घृणा की राजनीति की शरणस्थली न बनें विश्वविद्यालय परिसर : उपराष्ट्रपति नायडू
नई दिल्ली। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में हुए हमले की पृष्ठभूमि में उप राष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने मंगलवार को कहा कि शैक्षिणक संस्थानों को सफल बनने की राह में घृणा एवं हिंसा की राजनीति की शरणस्थली नहीं बनना चाहिए। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालयों में सह-पाठ्यक्रम गतिविधियों और अकादमिक प्रयासों को प्राथमिकता मिलनी चाहिए, न कि गुटबाजी और विभाजनकारी प्रवृत्तियों को।
राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद के रजत जयंती समारोह में अपने संबोधन में नायडू ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि हमारे यहां के विश्वविद्यालयों में हर तरह के मत एवं विचारों के लिए स्थान है। उन्होंने रविवार रात जेएनयू में हुए हमले की पृष्ठभूमि में यह टिप्पणी की। नायडू ने कहा, ‘‘बच्चे शैक्षिणक संस्थानों से प्रबुद्ध नागरिक बनकर निकलें जो लोकतंत्र की रक्षा करने और संविधान में प्रदत्त बुनियादी मूल्यों को संरक्षित करने में गहन रुचि रखते हों।’’
उन्होंने कहा कि आज के दौर में भारत अनुसंधान एवं विकास पर जीडीपी का एक फीसदी से भी कम खर्च कर रहा है, यह बदलना चाहिए। नायडू ने कहा कि अनुसंधान, खासकर विज्ञान और प्रोद्यौगिकी अनुसंधान के क्षेत्र में, संसाधनों की आवश्यकता और समय की खपत होती है। इसमें जोखिम भी होता है। एक समाज के तौर पर हमें इस जोखिम को उठाने के लिए तैयार रहना चाहिए। उनके इस संबोधन की प्रति मीडिया को जारी की गई।
उन्होंने कहा कि यह गंभीर चिंता का विषय है कि भारत के विश्वविद्यालय अनुसंधान और शिक्षण दोनों ही मामलों में निचले पायदान पर हैं। उन्होंने कहा कि वर्ष 2000 के बाद से देश में उच्च शिक्षा के संस्थानों की संख्या बढ़ी है लेकिन पीएचडी करने वाले छात्रों की संख्या में यह वृद्धि देखने को नहीं मिली।
उप राष्ट्रपति ने कहा कि यह गंभीर चिंता का विषय है कि इंडिया स्किल्स की हाल की रिपोर्ट में पता चला है कि भारत के स्नातकों में से महज 47 फीसदी रोजगार योग्य हैं। इसलिए छात्रों को शिक्षा के साथ-साथ जीवन जीने का कौशल जैसे आवश्यक कौशलों से लैस करना चाहिए। इससे पहले, उपराष्ट्रपति यहां पूर्णप्रज्ञा विद्यापीठ गए, जहां पेजावर मठ के विश्वेशतीर्थ स्वामीजी पिछले महीने निधन हुआ था। वहां उन्होंने दिवंगत स्वामीजी को श्रद्धांजलि दी।