नई दिल्ली । राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने विश्व भारती विश्वविद्यालय की सराहना करते हुए उसे देश की संस्कृति और चरित्र को बरकरार रखने वाला करार देते हुए कहा कि इस संस्थान का उनका यह दौरा किसी तीर्थयात्रा से कम नहीं है। विश्वविद्यालय के वार्षिक दीक्षांत समारोह को परिदर्शक (विजिटर) के तौर पर संबोधित करते हुए कोविंद ने कहा कि शिक्षा के इस केंद्र ने राष्ट्र निर्माण में शानदार भूमिका निभाई है।
उन्होंने कहा, “मैं इसे (विश्वविद्यालय के दौरे को) एक तीर्थयात्रा कहूंगा क्योंकि आधुनिक भारत की दो महान विभूतियां रवींद्रनाथ टैगोर (विश्वविद्यालय के संस्थापक) और महात्मा गांधी अक्सर यहां मिलते थे। यहीं से हम इन महान संतों के जीवन के सूत्रों और सबकों को समझकर उनसे शिक्षा ले सकते हैं।” कोविंद ने कहा कि 1935 में जब विश्वविद्यालय को कोष की नितांत आवश्यकता थी तब टैगोर ने गांधी से इस बारे में जिक्र किया और उन्हें 60 हजार रुपये का ड्राफ्ट प्राप्त हुआ।
राष्ट्रपति ने जोर देकर कहा कि गुरुदेव (टैगोर) और महात्मा दोनों ही मानते थे कि सही शिक्षा राष्ट्र पुनर्निर्माण के लिये महत्वपूर्ण है। कोविंद ने कहा, “गुरुदेव ने (शिक्षा के) एक वैकल्पिक मॉडल का विचार किया जो प्रकृति के साथ करीबी संबंध की वकालत करती थी और विश्व भारती विश्वविद्यालय आज तक इस परंपरा का पालन कर रहा है।” उन्होंने कहा कि विश्वभारती की खासियत ऐसी है जिसे हमें “सहेजने और गर्व के साथ बरकरार रखने की जरूरत है।”
कोविंद ने छात्रों को अपने संबोधन में कहा, “यह वो जगह है जहां टैगोर जिये, काम किया और अपने सपनों को ठोस आकार दिया। जो समुदाय यहां हैं – छात्र, शिक्षा विद्, कर्मचारी, आश्रम में रहने वाले- वो उस समृद्ध विरासत के उत्तराधिकारी हैं जो यहां के संस्थापक आपके लिये छोड़कर गए हैं।”
उन्होंने कहा, “इस संस्थान के पूर्व छात्रों में इंदिरा गांधी और सत्यजीत जैसी शख्सियत रहे हैं जिन्होंने न सिर्फ काफी हद तक इस संस्थान के संस्थापक के सपनों को पूरा किया बल्कि स्वतंत्र भारत को नयी ऊंचाइयों तक ले जाने में भी योगदान दिया।” राष्ट्रपति ने कहा कि ऐसे वक्त में जब मशीनों और संपत्ति को प्रगति का पैमाना माना जाता है, विश्वभारती परंपरा और आधुनिकता के एक विशिष्ट मिश्रण के तौर पर सामने आया है।