निशुल्क सुविधाएं , गरीबी निवारण का स्थायी समाधान नहीं, दीर्घकालिक नीतियां ही एकमात्र उपाय : उपराष्ट्रपति
नई दिल्ली। उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने गरीबी निवारण के लिये दीर्घकालिक नीतियां बना कर इन्हें लागू करने को इस समस्या का स्थायी समाधान बताते हुये बुधवार को कहा कि निशुल्क सुविधायें और अन्य प्रकार की छूट देने जैसे अल्पकालिक उपाय इस समस्या के समाधान नहीं है। नायडू ने जनसंघ के संस्थापक सदस्य पं. दीनदयाल उपाध्याय के अंत्योदय के सिद्धांत पर आधारित पुस्तक ‘‘द विजन ऑफ अंत्योदय’’ के विमोचन समारोह को संबोधित करते हुये कहा, ‘‘गरीबी उन्मूलन के लिये मुफ्त सुविधायें और अन्य प्रकार की छूट देने के बजाय दीर्घकालिक नीतिगत समाधान खोजने की जरूरत है।’’
पुस्तक में सामाजिक संगठन ‘इंडियन सोशल रिस्पांसिबिलिटी नेटवर्क’ द्वारा पं दीन दयाल उपाध्याय के अंत्योदय कार्यक्रम से प्रेरित, 408 आदर्श कार्यक्रमों और कार्यप्रणालियों का संकलन किया गया है। उन्होंने सरकार और नीति निर्माताओं से कल्याणकारी योजनाओं का लाभ सर्वाधिक उपयुक्त वांछित लाभार्थियों तक पहुंचाने का आह्वान किया।नायडू ने कहा, ‘‘सार्वजनिक जीवन में जो लोग हैं, उन्हें गरीबी उन्मूलन को अपना लक्ष्य बनाते हुये लोगों में आपसी एकता मजबूत बनाने के प्रयास लगातार करने रहना चाहिये।’’
इस अवसर पर नायडू ने विश्व समुदाय से भारत के आंतरिक मामलों में टिप्पणी करने से बचने का आह्वान करते हुये कहा, ‘‘किसी भी देश को भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने की इजाज़त नहीं है। बाहरी देश भारतीय संसद द्वारा पारित कानूनों पर टिप्पणी करने से बचें।’’ नायडू ने देश में असहमति को स्वीकार न करने की वर्तमान राजनीतिक संस्कृति पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि लोकतंत्र तो विमर्श के माध्यम से प्रशासन चलाने का मार्ग है, जिसमे जनमत के लिए सम्मान होना चाहिए। संसद में बढ़ते व्यवधानों पर चिंता व्यक्त करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि दलों द्वारा व्यवधान को संसदीय रण नीति का भाग बनाना दुर्भाग्यपूर्ण है।
पंडित दीनदयाल उपाध्याय के अंत्योदय को याद करते हुये नायडू ने कहा, ‘‘दीनदयाल जी की भारतीय नैतिक और सांस्कृतिक मूल्यों में अगाध आस्था थी, वे आजन्म दुर्बल और दलित वर्गों के कल्याण हेतु समर्पित रहे। दीनदयाल जी के आर्थिक दर्शन का आधार ही ‘सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय’ रहा – सबके लिए सुख और समृद्धि की कामना।’’ नायडू ने कहा कि दीनदयाल जी अर्थव्यवस्था में हर नागरिक को कुछ मूलभूत ज़रूरतों को उपलब्ध कराने के पक्षधर थे और वह मानते थे कि भोजन, कपड़ा, मकान, शिक्षा और चिकित्सा नागरिकों की ये पांच मूलभूत ज़रूरतें अवश्य पूरी होनी ही चाहिए। उन्होंने कहा, ‘‘अगर किसी समाज के किसी वर्ग को ये आधारभूत सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं तो हम कह सकते हैं कि उस समाज में जीवन स्तर उन्नत नहीं है।