पिछले डेढ़ दशक में मध्यप्रदेश में जनजाति समाज के उत्थान को मिली नयी परवाज
साल 2007 का वह दिन सम्पूर्ण जनजातीय समाज के लिए गौरव का दिन था जब मुख्यमंत्री आवास के दरवाजे उनके लिए खोल दिए गए थे। अवसर था मुख्यमंत्री आदिवासी चौपाल का। यह अवसर उनके लिए किसी सपने के सच होने से कम नहीं था। इसके पहले तक वे शायद ही कभी अपने गाँव, मजरा टोले से बाहर गए होंगे। मंडला से लेकर झाबुआ तक के हजारों जनजाति परिवार राजधानी भोपाल में पहली बार आ रहे थे। अपने ही घर-प्रदेश में डरे-सहमे विशाल जनजाति समुदाय को पहली बार अहसास हो रहा था कि मध्यप्रदेश उनका भी है। कहना न होगा कि मध्यप्रदेश में जनजातीय समाज को अपने प्रदेश का गौरव होने का सम्मान बीते डेढ़ दशकों में हासिल हुआ है। मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान की सरकार ने जनजाति समुदाय की चिंता की और उन्हें मुख्यधारा से जोडऩे के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं। आज जब हम जनजातीय गौरव दिवस का बहुप्रतिष्ठित आयोजन कर रहे हैं तब इस बात की चर्चा करना सामयिक है कि स्वतंत्रता के पश्चात कहें या नए मध्यप्रदेश की स्थापना के बाद जनजाति समुदाय आज किस मुकाम पर खड़ा है। जनजाति समुदाय के लिए गंभीर शिवराजसिंह सरकार ने जनजातीय कार्य विभाग के बजट में 948 प्रतिशत की वृद्धि की है। वर्ष 2003-04 में यह बजट मात्र 746.60 करोड़ था जो 2020-21 के लिए 8085 करोड़ किया गया।
भगवान बिरसा मुंडा की स्मृति में मनाया जा रहा जनजातीय गौरव दिवस सभी जनजातीय योद्धाओं को समर्पित है। भीमा नायक, टंट्या मामा, खाज्या नायक, संग्राम शाह, शंकर शाह, रघुनाथ शाह, रानी दुर्गावती, बादल भोई, राजा भभूत सिंह, रघुनाथ मंडलोई भिलाला, राजा ढिल्लन शाह गोंड, राजा गंगाधर गोंड, सरदार विष्णुसिंह उइके जैसे अनेक चिंहित और गुमनाम वीर शहीदों को मध्यप्रदेश पुष्प सुमन अर्पित करता है। जनपदीय क्षेत्रों के वीरों को तो हम खूब जानते हैं लेकिन जंगलों में रहने वाले इन जनजातीय नायकों की वीरता और उनके त्याग के कारण ही आज हम सब स्वतंत्र हैं। समाज का दायित्व है कि ऐसे वीर नायकों का हम स्मरण करें और भावी पीढ़ी को उनके उत्सर्ग के बारे में बतायें तथा राष्ट्रप्रेम की भावना जागृत करें। उल्लेखनीय है कि स्वाधीनता संग्राम का 75वां वर्ष मनाया जा रहा है। मध्यप्रदेश में सरकार ने जनजाति योद्धाओं के क्षेत्र में आयोजन करने की पहल की है। इस पहल से जनजाति योद्धाओं के बारे में आज की पीढ़ी और समाज अधिकाधिक जान सकेंगे।
जनजाति नायकों के आदर्श एवं बलिदान से समाज को प्रेरणा मिले, इस दृष्टि से मध्यप्रदेश के जनजातीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को समर्पित बादल भोई आदिवासी संग्रहालय परिसर का निर्माण छिंदवाड़ा में किया जा रहा है। इस संग्रहालय के निर्माण में करीब 30 करोड़ का व्यय होगा। राजा शंकर शाह-रघुनाथ शाह के बलिदान की स्मृति में जबलपुर में 5 करोड़ की लागत से स्मारक का निर्माण किया जा रहा है। इसी तरह विशेष पिछड़ी जनजाति समुदाय के लिए उनकी संस्कृति के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए छिंदवाड़ा में भारिया जनजाति, डिंडोरी में बैगा एवं श्योपुर में सहरिया जनजाति के लिए सांस्कृतिक संग्रहालय की स्थापना की जा रही है। इन सांस्कृतिक संग्रहालय की परिकल्पना अनूठी है और संभवत: देश में पहली बार इस तरह की स्थापना की जा रही है। विशेष पिछड़ी जनजाति के सामाजिक कार्यों के लिए 50 सामुदायिक भवनों का निर्माण कराया जा रहा है।
श्री शिवराज सिंह चौहान की सरकार ने संवेदनशील सरकार के रूप में अपनी प्रतिष्ठा अर्जित की है। मुख्यमंत्री श्री चौहान की चिंता में पांच वर्ग प्राथमिकता से रहे हैं, महिलाएँ, बच्चे, किसान, जनजाति और बुजुर्ग। डेढ़ दशक से अधिक समय में इन वर्गो के लिए अनेक योजनाओं का निर्माण कर उन्हें न केवल खुशहाल बनाने की कोशिश की गई है बल्कि उन्हें समाज की मुख्यधारा से जोडऩे का सद्प्रयास भी किया गया है। पूर्ववर्ती सरकारों ने जनजातीय समुदाय को कभी अपनी प्राथमिकता में नहीं रखा। छोटी-मोटी योजनाएँ बनाते रहे और उन्हें हाशिये पर रखा लेकिन वर्ष 2005 के बाद इस समुदाय के जीवन को खुशहाल बनाने के लिए शिवराज सिंह सरकार प्राण-प्रण से जुट गई। नैर्सिगक गुणों से भरपूर इस समुदाय पर प्रकृति की अनुपम देन है। विविध कला प्रतिभाओं से भरपूर है लेकिन इन्हें प्रदर्शन की वस्तु बना रखा गया था। शिवराजसिंह सरकार ने सर्वप्रथम जनजाति समुदाय को शहरी ड्राइंग रूम से बाहर निकाल कर खुला आसमां दिया।
शिक्षा से विकास के द्वार खुलते हैं और जनजाति समुदाय के लिए शिवराजसिंह सरकार ने सर्वप्रथम शिक्षा का माकूल बंदोबस्त किया। इस समुदाय के जिन बच्चों ने कभी स्कूल की देहरी नहीं देखी थी या दो-चार क्लास पढऩे के बाद घर बैठ गए थे, आज उन्हीं में से बच्चे इंजीनियरिंग और मेडिकल की पढ़ाई कर रहे हैं। सात समुंदर पार जाकर नाम रोशन कर रहे हैं। इन बुलंद हौसले वाले बच्चों की कहानी मध्यप्रदेश को गौरवांवित करती है। वर्ष 2011 के पहले तक इन बच्चों के लिए कोचिंग की कोई व्यवस्था नहीं थी लेकिन एक कदम आगे बढक़र शिवराजसिंह सरकार ने यूपीएसी परीक्षाओं के लिए नि:शुल्क कोचिंग कक्षाओं की शुरूआत की। पहले वर्ष 60 विद्यार्थियों को कोचिंग की सुविधा दी गई और विद्यार्थियों के रूझान को देखते हुए सरकार ने 100 सीटें कर दी। इसी तरह इस समुदाय के विद्यार्थियों को विदेश में शिक्षा प्राप्त करने के लिए स्कॉलरशिप देने की योजना का आरंभ किया गया। आरंभ में 10 विद्यार्थियों को विदेश अध्ययन के लिए छात्रवृत्ति देने का प्रावधान था जिसमें वृद्धि कर 50 कर दिया गया। पी-एचडी के लिए भी सरकार सहायता देती है। कक्षा एक से लेकर पी-एचडी तक स्कॉलरशिप देकर सरल एवं लाभकारी बनाया गया जिससे विद्यार्थी अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकें।
शिक्षा के प्रति जनजाति समूह के विद्यार्थियों में रूझान उत्पन्न हो, इसके लिए प्रतिभा योजना के अंतर्गत प्रतिष्ठित शासकीय संस्थाओं में दाखिला लेने वाले विद्यार्थियों जेईई आईआईटी, एम्स, एनडीए, क्लेट से एनएलआईयू के लिए 50 हजार रुपये की प्रोत्साहन राशि दी जाती है। साथ में नीट मेडिकल कॉलेज, जेईई एनआइटी, आईएचएम, एनआईएफटी एवं एफडीडीआई के लिए प्रत्येक को 25 हजार की राशि प्रोत्साहन स्वरूप दी जाती है। शिवराजसिंह सरकार की नवीन आकांक्षा योजना में राष्ट्रीय प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए चार संभागीय मुख्यालयों यथा भोपाल, इंदौर, जबलपुर एवं ग्वालियर पर कोचिंग की व्यवस्था आरंभ की गई है। प्रत्येक केन्द्र पर इंजीनियरिंग हेतु 200, मेडिकल के लिए 100 और क्लेट हेतु 100 विद्यार्थियों को सुविधा दी जा रही है। कक्षा 11वीं एवं 12वीं में अध्ययन के साथ-साथ आवासीय सुविधायुक्त दो वर्षीय प्रशिक्षण प्रतिष्ठित कोचिंग संस्थाओं के माध्यम से दिया जा रहा है। विशेष पिछड़ी जनजाति के युवाओं के लिए प्रदेश के छिंदवाड़ा, शहडोल, मंडला, शिवपुरी एवं श्योपुर में कम्प्यूटर कौशल केन्द्रों की स्थापना की जा रही है।
जनजाति समुदाय को उनका अधिकार दिलाने के लिए शिवराजसिंह सरकार प्रतिबद्ध है। इस कड़ी में वन अधिकार अधिनियम-2006 का क्रियान्वयन प्रभावी ढंग से किया जा रहा है। अब तक प्राप्त 6 लाख 24 हजार 889 दावों में से 2 लाख 63 हजार 916 दावे मान्य कर उनका अधिकार दिलाया गया। जिन परिवारों के दावे निरस्त किये जा चुके थे, उनका दुबारा परीक्षण कर 33 हजार 852 दावे मान्य किये गए।
यह आंकड़े एवं तथ्य इस बात की सूचना देते हैं कि मध्यप्रदेश सरकार जनजाति भाई-बहनों के कल्याण के लिए गंभीर है। यह वह समुदाय है जो प्रकृति से सामंजस्य बनाकर रखती है और हमें यह बात सिखाती है कि थोड़े में भी संतोष और सुख का जीवन बसर किया जा सकता है। हमें यह मानना चाहिए कि जनजाति समुदाय प्रकृति का शोषण नहीं बल्कि संरक्षण करते हैं। उनके जीवन का प्रतिपल जल, जंगल और जमीन से जुड़ा हुआ है अत: प्रकृति उनके देवी और देवता हैं। बेहद सहज और सरल जनजाति समाज मध्यप्रदेश का गौरव है और पहचान भी।
पूर्ववर्ती सरकारों ने जनजातीय समाज को आगे आने नहीं दिया। उनकी कला-कौशल को समाज के समक्ष नहीं रखा जिसकी वजह से हमेशा से आत्मनिर्भर रहा जनजातीय समुदाय स्वयं को निरीह महसूस करने लगा था। बीते डेढ़ दशक में मध्यप्रदेश सरकार ने इस समाज के दर्द को समझा और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए कई नए प्रकल्प तैयार किये। मोदी सरकार के साथ कदमताल करती मध्यप्रदेश सरकार ने लोकल से वोकल और एक जिला, एक प्रोडक्ट पर कार्य कर इन जनजातियों को आगे बढऩे का अवसर दिया। मध्यप्रदेश के जनजाति समूह खेती करने के साथ वनोपज संग्रह, पशुपालन, मत्स्य पालन, हस्त कला यथा बांस शिल्प, काष्ठ शिल्प, मृदा शिल्प एवं धातु शिल्प का कार्य करते हैं। मध्यप्रदेश सरकार ने ऐलान किया है कि देवारण्य योजना के अंतर्गत वनोत्पाद और वन औषधि को बढ़ावा दिया जाएगा एवं वन उपज को न्यूनतम समर्थन मूल्य में खरीदा जाएगा। जनजातीय समुदाय के कला कौशल को मध्यप्रदेश सरकार ने न केवल दुनिया को बताया बल्कि बाजार भी उपलब्ध कराया ताकि उनके उत्पाद का उचित मूल्य मिल सके।
मध्यप्रदेश सरकार का क्रांतिकारी फैसला जनजाति समुदाय को साहूकारों से मुक्त कराना है तथा ऋणमुक्त कर उन्हें अनावश्यक तनाव से मुक्ति दिलाना भी सरकार की प्राथमिकता में है। मध्यप्रदेश अनुसूचित जनजाति साहूकार विनियम 1972 को और अधिक प्रभावी बनाकर साहूकारों के लिए लायसेंस लेना अनिवार्य करने के साथ ब्याज की राशि निर्धारित की जा चुकी है और निर्धारित ब्याज राशि से अधिक लेने वालों के खिलाफ दंडात्मक कार्यवाही की जाएगी। जनजातीय परिवारों को अधिकतम सुविधा देने की दृष्टि से राज्य सरकार “राशन आपके द्वार” योजना शुरू कर रही है। यह अभिनव योजना है जिससे परिवारों को सुविधा हो सकेगी।
शिवराज सिंह सरकार निरंतर इस बात के लिए चिंतित है कि मध्यप्रदेश के जनजाति समुदाय का न केवल जीवन-स्तर ऊँचा उठे बल्कि वे आत्म-निर्भर बन सकें। डेढ़ दशक में जनजाति समुदाय को समाज की मुख्य-धारा से जोड़ने की जो कोशिश शुरू हुई है, उससे खासकर जनजाति युवाओं में सकारात्मक प्रभाव देखने को मिला है।