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गौरवशाली और बहुवर्णीय है मध्यप्रदेश का इन्द्रधनुषी जनजातीय परिदृश्य

 

मध्यप्रदेश में देश की सर्वाधिक जनजातीय जनसंख्या निवास करती है। मध्यप्रदेश का इन्द्रधनुषी जनजातीय संसार अपनी विशेषताओं के कारण मानव शास्त्रियों, सांस्कृतिक अध्येताओं और शोधार्थियों को विशेष रूप से आकर्षित करता रहा है। प्रदेश की जनजातियाँ हमेशा अपनी बहुवर्णी संस्कृति, कलाओं रीति-रिवाज और परम्पराओं के साथ प्रदेश के गौरव का अविभाज्य अंग रही है। बीते वर्षों में विकास कार्यों के कारण प्रदेश की जनजातियों की सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक स्थिति में व्यापक बदलाव भी आया है। अब वे अपनी गौरवशाली परम्पराओं के साथ आधुनिक समय के साथ कदमताल करते हुए अपने संवैधानिक अधिकारों के साथ मुख्य-धारा में है।

मध्यप्रदेश भौगोलिक दृष्टि से देश के मध्य भाग में स्थित होने के कारण यह उत्तरप्रदेश, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ राज्यों की सीमाओं का स्पर्श करता है। इसलिए मध्यप्रदेश की संस्कृति में अन्य सीमावर्ती राज्यों की जीवनशैली और संस्कृति की छटाएँ भी दिखायी देती हैं। भारत सरकार द्वारा निर्धारित सूची के अनुसार यहाँ 43 अनुसूचित जनजातियों अपने सहजाति समूहों के साथ विभिन्न क्षेत्रों में निवास करती है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार प्रदेश की कुल जनसंख्या 7 करोड़ 26 लाख 26 हजार 809 है, जिसमें से 1 करोड़ 53 लाख 16 हजार 784 अनुसूचित जनजातियों की आबादी है। यह आबादी प्रदेश की कुल जनसंख्या का 21.09 प्रतिशत है।

जनजातीय जनसंख्या की दृष्टि से मध्यप्रदेश देश का सबसे बड़ा राज्य है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में अनुसूचित जनजातियों की जनसंख्या 14 करोड़ 5 लाख 45 हजार 716 रही है, जिसमें मध्यप्रदेश की 1 करोड़ 53 लाख 16 हजार 784 जनसंख्या सम्मिलित है। यह आबादी देश की जनजातीय जनसंख्या का 14.64 प्रतिशत है। मध्यप्रदेश में जनसंख्या की दृष्टि से क्रमश: भील (भील, भिलाला, बारेला, पटलिया), गोंड (सहजातियों के समूह सहित) कोल, बैगा, सहरिया, कोरकू आदि प्रमुख जनजातियाँ हैं। इन जनजातियों की आबादी (भील-46.18 लाख, गोंड-43.57 लाख, कोल- 11.67 लाख कोरकू- 7.31 लाख, सहरिया- 6.15 लाख, बैगा-4.15 लाख आदि) प्रदेश की कुल जनजातीय जनसंख्या का लगभग 92 प्रतिशत है। कुल अनुसूचित जनजातियों में से बैगा, भारिया (पातालकोट क्षेत्र) और सहरिया भारत सरकार द्वारा घोषित विशेष पिछड़ी जनजातियाँ हैं।

मध्यप्रदेश में निवासरत प्रमुख जनजातियों में पारम्परिक पद्धति से अयस्क को भट्टी में तपाकर लोहे में बदलने वाली अगरिया जनजाति मुख्य रूप से शहडोल-मण्डला तथा विशेष पिछड़ी जनजाति बैगा- मण्डला डिण्डौरी, बालाघाट, अनूपपुर, उमरिया, शहडोल, सीधी, भील (भिलाला, बारेला, पटलिया सहित)- अलीराजपुर, झाबुआ, धार, खरगोन, बड़वानी, रतलाम, मंदसौर, गोंड (सहजातियों के समूह सहित)- डिण्डौरी, मण्डला, बैतूल, छिन्दवाड़ा, सिवनी, बालाघाट जबलपुर, कटनी, शहडोल, उमरिया, सीधी, होशंगाबाद, सागर, पन्ना, दमोह, रायसेन आदि, कोल- रीवा, शहडोल, उमरिया, जबलपुर, कटनी, मण्डला, डिण्डौरी आदि, कोरकू- (सहजातियों के समूह सहित) खण्डवा, बैतूल, होशंगाबाद, हरदा आदि, परधान (पठारी या पथारी सरोती सहित) – मण्डला डिण्डोरी, सिवनी, छिन्दवाडा, जबलपुर आदि, सहरिया (सेहरिया, सोसिया, सोर सहित)- गुना अशोकनगर, शिवपुरी, मुरैना, श्योपुर, सीहोर, विदिशा, ग्वालियर आदि, भारिया (भूमिया, भुइआर, पालिहा, पाण्डो सहित) जबलपुर, कटनी, शहडोल, उमरिया, मण्डला, डिण्डोरी, सिवनी आदि जिलों में प्रमुख आबादी प्रमुख रूप से निवासरत हैं। विशेष पिछड़ी जनजाति भारिया का निवास छिन्दवाड़ा जिले के पातालकोट क्षेत्र है।

‘अनुसूचित जनजातियाँ’ पद सबसे पहले संविधान के अनुच्छेद-366 (25) में प्रयुक्त हुआ और अनुच्छेद 342(1) के अंतर्गत अनुसूचित जनजातियाँ पद को परिभाषित किया गया। इसी के आधार पर भारत के महामहिम राष्ट्रपति द्वारा अनुसूचित जनजातियों को सूचीबद्ध किया गया। भारत में जनजातीय आबादी का कुल भौगोलिक क्षेत्र 32 हजार 87 हजार वर्ग किलोमीटर है, जिसमें से 3 लाख 08 हजार वर्ग किलोमीटर मध्यप्रदेश का है। इस भौगोलिक क्षेत्र का 93 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र आदिवासी उपयोजना क्षेत्र के रूप में चिन्हित है। विकास की दृष्टि से प्रदेश के सघन जनजातीय आबादी वाले क्षेत्रों के 89 विकासखण्डों को जनजातीय बहुल विकासखण्डों के रूप में मान्यता प्रदान कर विकास योजनाएँ क्रियान्वित की जा रही हैं।

मध्यप्रदेश जनजातीय संस्कृति की दृष्टि से अत्यंत समृद्ध है। विभिन्न जनजातियों की भौगोलिक स्थिति और प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता के आधार पर अलग-अलग जीवन-शैली, खानपान, पहनावा भाषा-बोली और भिन्न परम्पराएँ हैं। सीमावर्ती राज्यों की संस्कृति और जीवन-शैली का भी स्पष्ट प्रभाव संबंधित क्षेत्रों की जनजातियों पर दिखाई देता है। इन जनजातियों की भाषा और बोलियों में भीली, भिलाली, बारेली, पटलिया, गोंडी (पारसी गोंडी, मण्डलाही गोंडी), ओझियानी/ शिवभाषा, बैगानी, कोरकू मवासी, निहाली, भरियाटी, कोलिहारी, सहरिया आदि प्रमुख हैं।

पहले जनसंख्या की दृष्टि से गोंड मध्यभारत प्रमुख रूप से मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, उडीसा, तेलंगाना आदि क्षेत्रों की सबसे बड़ी जनजाति हुआ करती थी। इस भूखण्ड पर गोंड राजाओं का साम्राज्य रहा है, जिसे गोंडवाना साम्राज्य कहा जाता था। राजा हिरदे शाह, रानी दुर्गावती और राजा शंकर शाह तथा उनके पुत्र कुवर रघुनाथ शाह अत्यन्त प्रसिद्ध रहे हैं। राजा शंकर शाह और कुवर रघुनाथ शाह ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आजादी की जंग लड़ते हुए देश पर अपने प्राण न्योछावर कर दिये थे। पूरे गोंडवाना क्षेत्र में गोंडी प्रमुख भाषा थी। विभिन्न कारणों से इसके बोलने वालों की संख्या कम होती जा रही है। भीलांचल में भीली के साथ-साथ भिलाली, बारेली और पटलिया बोलियाँ प्रचलित है। भीली वर्तमान में देश की सबसे अधिक बोली जाने वाली जनजातीय भाषा है। यह मध्यप्रदेश के अलावा राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र सहित देश के कुछ अन्य राज्यों में भी प्रयुक्त की जाती है।

मध्यप्रदेश की विभिन्न जनजातियों के देवी-देवता, पर्व-त्यौहार, जात्रा और मेले अलग-अलग हैं। भौगोलिक क्षेत्र और सामाजिक संरचना के अनुसार इनकी मान्यताएँ, परम्पराएं, रहन-सहन, पहनावा, जन्म-मृत्यु, विवाह संस्कार आदि भी भिन्न हैं। पारंपरिक कृषि पद्धतियों, पशुपालन, आखेट, वनोपज संग्रहण आदि के तरीकों में भी कमोबेश अंतर मिलता है। आजीविका के प्रमुख साधन के रूप में वनोपज संग्रहण और पशुपालन प्रायः सभी जनजातियों में प्रचलित है। पारम्परिक ज्ञान मौखिक संपदा के रूप में आज भी विद्यमान है। बैगा, सहरिया और भारिया जनजातियाँ वनौषधियों की पहचान और उपचार में विशेष रूप से दक्ष हैं। गोदना प्रायः सभी जनजातियों में परम्परागत देह अलंकार के रूप में प्रचलित है। अतिथि सत्कार को सभी जनजातियाँ प्राथमिकता देती हैं। सामाजिक व्यवस्था में गोत्रों का विशेष महत्व है। समगोत्रीय विवाह सभी जनजातियों में वर्जित है। नृत्य-संगीत जनजाति समूहों के परिश्रम की थकान और दुख को आनंद में बदलने का एक विशेष माध्यम है।

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