्र में भी महिलाओं की भागीदारी बढ़ रही है। 2019 के चुनाव में पुरुषों से ज्यादा महिलाओं ने मतदान किया। आज देश की सरकार में बड़ी बड़ी जिम्मेदारियां महिला मंत्री संभाल रही हैं। और सबसे ज्यादा गर्व की बात है कि अब समाज इस बदलाव का नेतृत्व खुद कर रहा है। हाल के आंकड़ों से पता चला है कि ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान की सफलता से, वर्षों बाद देश में स्त्री-पुरुष का अनुपात भी बेहतर हुआ है। ये बदलाव इस बात का स्पष्ट संकेत हैं कि नया भारत कैसा होगा, कितना सामर्थ्यशाली होगा।
हमारे ऋषियों ने उपनिषदों में ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय, मृत्योर्मामृतं गमय’ की प्रार्थना की है। यानी, हम अंधकार से प्रकाश की ओर बढ़ें। परेशानियों से अमृत की ओर बढ़ें। अमृत और अमरत्व का रास्ता बिना ज्ञान के प्रकाशित नहीं होता। इसलिए, अमृतकाल का ये समय हमारे ज्ञान, शोध और इनोवेशन का समय है। हमें एक ऐसा भारत बनाना है जिसकी जड़ें प्राचीन परंपराओं और विरासत से जुड़ी होंगी और जिसका विस्तार आधुनिकता के आकाश में अनंत तक होगा। हमें अपनी संस्कृति, अपनी सभ्यता, अपने संस्कारों को जीवंत रखना है। अपनी आध्यात्मिकता को, अपनी विविधता को संरक्षित और संवर्धित करना है। और साथ ही, टेक्नोलॉजी, इंफ्रास्ट्रक्चर, एजुकेशन, हेल्थ की व्यवस्थाओं को निरंतर आधुनिक भी बनाना है। आज भारत किसानों को समृद्ध और आत्मनिर्भर बनाने के लिए ऑर्गेनिक फार्मिंग और नैचुरल फार्मिंग की दिशा में प्रयास कर रहा है। इसी तरह क्लीन एनर्जी के और पर्यावरण के क्षेत्र में भी दुनिया को भारत से बहुत अपेक्षाएं हैं। आज क्लीन एनर्जी के कई विकल्प विकसित हो रहे हैं। इसे लेकर भी जनजागरण के लिए बड़े अभियान की जरूरत है। हम सब मिलकर आत्मनिर्भर भारत अभियान को भी गति दे सकते हैं। वोकल फॉर लोकल, स्थानीय उत्पादों को प्राथमिकता देकर, इस अभियान में मदद हो सकती है।
अमृतकाल का ये समय सोते हुए सपने देखने का नहीं, बल्कि जागृत होकर अपने संकल्प पूरे करने का है। आने वाले 25 साल, परिश्रम की पराकाष्ठा, त्याग, तप-तपस्या के 25 वर्ष हैं। सैकड़ों वर्षों की गुलामी में हमारे समाज ने जो गंवाया है, ये 25 वर्ष का कालखंड, उसे दोबारा प्राप्त करने का है। इसलिए आजादी के इस अमृत महोत्सव में हमारा ध्यान भविष्य पर ही केंद्रित होना चाहिए। हमारे समाज में एक अद्भुत सामर्थ्य है। ये एक ऐसा समाज है, जिसमें चिर पुरातन और नित्य नूतन व्यवस्था है। हालांकि इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि समय के साथ कुछ बुराइयां व्यक्ति में भी, समाज में भी और देश में भी प्रवेश कर जाती हैं। जो लोग जागृत रहते हुए इन बुराइयों को जान लेते हैं, वो इन बुराइयों से बचने में सफल हो जाते हैं। ऐसे लोग अपने जीवन में हर लक्ष्य प्राप्त कर पाते हैं। हमारे समाज की विशेषता है कि इसमें विशालता भी है, विविधता भी है और हजारों साल की यात्रा का अनुभव भी है। इसलिए हमारे समाज में, बदलते हुए युग के साथ अपने आप को ढालने की एक अलग ही शक्ति है। हमारे समाज की सबसे बड़ी ताकत ये है कि समाज के भीतर से ही समय-समय पर इसे सुधारने वाले पैदा होते हैं और वो समाज में व्याप्त बुराइयों पर कुठाराघात करते हैं। हमने ये भी देखा है कि समाज सुधार के प्रारंभिक वर्षों में अक्सर ऐसे लोगों को विरोध का भी सामना करना पड़ता है, कई बार तिरस्कार भी सहना पड़ता है। लेकिन ऐसे सिद्ध लोग, समाज सुधार के काम से पीछे नहीं हटते, वो अडिग रहते हैं। समय के साथ समाज भी उनको पहचानता है, उनको मान सम्मान देता है और उनकी सीखों को आत्मसात भी करता है।
आज डिजिटल गवर्नेंस का एक बेहतरीन इंफ्रास्ट्रक्चर भारत में है। जनधन, मोबाइल और आधार, इस त्रिशक्ति का देश के गरीब और मिडिल क्लास को सबसे अधिक लाभ हुआ है। इससे जो सुविधा मिली है और जो पारदर्शिता आई है, उससे देश के करोड़ों परिवारों का पैसा बच रहा है। 8 साल पहले इंटरनेट डेटा के लिए जितना पैसा खर्च करना पड़ता था, उससे कई गुना कम कीमत में आज उससे भी बेहतर डेटा सुविधा मिल रही है। पहले बिल भरने के लिए, कहीं एप्लीकेशन देने के लिए, रिजर्वेशन के लिए, बैंक से जुड़े काम हों, ऐसी हर सेवा के लिए दफ्तरों के चक्कर लगाने पड़ते थे। रेलवे का आरक्षण करवाना हो और व्यक्ति गांव में रहता हो, तो पहले वो पूरा दिन खपा करके शहर जाता था, 100-150 रुपया बस का किराया खर्च करता था, और फिर रेलवे आरक्षण के लिए लाइन में लगता था। आज वो कॉमन सर्विस सेंटर पर जाता है और वहीं से उसका काम हो जाता है। ई-संजीवनी जैसी टेलिकंसल्टेशन की सेवा के माध्यम से अब तक 3 करोड़ से अधिक लोगों ने घर बैठे ही अपने मोबाइल से अच्छे से अच्छे अस्पताल में, अच्छे से अच्छे डॉक्टर से कंसल्ट किया है। अगर उनको डॉक्टर के पास जाना पड़ता, तो आप कल्पना कर सकते हैं कितनी कठिनाइयां होती, कितना खर्चा होता। पीएम स्वामित्व योजना पर शहर के लोगों का बहुत कम ध्यान गया है। पहली बार शहरों की तरह ही गांव के घरों की मैपिंग और डिजिटल लीगल डॉक्यूमेंट ग्रामीणों को देने का काम चल रहा है। ड्रोन गांव के अंदर जा करके हर घर की ऊपर से मैपिंग कर रहा है। अब लोगों के कोर्ट-कचहरी के सारे झंझट बंद। ये सब हुआ है डिजिटल इंडिया के कारण। डिजिटल इंडिया अभियान ने देश में बड़ी संख्या में रोजगार और स्वरोजगार के अवसर भी बनाए हैं।
बीते आठ वर्षों में डिजिटल इंडिया ने देश में जो सामर्थ्य पैदा किया है, उसने कोरोना वैश्विक महामारी से मुकाबला करने में भारत की बहुत मदद की है। आप कल्पना कर सकते हैं कि अगर डिजिटल इंडिया अभियान नहीं होता, तो इस सबसे बड़े संकट में हम क्या कर पाते? देश की करोड़ों महिलाओं, किसानों, मज़दूरों, के बैंक अकाउंट में एक क्लिक पर हज़ारों करोड़ रुपए पहुंचा दिए गए। ‘वन नेशन-वन राशन कार्ड’ की मदद से 80 करोड़ से अधिक देशवासियों को मुफ्त राशन सुनिश्चित किया गया। ये टेक्नोलॉजी का कमाल है। भारत ने दुनिया का सबसे बड़ा और सबसे प्रभावशाली कोविड वैक्सीनेशन और कोविड रिलीफ प्रोग्राम चलाया। ‘आरोग्य सेतु’ और ‘कोविन’, ये ऐसे प्लेटफॉर्म हैं कि उसके माध्यम से अब तक करीब-करीब 200 करोड़ वैक्सीन डोज लगाई जा चुकी हैं। दुनिया में आज भी चर्चा है कि वैक्सीन सर्टिफिकेट कैसे लेना है, कई दिन निकल जाते हैं। हिन्दुस्तान में व्यक्ति वैक्सीन लगा करके बाहर निकलता है और उसके मोबाइल साइट पर सर्टिफिकेट मौजूद होता है। डिजिटिल इंडिया भविष्य में भी भारत की नई अर्थव्यवस्था का ठोस आधार बने, इसके लिए भी आज अनेक प्रकार के प्रयास किए जा रहे हैं। आज AI, Block-Chain, AR-VR, 3D Printing, Drones, Robotics, Green Energy ऐसी अनेक New Age Industries के लिए 100 से अधिक स्किल डेवलपमेंट के कोर्सेज चलाए जा रहे हैं। आने वाले 4-5 सालों में 14-15 लाख युवाओं को Future Skills के लिए Reskill और Upskill करने का प्रयास है।
आजादी के इस अमृतकाल में हमारे राष्ट्रीय संकल्पों की सिद्धि हमारे आज के एक्शन से तय होगी। ये एक्शन हर स्तर पर, हर सेक्टर के लिए बहुत जरूरी हैं। अमृत महोत्सव की ताकत, जन-जन का मन है, जन-जन का समर्पण है। हम सभी के प्रयासों से भारत आने वाले समय में और भी तेज गति से स्वर्णिम भारत की ओर बढ़ेगा।
लेखक :- प्रो. संजय द्विवेदी, महानिदेशक, भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली