रॉक आर्ट सोसायटी ऑफ इण्डिया का राष्ट्रीय अधिवेशन 27 फरवरी से
रॉक आर्ट सोसायटी ऑफ इण्डिया का राष्ट्रीय अधिवेशन 27 फरवरी से
पद्मश्री डॉ. वी.एस. वाकणकर को समर्पित रहेगा अधिवेशन
भोपाल। रॉक ऑर्ट सोसायटी ऑफ इण्डिया का तीन दिवसीय अधिवेशन 27 फरवरी को सुबह 10.30 बजे राज्य संग्रहालय के सभागार में शुरू होगा। मुख्य सचिव श्री एस.आर. मोहंती अधिवेशन के शुभारंभ सत्र के मुख्य अतिथि होंगे। प्रमुख सचिव संस्कृति श्री पंकज राग और प्रमुख सचिव पर्यटन श्री फैज अहमद किदवई इस अवसर के साक्षी बनेंगे। अधिवेशन का आयोजन पुरातत्व अभिलेखागार एवं संग्रहालय और पर्यटन विकास निगम के संयुक्त तत्वावधान में किया जा रहा है।
अधिवेशन शैलचित्र कला अध्ययन की विधा के संस्थापक मध्यप्रदेश निवासी पद्मश्री डॉ. वी.एस. वाकणकर को समर्पित रहेगा। ज्ञातव्य है कि डॉ. वाकणकर ने वर्ष 1957 में रायसेन जिले के अंतर्गत भीमबैठका के शैलचित्रों की खोज की थी। इसके बाद ही इन शैलचित्रों को यूनेस्को की सूची में विश्व धरोहर के रूप में शामिल किया गया।
अधिवेशन का प्रमुख उद्देश्य शैलचित्रों के अनुरक्षण, विकास, रख-रखाव एवं उनके प्रति जन-सामान्य को जागरूक बनाने के लिये क्रियान्वयन की रूपरेखा तैयार करना है। इस अमूल्य धरोहर की सुरक्षा सुनिश्चित करने का प्रयास देश के सांस्कृतिक एवं आर्थिक विकास में सहयोगी हो सकता है।
अधिवेशन में एक परिचर्चा भी आयोजित की जायेगी, जिसमें भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के भूतपूर्व महानिदेशक डॉ. राकेश तिवारी का डॉ. वाकणकर स्मृति व्याख्यान होगा। डॉ. तिवारी रॉक ऑर्ट सोसायटी ऑफ इण्डिया के संस्थापक सदस्य हैं। अधिवेशन में बड़ी संख्या में इस विषय के विद्वान, वैज्ञानिक, विरासत संरक्षक, प्रशासक, प्रोफेसर एवं शैलचित्र कला के विभिन्न क्षेत्रों में सक्रिय अध्येता, वन संरक्षक, पर्यटन प्रबंधक निदेशक आदि शामिल हो रहे हैं।
शैलचित्र कला-स्थलों का परिचय
शैलचित्र कला-स्थलों के भारत वर्ष में विपुल भण्डार हैं, जिसमें मध्यप्रदेश में सर्वाधिक स्थल प्रकाश में आये हैं। भारत संसार के कुछ महत्वपूर्ण देशों में से एक है, जिसमें शैलचित्र स्थलों के विपुल भण्डार मिले हैं। मानव के सांस्कृतिक विकास के प्रथम चरण के महत्वपूर्ण साक्ष्यों को प्रस्तुत करते ये शैलचित्र स्थल देश की महत्वपूर्ण विरासत हैं। हमारे पूर्वजों ने पाषाण काल में शैलचित्र सृजन की यह परम्परा शुरू की, जो कालांतर में कृषि-पशुपालन युग एवं ऐतिहासिक युग में निरंतर बनी रही। म.प्र. के वनवासी आज भी इस परम्परा को कायम रखे हैं। शैलचित्र कला के प्रमाणों से समझा जा सकता है कि पृथ्वी पर मानव एक विशिष्ट प्रजाति के रूप में कैसे स्थापित हुई। देश में इस अमूल्य धरोहर की सुरक्षा, उसके सांस्कृतिक एवं आर्थिक विकास के लिये महत्वपूर्ण प्रयासों के प्रति गंभीर प्रयास हो रहे हैं, जिससे यह महत्वपूर्ण विरासत नष्ट न हो।