विधान सभा की समितियां होती हैं मिनी विधान सभा,लोकसभा और राज्य सभा की तरह मध्यप्रदेश विधान सभा में लाइव टेलीकॉस्ट हो लगातार इस बात का प्रयास हो- गिरीश गौतम, अध्यक्ष, मध्यप्रदेश विधान सभा
विधान सभा की कार्यवाही के पुराने 10 लाख पेजों का डिजिटाइजेशन किया, विधान सभा के सदस्यों को सदन के भीतर बात रखने के लिए संदर्भ सामग्री एक क्लिक पर मिलेगी
विधान सभा के सदस्यगण सदन में बैठते हैं, उनके सामने कागज का बोझ नहीं हो, पूरा डिजिटल के माध्यम से कंप्यूटर पर स्क्रीन तैयार करके, इस तरह से केवल एक क्लिक के माध्यम से सारी जानकारी एकत्रित करके अपनी बात को वे कह सकें, विधायकों का वहां पर भाषण होता है या जो वे अपनी बात कहते हैं, उनके विडीयो भी हमने तैयार कर लिया है और नामजद फीस लेकर के उनकी स्पीच को उनको तत्काल हम उपलब्ध कराते हैं, जिससे वे क्षेत्र में जाकर के दिखा सकें कि क्षेत्र की समस्या के लिए उन्होंने विधान सभा के स्तर पर कौन सी बात उठाई है।
अनुसूचित जाति, जनजाति कल्याण समिति एक अलग बना दी है और पिछड़ा वर्ग कल्याण संबंधी समिति अलग बना दी है, हमने दोनों समितियों को अलग-अलग कर दिया है. दूसरी एक नई समिति हमने बनाई है, विधायक के सत्रकाल अनुरक्षण समिति, वह प्रोटोकाल समिति कहलाती है,
विधायक का विशेषाधिकार दो बातों के लिये खासतौर पर होता है एक तो उसकी बात विधान सभा के भीतर स्वतंत्र है और दूसरा उसका विधान सभा के भीतर आना।
विधान सभा की समितियां होती हैं मिनी विधान सभा,लोकसभा और राज्य सभा की तरह मध्यप्रदेश विधान सभा में लाइव टेलीकॉस्ट हो लगातार इस बात का प्रयास हो रहा
मध्यप्रदेश की विधान सभा को प्रथम पंक्ति में ले जाकर के डिजिटाइजेशन के माध्यम से खड़ा करेंगे.
एमपी पोस्ट के सकारात्मक डिजिटल जर्नलिज्म के दो दशक के अवसर पर विशेष सीरीज़ के तहत ऑनलाइन आयोजन में श्री गिरीश गौतम, अध्यक्ष, मध्यप्रदेश विधान सभा ने राज्यों की विधान सभाओं में डिजिटल संसदीय प्रक्रियायें और पहली बार मध्यप्रदेश विधान सभा के डिजिटल कायाकल्प पर यूट्यूब पर ऑनलाइन संवाद किया।
श्री गिरीश गौतम, अध्यक्ष, मध्यप्रदेश विधान सभा द्वारा सवालों के दिए गए पूरे जवाब वीडियो के साथ :-
30 सितंबर, 2021,भोपाल । यह आपका एक बहुत अच्छा प्रयास है क्योंकि यह वर्तमान समय की आवश्यकता है- पूरी तरह से डिजिटल की ओर जाने की. यदि हम इसे संसदीय प्रक्रिया में शामिल करेंगे तो बहुत ही अच्छा होगा क्योंकि कोरोना काल में कई बार देखा गया है कि जब हम सोशल डिस्टेंसिंग की बात करते हैं, एक-दूसरे से दूर रहने की बात करते हैं, उस स्थिति में कम्युनिकेशन का इससे बेहतर कोई माध्यम हो ही नहीं सकता है. हमने कई बार वर्चुअली चलाकर देखा है और हमें उसमें सफलता मिली है. इसलिए मेरा कहना है कि आज की आवश्यकताओं को देखते हुए, पूरी संसदीय प्रक्रिया को डिजि़टल किया जाना एकदम ठीक है और इसमें थोड़ा और प्रयास कर, इसमें जो कमियां हैं, उस ओर भी ध्यान देने की आवश्यकता है. कई बार ऐसा हो जाता है जैसे- अभी हम आपस में पिछले 15-20 मिनट से बात करने का प्रयास कर रहे थे लेकिन किन्हीं तकनीकी कारणों से हम जुड़ नहीं पा रहे थे, ये जो तकनीकी त्रुटियां आती हैं, इनमें हम और कितना अच्छा सुधार कर पायें, यदि वैसा हम कर पायें तो वाकई में संसदीय प्रक्रिया में डिजि़टल का होना, हमारे लिए शुभ संकेत होगा और हमारी कार्यवाही के लिए आसान होगा, ऐसा मैं, इस अवसर पर कहना चाहता हूं।
एमपी पोस्ट के सकारात्मक डिजिटल जर्नलिज्म के दो दशक के अवसर पर विशेष सीरीज़ के तहत ऑनलाइन आयोजन में श्री गिरीश गौतम, अध्यक्ष, मध्यप्रदेश विधान सभा ने राज्यों की विधान सभाओं में डिजिटल संसदीय प्रक्रियायें और पहली बार मध्यप्रदेश विधान सभा के डिजिटल कायाकल्प पर यूट्यूब पर आज 30 सितम्बर 2021 ऑनलाइन संवाद किया।
विधान सभा के स्पीकर श्री गिरीश गौतम ने ने एक सवाल के उत्तर में बताया की अभी हमने सबसे बड़ा कार्य यह शुरू किया है कि हम विधान सभा में प्रश्नों को ऑनलाईन एवं ऑफलाईन दोनों माध्यमों से ले रहे हैं क्योंकि अभी कई इलाकों में नेटवर्क की उतनी अच्छी सुविधा नहीं है, जितनी होनी चाहिए. इसलिए दूर-दराज़ के इलाकों में रहने वाले विधायकों के प्रश्न हमें ऑनलाईन-डिजि़टली नहीं आ पाते हैं. इसलिए हमने ऑनलाईन एवं ऑफलाईन दोनों की व्यवस्था कर रखी है लेकिन हमारे लिए यह सुखद संयोग है कि हमारे पास जो प्रश्न आते हैं उनमें से अधिकांश, लगभग 70 प्रतिशत के आस-पास ऑनलाईन ही आते हैं।
हमें वर्चुअल विधान सभा चलाने का भी अनुभव है, कोरोना-काल में जब हमने विधान सभा चलाई तो कई विधायक जो विधान सभा की बैठक में किन्हीं कारणों से नहीं शामिल हो रहे थे, हमने उनको वर्चुअली शामिल करने का प्रयास किया है. दूसरा डिजिटल के माध्यम से हम यह करने जा रहे हैं कि जो हमारी विधान सभा की लाइब्रेरी है, उसकी पूरी रिकार्डिंग एक तरह से कर रहे हैं और प्रयास यह कर रहे हैं कि यह व्यवस्था हो जाए. इस बात के भी प्रयास कर रहे हैं कि सारे विधायकों के टेबल पर जिस तरह से माइक होता है, उस तरह से पूरी लाइब्रेरी उनके सामने हो और डिजिटल के माध्यम से बटन दबाकर के देख सकें कि कब किस विषय पर किसने क्या कहा. उससे शायद उनको अपनी बात कहने में ज्यादा सुविधा होगी कि संदर्भ को निकालकर वे अपनी बात कहें. इसलिए विधान सभा के भीतर यह प्रक्रिया सतत चालू है और प्रयास यह होगा कि इस तरह से हम इस बात को और आगे बढ़ाएं. दूसरा, हम यह भी करने का प्रयास कर रहे हैं कि जो प्रसारण होता है, उस प्रसारण को भी किसी तरह से कम से कम एक घंटे का, जिस तरह से लोकसभा और राज्य सभा में होता है, उस तरह से लाइव करने का प्रयास कर रहे हैं. स्वाभाविक है कि आज का युग डिजिटल का युग है. इस दिशा में हम लोग आगे बढ़ पाएंगे. यह प्रयास विधान सभा की तरफ से किया जा रहा है।
विधान सभा अध्यक्ष ने एक सवाल के जवाब में कहा की यही प्रयास हम कर रहे हैं, इसलिए अभी हमने विधान सभा की कार्यवाही के जो पुराने 10 लाख पेज हैं, उनका डिजिटाइजेशन किया है. किसी भी विषय को लेकर के, चाहे ध्यानाकर्षण रहा हो, चाहे आधे घण्टे की चर्चा रही हो, चाहे शून्यकाल रहा हो, चाहे प्रश्नकाल रहा हो, किसी न किसी माध्यम से माननीय सदस्यों द्वारा की गई चर्चा के जो रिकार्ड हमारे पास थे, उनका हमने डिजिटाइजेशन करने का प्रयास किया है और आगे एक कदम जाकर के प्रयास यह कर रहे हैं कि जब वह पूरा रिकार्ड डिजिटल हो जाए तो विधायक की टेबल पर वह मौजूद रहे. किसी भी संदर्भ को उसको देखना है तो एक क्लिक करके वह देख सके. अभी प्रश्न के माध्यम से जब विधायक बोलते हैं तो काफी मोटी किताबें उनको अपने टेबल के ऊपर रखनी पड़ती है तो शायद यह भी अपने को नहीं रखना पड़ेगा क्योंकि सब कुछ डिजिटल के माध्यम से हो जाएगा. एक क्लिक से ही किसी विषय को लेकर के वे अपनी बात कह सकते हैं. सरकार को भी सुविधा होगी, उनको भी जो तमाम सारे बस्ते इकट्ठे करने पड़ते हैं, वह भी नहीं करने पड़ेंगे. इसलिए इस दिशा में मध्य प्रदेश विधान सभा लगातार प्रयास कर रही है और हम उम्मीद यह करते हैं कि इसमें हम सफलता प्राप्त करेंगे और मध्यप्रदेश की विधान सभा को प्रथम पंक्ति में ले जाकर के डिजिटाइजेशन के माध्यम से खड़ा करेंगे. मुझे विश्वास है कि हम सफलता प्राप्त करेंगे।
मध्यप्रदेश विधान सभा के अध्यक्ष श्री गिरीश गौतम ने बताया की ऑनलाइन की भी व्यवस्था हर हालत में होनी चाहिए. ऑफलाइन भी चलता है, आपने कहा कि कई बार नेट की प्रॉब्लम होने के कारण, दूरदराज के जो हमारे माननीय सदस्य हैं, उन तक कनेक्टिविटी कम होने के कारण कई बार वे ऑनलाइन पूरा कम्पलीट नहीं कर सकते. इसमें हमारी सफलता यह है कि चूँकि हम ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों चीज लेते हैं तो ऑनलाइन का परसेटेंज ज्यादा है. ऑनलाइन को विधायकों ने ज्यादा परसेंटेज में उपयोग किया है, ऑफलाइन को कम किया है. इसलिए हम यह कह सकते हैं कि उस दिशा में मध्य प्रदेश विधान सभा आगे बढ़ रही है. कुल मिलाकर के हमारा उद्देश्य यह है कि प्रत्येक विधान सभा के हमारे जो माननीय सदस्यगण बैठते हैं, उनके सामने कागज का बोझ नहीं हो, पूरा डिजिटल के माध्यम से कंप्यूटर पर स्क्रीन तैयार करके, इस तरह से केवल एक क्लिक के माध्यम से सारी जानकारी एकत्रित करके अपनी बात को वे कह सकें. दूसरा, यह भी हमने प्रयास किया है कि जो हमारे विधायकों का वहां पर भाषण होता है या जो वे अपनी बात कहते हैं, उनके विडीयो भी हमने तैयार कर लिया है और नामजद फीस लेकर के उनकी स्पीच को उनको तत्काल हम उपलब्ध कराते हैं, जिससे वे क्षेत्र में जाकर के दिखा सकें कि क्षेत्र की समस्या के लिए उन्होंने विधान सभा के स्तर पर कौन सी बात उठाई है. इसलिए इसका उपयोग अच्छा है. केवल यह आग्रह मैं बार-बार करता हूँ कि चाहे डिजिटल हो जाए, वर्चुअल हो जाए, पर विधान सभा का संचालन वर्चुअली होने से एक तरह से विधान सभा का जो उद्देश्य है, जो महत्ता है, वह शायद कम हो. विधान सभा को एक्चुअल ही चलना चाहिए. वर्चुअल से उसका स्वरूप बिगड़ जाएगा. यदि दूर से बैठकर विधान सभा का संचालन शुरू करेंगे तो संविधान के उस उद्देश्य की पूर्ति हम नहीं कर सकेंगे. बाकी सारी चीजें डिजिटिलाइजेशन हो जाए और डिजिटल के माध्यम से सारी चीजें हों यह विधान सभा प्रयास कर रही है.
विधान सभा के अध्यक्ष ने एक प्रश्न के उत्तर में बताया की मध्यप्रदेश विधान सभा में पहले से ही इस तरह के प्रशिक्षण वर्ग चलाए जाते हैं, जैसे शुरू शुरू में जब नेट के लिए और डिजिटिलाइजेशन के लिए कार्य आया तो हमने विधायकों के लिए उसको सीखने के लिए कम्प्यूटर प्रशिक्षण शिविर लगाए. बहुत सारे विधायकों ने उसको सीखने का प्रयास किया और अब तो बहुत से विधायक लैपटॉप चला लेते हैं. बहुत लोग कम्प्यूटर चला लेते हैं, पर कई बार विधायकों के पास जिस तरह के लोग आते हैं, अब लोकतंत्र के भीतर हम किसी को बाध्य नहीं कर सकते कि जो लोग इसके लिए फिट होंगे वे ही विधान सभा में आएंगे. उसके लिए हम यह प्रयास कर रहे हैं कि कई विश्वविद्यायलों से बात चीत करके जिन विधायकों की डिग्री कम है या शिक्षा कम है, वे शिक्षा लेना चाहते हैं तो मध्यप्रदेश विधान सभा के भीतर यह प्रयास होगा कि उनका हम दाखिला करवाएंगे, उनको शिक्षा और प्रशिक्षण दोनों देने का प्रयास कर रहे हैं. पर हम उन्हें बाध्य नहीं कर सकते. यदि बाध्यता नहीं है तो आप सूची निकालेंगे तो केवल मध्यप्रदेश विधान सभा में ही नहीं, बल्कि तमाम सारी विधान सभाओं में ऐसे विधायक हैं, जिनका शैक्षणिक स्तर अभी ठीक ठाक नहीं है, इसलिए उनके सामने अभी नेट की बात करना या डिजिटल होने की बात करना, उनके लिए कोई मायने नहीं रखता है. इसलिए यह भी व्यवस्था की गई है कि यदि विधायकों का कोई पर्सनल असिस्टेंट होता हो या इस तरह की कोई व्यवस्था हो तो वह असिस्टेंट जानकार रहे, कम्प्यूटर के बारे में जानता हो, डिजिटिलाइजेशन के बारे में समझता हो, तो उनकी मदद के लिए भी यह व्यवस्था की जा रही है।
पहले सवाल का उत्तर यह है कि जो एनेक्चर(annexure) आते हैं, जिन्हें आप परिशिष्ट कहते हैं. कई बार परिशिष्टों के पेजों की संख्या बहुत ज्यादा होती है किसी एक सवाल को लेकर के जैसे किसी विधायक ने पूछ लिया कि किसी जिले के भीतर किसी विषय को लेकर के अब तक क्या क्या काम हुए. जब वह पूछते हैं तो परिशिष्ट बहुत ज्यादा हो जाते हैं, हमारे ऊपर इतने परिशिष्टों का शायद बहुत ज्यादा बोझ होगा, परन्तु जो मूल चीज है मूल चीज को हम डिजिटिलाइजेशन करते हैं, अब वह जो परिशिष्ट आते हैं उनका डिजिटिलाइजेशन करना भी एक सीमा तक ही संभव हो पाएगा. क्योंकि कई बार देखा है कि जब विधान सभा में प्रश्न लगते हैं और जब अधिकारी मध्यप्रदेश विधान सभा में उसका उत्तर लेकर आते हैं तो एक प्रश्न का उत्तर इतना लंबा चौड़ा था कि उसको ट्राली में भरकर लेकर आए थे, उसका उत्तर एक छोटी ट्राली में भरकर लेकर आए थे, इतना ज्यादा डिजिटिलाइजेशन संभव नहीं हो पाएगा. फिर भी हम यह प्रयास कर रहे हैं कि ज्यादा से ज्यादा जो भी जानकारी हो सकती हो, वह जानकारी एक क्लिक से ही हमारे माननीय सदस्य को प्राप्त हो सके।
श्री गिरीश गौतम विधान सभाध्यक्ष ने बताया की वर्चुअल के प्रोसेस को हमने शुरू किया है, कोरोना काल में कई विधायकों को छूट दी गई, मैंने पहले भी आग्रह किया न कि कई विधायकों को वर्चुअली शामिल होने का अवसर दिया गया और 5-6 विधायक शामिल भी हुये, पर इसको सामान्य तौर पर हम नियमित नहीं कर सकते. क्योंकि मैंने आपसे पहले भी आग्रह किया कि संविधान की संस्कृति, परंपराओं के भीतर संसद को, विधान सभा को चलाने की जो मंशा है, अगर हम पूरा वर्चुअल कर देंगे तो विधायक अपने क्षेत्र में बैठा रहेगा. जैसे मैं एक उदाहरण देता हूं कि क्यों जरूरी है, वर्चुअल की जगह एक्चुअल की आवश्यकता है. कई बार आप देखते होंगे कि विधान सभा के भीतर जब माननीय सदस्य से कोई प्रश्न करता है तो उसे खड़ा होकर आसंदी का सम्मान करते हुये प्रश्न करना पड़ता है, मंत्री को भी खड़ा होकर जवाब देना पड़ता है, क्या वर्चुअल मीटिंग में हम यह कर सकते हैं, क्या यह संभव है, यह संभव नहीं है. जो मूल मंशा है हमारी विधान सभाओं की या संसद की वह तो अपने आप समाप्त हो जायेगी. आकस्मिक कभी ऐसा कोई संकट आया जैसे आपातकाल की तरह कोरोना आया, इसमें हमने लोगों को एलाऊ किया और अगर हम इसे रेग्यूलर नियमित कर दें तो फिर तो विधान सभा की मंशा ही खत्म हो जायेगी, फिर विधान सभा की जरूरत क्या रह जायेगी, फिर लोक सभा की जरूरत क्या रह जायेगी, फिर तो हम जहां बैठे हैं वहां से सीधा जोड़ लें।
विधान सभा के अध्यक्ष ने एक अन्य सवाल के जवाब में बताया जहां तक समितियों का सवाल है तो समितियों के दौरे विधान सभा सत्र के दौरान नहीं होते इसलिये यह शायद कहना उचित नहीं होगा कि कई विधायक सत्र के दरमियान विधान सभा समितियों के दौरे पर बाहर हैं, उनको अवसर मिलना चाहिये, क्योंकि विधान सभा के नियम और प्रक्रिया के भीतर जब सत्र आहूत होगा उस समय उनके एक महीने पहले से ही सारे दौरे निरस्त कर दिये जाते हैं, कोई दौरा नहीं होता है. समितियों की जो बैठकें होती हैं वह हर महीने के भीतर लगातार होती रहती हैं जो 23 समितियां हमारे यहां हैं, तो आप ऐसा समझ सकते हैं कि प्रतिदिन किसी न किसी समिति की बैठक हो रही है और समिति का उद्देश्य ही यह है कि वर्तमान जो विधान सभा का सत्र चलता है इसके अवकाश होने के दरमियान विधान सभा के मिनी स्वरूप में वह समितियां चलती हैं जो परीक्षण करती रहती हैं, इसलिये यह वर्चुअली विधान सभा हो, शायद मैं इससे सहमत नहीं हो पाऊंगा।
एमपी विधान सभा के स्पीकर ने एक सवाल के उत्तर में बताया की अभी हाल ही में मैंने विधान सभा की दो कमेटियां निर्मित की हैं अभी तक हमारे पास एक समिति थी अनुसूचित जाति एवं जनजाति कल्याण एवं पिछड़ा वर्ग कल्याण समिति, आप देखते हैं कि दोनों की तासीर अलग-अलग है. पिछड़ा वर्ग कल्याण का अलग मद होता है, उसकी अलग व्यवस्था होती है, अनुसूचित जाति, जनजाति के मद अलग होते हैं, इसलिये दोनों का एक साथ होना शायद ठीक नहीं था, इसलिये इन दोनों समितियों को हमने अलग कर दिया है. अनुसूचित जाति, जनजाति कल्याण समिति एक अलग बना दी है और पिछड़ा वर्ग कल्याण संबंधी समिति अलग बना दी है, हमने दोनों समितियों को अलग-अलग कर दिया है. दूसरी एक नई समिति हमने बनाई है, विधायक के सत्रकाल अनुरक्षण समिति, वह प्रोटोकाल समिति कहलाती है। अभी तक विधायक के प्रोटोकाल का कहां ख्याल होगा, कहां विचार होगा, कहां सुनवाई होगी यह तय नहीं था, इसलिये विधायक बार-बार उसके प्रोटोकाल के उल्लंघन का आवेदन विशेषाधिकार समिति के समक्ष लगाता था और कई बार विधायक का प्रोटोकाल अलग होता है और विशेषाधिकार अलग होता है क्योंकि विशेषाधिकार पर अगर हम सीधे तौर पर देखें तो विधायक का विशेषाधिकार दो बातों के लिये खासतौर पर होता है एक तो उसकी बात विधान सभा के भीतर स्वतंत्र है और दूसरा उसका विधान सभा के भीतर आना, विधान सभा की कार्यवाहियों में भाग लेना, न केवल फिजीकली उसका जो भी काम हो सकता है उस तरह से उसका शामिल होना, इन दो बातों पर जब रोक होगी तब उसका विशेषाधिकार कहलाता है. परंतु सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा न ही कोई गाइडलाइन जारी की गई कि विधायक के पत्रों का जवाब दिया जाना जरूरी है. उसके किसी भी क्षेत्र के भीतर कोई कार्यक्रम हो रहा है, तो उसको बुलाया जाना जरूरी है, ऐसा करके सामान्य प्रशासन विभाग में सरकार के जो आदेश होते हैं उनका कोई उल्लंघन करता है तो यह विशेषाधिकार समिति के भीतर न होकर इनका परीक्षण कहां हो यह विषय बहुत दिनों से चल रहा था. इसलिये हमने इसके लिये प्रोटोकॉल समिति का गठन किया है. अब इस तरह के सवालों का परीक्षण प्रोटोकॉल समिति करेगी. विधायक के सत्कार अनुरक्षण समिति के नाम से हमने इस समिति का गठन किया है. इन सबका निराकरण इस समिति के माध्यम से होगा. मैं आपसे कहना चाहता हूं कि विधान सभा की जो समितियां होती हैं वह मिनी विधान सभा होती है. लगातार उनका काम चलता रहता है और इसलिये विधान सभा अवसान के समय में जब विधान सभा स्थगित रहती है उस समय इन समितियों के माध्यम से ही काम होता है. इसकी आवश्यकता थी इसलिये हमने उसकी पूर्ति करने का काम किया है।
श्री गिरीश गौतम स्पीकर मध्यप्रदेश विधान सभा ने एक सवाल के जवाब में बताया की कोई चीज कभी पर्याप्त नहीं होती है. यदि पर्याप्त हुआ होता तो 1950 में लागू किये गये संविधान में 108 संशोधन नहीं हुये होते. 108 संशोधन हुये हैं, तो इसका मतलब कोई भी चीज पूर्णत: नहीं है. हमेशा लगातार जो बातें आती रहती हैं उनमें सुधार किया जाता है. इसलिये हम ऐसा नहीं मानते कि अब इसकी पूर्णता हो गई है. लगातार सुझाव आते रहते हैं जिससे लोग सीखेंगे, अनुभव करेंगे. उसके बाद भी ऐसा लगता है कि सुधार की आवश्यकता है तो हर बार सुधार होते रहना चाहिये।
ऑनलाइन संवाद के मॉडरेटर सरमन नगेले और फाउंडर एडिटर एमपीपोस्ट के अनेक सवालों के मध्यप्रदेश विधान सभा के स्पीकर श्री गिरीश गौतम ने जबाव देते हुए संसदीय प्रक्रिया के साथ सदन की गरिमा संविधान और भारत के लोकतंत्र से जुड़े हुए पहलुओं पर बात रखते हुए कहा की विधान सभा में राजनैतिक तौर पर विचार नहीं करना चाहिये. विधान सभा में तो सभी रजनीति करने वाले, हर सिद्धांत, हर नीति वाले विधायक जीतकर आते हैं. विधान सभा तो इस बात के लिये होती है कि देश में किसी भी प्रदेश की विधान सभा हो, उसमें जो जन भावना है, जन वेदना है, कोई भी समस्या है, उसके निराकरण का एक मंदिर है और विधायक उसका प्रतिनिधि बनकर आता है. वह उस बात को उठाता है और विधान सभा के भीतर जो भी निर्णय होता है वह जनकल्याण के लिये होता है. मैं उसको ऐसा समझता हूं कि प्रदेश की जनता की वेदनाओं का एक प्लेटफार्म है, जहां उनकी वेदनाओं को रखा जाता है और विधायक उसको रखता है. विधान सभा के भीतर आप देखते होंगे कि जो कार्यवाहियों का संचालन होता है वह जनता के मुद्दे पीछे रह जाते हैं और राजनैतिक मुद्दे ज्यादा आगे आ जाते हैं. मेरा यही आग्रह रहता है कि जबसे मुझे जिम्मेदारी मिली है, मैं बार-बार आग्रह करता हूं कि विधान सभा में वाद विवाद की जगह संवाद हो तो ज्यादा सकारात्मक परिणाम हम जनता के पक्ष का प्राप्त कर सकते हैं. सकारात्मकता की सोच करने के लिये सारे लोगों को शामिल होना पड़ेगा और विधान सभा को यह मानना पड़ेगा कि यही प्लेटफार्म है जहां जनता की समस्याओं की, वेदनाओं की बात हम रख सकते हैं और उसके सकारात्मक निराकरण से लोगों के कल्याण के काम हो सकते हैं. जब तक हम ऐसा नहीं समझेंगे तब तक हम उसे राजनीति का अखाड़ा बनाएंगे और यह ठीक नहीं होगा ऐसा मैं समझता हूं।
इसलिये हम उनका संकलन करा रहे हैं और संकलन करके हम देखेंगे. पत्रकार बंधु जो विद्यार्थी हैं, पत्रकारिता सीख रहे हैं, उनसे भी आग्रह है कि आजकल पत्रकारों के लिये भी आवश्यकता इस बात की है कि उनका भी अध्ययन में रुचि हो और स्वाभाविक है कि नये लड़के हैं तो डिजिटल की तरफ ही रुचि होगी और सारी जानकारी उनको होगी. मैं यह आग्रह करना चाहता हूं कि यदि कोई पत्रकार है, अभी कल ही मैं पत्रकारों के एक समारोह में गया था, तो उनको बोलकर आया हूं और फिर मैं उसको रिपीट करना चाहता हूं कि पत्रकार को ईश्वर की दो चीजें अद्भुत रूप से प्राप्त हुई हैं एक उसकी संवेदनशीलता और दूसरा अभिव्यक्ति की विशेष क्षमता. यह दो चीजें ईश्वर से प्राप्त हुई हैं और मैं ऐसा मानता हॅूं कि समाज की वेदनाओं का उससे बड़ा प्रवक्ता कोई हो ही नहीं सकता तो हमेशा उसको सकारात्मक, समाज में होने वाली घटनाओं को सकारात्मक रूप से देखना पडे़गा कि हम इसको कैसे करके, केवल इस बात के लिए ही नहीं कि केवल हमें घटना को उठाना है और उसका परिणाम क्या निकलेगा, समाज में वैमनस्यता बढे़गी या सदासयता बढे़गी तो यह भी विचार करके, इसलिए मैं सकारात्मता की बात करता हॅूं कि सकारात्मकता के साथ उस खबर को देने की आवश्यकता है। दूसरी बात यह भी कहना चाहता हॅूं कि कई बार पत्रकार मित्र तमाम सारी चीजों को कहते जरूर हैं और समाज के भीतर रहने का कारण क्योंकि आप मार्गदर्शक की भूमिका में हो, इसलिए आपका दायित्व बनता है कि उसका विकल्प क्या हो सकता है, रास्ता क्या हो सकता है आप क्या सोचते हो, उस रास्ते के लिए, वह भी आपको बताना पडे़गा. संसद के भीतर या विधान सभा के भीतर जब कोई माननीय सदस्य खड़ा होकर किसी प्रश्न को, जनता की संवेदना/वेदना को प्रदर्शित करता है वह वहां पर उचित सलाह भी देता है कि इसकी जगह पर यह करने की आवश्यकता है उसी तरह से अपेक्षा है और मैं विधान सभा के भीतर कई बार कह चुका हॅूं कि विधान सभा की रिपोर्टिंग करने के लिए हमारे जो पत्रकार आते हैं इनको भी प्रशिक्षण की आवश्यकता है जिस तरह से हमारे माननीय सदस्यों को प्रशिक्षण की आवश्यकता है उसी तरह से हमारे पत्रकार मित्रों को भी प्रशिक्षण की आवश्यकता है. बाह्य जगत से उनका जो प्रशिक्षण हो रहा है वह लें लेकिन विधान सभा की कार्यवाहियों का, लोक सभा की कार्यवाहियों का, उसकी कैसे हमें रिपोर्टिंग करना है, इसका भी प्रशिक्षण होना चाहिए और मैंने अपने विधान सभा के भीतर प्रयास किया. कोरोना काल के कारण बहुत सारे अवरोध पैदा हुए हैं लेकिन मैंने यह प्रयास किया है और मैंने पत्रकार मित्रों से बात की है कि जिस तरह से मैं माननीय विधायकों का प्रशिक्षण करवाना चाहता हॅूं उसी तरह से पत्रकार मित्रों का भी कोई एक प्रशिक्षण आप लोग आयोजित करें, उसकी व्यवस्था करने का मैं प्रयास करूंगा कि उनका भी प्रशिक्षण होना चाहिए.
मध्यप्रदेश विधान सभा में लगातार इस बात का प्रयास हो रहा है कि लाइव टेलीकॉस्ट हम भी करें और उस दिशा में जो भी सरकारें रही हैं, लगातार इस बात पर जोर दिया है कि ऐसी व्यवस्था बने. वह कई कारणों से, क्योंकि हमारा खुद का कोई टीवी चैनल नहीं है. लोक सभा, राज्य सभा में जो एकीकरण किया है माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने, दोनों का एकीकरण हो गया. माननीय अध्यक्ष महोदय श्री ओम बिड़ला जी का वक्तव्य उस दिन मैं देख रहा था. उनके पास स्वयं के बहुत सारे बजट होते हैं जिसके आधार पर उनके पास स्वयं का टीवी चैनल है. वह स्वयं उसको कर सकते हैं शायद वह विधान सभाओं को सुविधा प्राप्त नहीं है फिर भी इस दिशा में काम हो रहा है तो हम उसको किसी तरह से, एक लाइव टेलीकॉस्ट हमारी विधान सभा का भी हो और उसमें दो बातें हो सकती हैं. कई बार उसके पॉजीटिव और नेगेटिव दोनों परिणाम आ सकते हैं. एक परिणाम तो यह आता है कि जब एक माननीय विधायक बोलते हैं तो उसके क्षेत्र का व्यक्ति एक अपनी राय कायम करता है. कई बार यह होता है कि विधायक के मन में यह लगता है कि यही एक अच्छा माध्यम है जिसके कारण हम ज्यादा शोरगुल करेंगे, ज्यादा हल्ला मचाएंगे तो शायद जनता हमको ज्यादा पसंद करे, तो यह सब चलेगा परन्तु समग्र रूप से विचार करें तो हमारी विधानसभाओं के भीतर आज के डिजीटल युग में यह आवश्यकता है कि उसका पूरी तरह से प्रसारण हो. उस सिद्धांत को स्वीकार करने की आवश्यकता है।