कूनो “ऑल सेट फॉर न्यू बिगनिंग”
भोपाल। कूनो राष्ट्रीय उद्यान गिर लॉयन के स्वागत के लिये पूरी तरह तैयार है। उद्यान में प्रवेश करते ही दीवार पर लिखी यह लाइन ‘ऑल सेट फॉर न्यू बिगनिंग” पर्यटक का न केवल ध्यान आकर्षित करती है, बल्कि गिर से कूनो में सिंहों के ट्रांसलोकेशन पर हो रही देरी पर सोचने को भी मजबूर कर देती है। इस वर्ष अब तक कूनो में 760 भारतीय और 44 विदेशी पर्यटक पहुँचे हैं। विलुप्तप्राय गिर एशियाटिक लॉयन को समाप्त होने से बचाने के लिये सुप्रीम कोर्ट ने कुछ सिंह मध्यप्रदेश के श्योपुर जिले में स्थित कूनो राष्ट्रीय उद्यान में भी स्थानांतरित करने के निर्देश दे रखे हैं।
उल्लेखनीय है कि वर्ष 1994 में तंजानिया के सेरेन्जिटी राष्ट्रीय उद्यान में केनाइन डिस्टेम्पर वायरस से लगभग 30 प्रतिशत अफ्रीकी शेरों की मृत्यु हो गई थी। ऐसी विपदा का सामना एकमात्र गुजरात के गिर वन में पाये जाने वाले एशियाई सिंहों को न करना पड़े, केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय की पहल पर वन्य-जीव संस्थान, देहरादून के वैज्ञानिकों ने ऐशियाई सिंहों के द्वितीय वैकल्पिक आवास के रूप में देश के समस्त संरक्षित क्षेत्रों का सर्वेक्षण किया। सर्वेक्षण में राजस्थान के डर्रा और सीतामाता अभयारण्य के साथ मध्यप्रदेश का कूनो राष्ट्रीय उद्यान एशियाई सिंहों के द्वितीय आवास के रूप में सर्वाधिक उपयुक्त पाया गया। मध्य भारत में सिंहों के अस्तित्व का उल्लेख गजट में भी है। इसके अनुसार वर्ष 1873 में आखरी सिंह का शिकार गुना और ग्वालियर के बीच में किया गया था। वन्य-जीव संस्थान ने इन 3 स्थलों में से एशियाई सिंह की पुनर्स्थापना के लिये सर्वश्रेष्ठ विकल्प कूनो राष्ट्रीय उद्यान को चुना और सिंह परियोजना के नाम से 20 वर्षीय परियोजना भी तैयार की।
एशियाई सिंहों की पुनर्स्थापना में हो रहे विलम्ब के कारण नई दिल्ली स्थित अशासकीय संस्था बॉयोडायवर्सिटी कंजर्वेशन ट्रस्ट ऑफ इण्डिया उच्चतम न्यायालय में जनहित याचिका लगाई गई। मार्च-2011 में सर्वोच्च न्यायालय ने मध्यप्रदेश एवं गुजरात के मुख्यमंत्रियों को आपस में चर्चा कर निराकरण के निर्देश दिये। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 15 अप्रैल, 2013 को निर्णय पारित करते हुए 6 माह में कूनो राष्ट्रीय उद्यान में सिंहों के पुनर्वास का आदेश दिया गया। सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के पालन में भारत सरकार द्वारा 13 सदस्यीय विशेषज्ञ समिति का गठन किया गया, जिसकी 7 बैठकें हो चुकी हैं।
राज्य शासन ने 16 जनवरी, 1981 को महाराजा ग्वालियर और पालपुर जागीरदार के शिकारगाह के रूप में विकसित 344.686 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को कूनो अभयारण्य के रूप में घोषित किया था। यह इलाका श्योपुर जिले की विजयपुर तहसील में आता है। इसके बाद वन्य-प्राणी संरक्षण और प्रबंधन को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हुए राज्य शासन ने 8 अप्रैल, 2002 को अभयारण्य की सीमा से लगे हुए 890.702 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल को जोड़कर कुल 1235.388 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में कूनो वन्य-प्राणी वन मण्डल का गठन किया। वर्ष 2006 में इसे वन संरक्षक वन्य-प्राणी एवं परियोजना संचालक सिंह परियोजना, ग्वालियर के प्रशासनिक नियंत्रण में लाया गया। वर्ष 2008 में मुख्य वन संरक्षक सिंह परियोजना, ग्वालियर की पद-स्थापना की गई।
शासन की अधिसूचना द्वारा 14 दिसम्बर, 2018 को अधिसूचना में संशोधन करते हुए कूनो वन्य-प्राणी अभयारण्य को कूनो राष्ट्रीय उद्यान घोषित करते हुए 748.76 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को संरक्षित क्षेत्र के रूप में अधिसूचित किया गया है। पूर्व में अधिसूचना 16 जनवरी, 1981 को जारी की गई थी।
भारतीय वन्य-जीव संस्थान, देहरादून के बॉयोजियोग्राफिक वर्गीकरण के अनुसार कूनो राष्ट्रीय उद्यान को जोन 04 सेमीऐरिड तथा बायोटिक प्रॉविन्स फोर बी गुजरात राजपूताना के अंतर्गत वर्गीकृत किया गया है। राष्ट्रीय उद्यान में 129 वृक्ष प्रजातियाँ, 73 शाक एवं झाड़ियाँ, 33 लताएँ और परजीवी प्रजाति के साथ 35 प्रकार की घास और बाँस की प्रजातियाँ पाई जाती हैं। यहाँ वन्य-प्राणियों की 35 स्तनपाई, 205 पक्षी, 14 मछली, 33 सरिसृप और 10 उभयचरों की प्रजातियाँ पाई जाती हैं। क्षेत्र में प्रमुख शाकाहारी वन्य-प्राणी जैसे चीतल, नीलगाय, सांभर, चिंकारा, चौसिंगा, जंगली सुअर, बंदर, लंगूर, खरगोश, मोर, सेही आदि पाये जाते हैं। पार्क में तेंदुए और भालुओं की संख्या भी बढ़ रही है। मांसाहारी वन्य-प्राणियों में बाघ, तेंदुआ, जंगली बिल्ली, लकड़बग्घा, भालू, सियार, लोमड़ी, भेड़िया, बिज्जू आदि मुख्य रूप से शामिल हैं। जलीय जीवों में मगर और घड़ियाल कूनो नदी में पाये जाते हैं।
गिर सिंहों के कूनो में प्रतिस्थापन के मद्देनजर प्रबंधन ने यहाँ मांसाहारी और शाकाहारी, दोनों ही प्राणियों के लिये खाने की भरपूर व्यवस्था की है। उच्च गुणवत्ता वाली विभिन्न प्रकार की घास से शाकाहारी प्राणियों को भरपूर भोजन मिलने से इनकी संख्या लगातार बढ़ रही है। इससे मांसाहारी प्राणियों को भी भरपूर आहार मिल रहा है। सिंहों के आने पर उन्हें स्वस्थ और अच्छी खुराक मिल सकेगी।
वर्ष 1995 में कूनो अभयारण्य में 779 चीतल, 169 सांभर, 1196 चिंकारा, 150 चौसिंघा और 304 नीलगाय थीं, जो वर्ष 2004 में बढ़कर क्रमश: लगभग 2150, 390, 1600, 110 और 800 हो गई। वर्ष 2005 से हुए मांसाहारी प्राणियों के लिये प्रे बेस्ड डेंसिटी प्रति वर्ग किलोमीटर घनत्व गणना के अनुसार वर्ष 2006 में चीतल की उपलब्धता 12.5, वर्ष 2008 में 18.834, वर्ष 2011 में 35.87, वर्ष 2012 में 51.59, वर्ष 2013 में 69.37, वर्ष 2014 में 52.5, वर्ष 2016 में 64.9 हो गई। वर्ष 2018 में यह गणना 344.686 से बढ़कर 1235.388 वर्ग किलोमीटर हो गई। सांभर संख्या वर्ष 2006 में 0.78, वर्ष 2008 में 1.63, वर्ष 2012 में 3.59, वर्ष 2013 में 4.85, वर्ष 2014 में 6.6, वर्ष 2016 में 7.63 और वर्ष 2018 में 22.51 हो गई। इसी तरह नीलगाय की क्रमश: वर्षों में संख्या 1.61, 5.60, 2.32, 3.92, 3.5, 9.68 और 4.55, चिंकारा की 6.52, 1.98, 0.99, 0.86, 0.6, 2.3 और 6.14, जंगली सुअर 3.19, 3.53, 4.68, 3.05, 4.3, 12.3, जंगली मवेशी 39.37, 17.92, 2013 में 2.34 और 2014 में 1.47, 2018 में 15.18 है। इस प्रकार मांसाहारी प्राणियों के लिये प्रति वर्ग किलोमीटर पर वर्ष 2006 में (जंगली मवेशी छोड़कर) जो उपलब्धता 49.477 थी, वह वर्ष 2016 में 136 से अधिक हो गई। पार्क प्रबंधन द्वारा किये गये प्रयासों से यह उपलब्धता निरंतर बढ़ती जा रही है।
कूनो वन्य-प्राणी वन मण्डल में 2 उप वन मण्डल कूनो (उत्तर) विजयपुर और कूनो (दक्षिण) पोहरी, 8 परिक्षेत्र- पालपुर पूर्व, पालपुर पश्चिम, मोरावन पूर्व, मोरावन पश्चिम, सिरोनी उत्तर, सिरोनी दक्षिण, अगरा पश्चिम एवं अगरा पूर्व हैं। यहाँ 29 सर्किल, 134 बीट, 32 वनखण्ड और 435 वनकक्ष हैं।
अभयारण्य के रूप में कूनो का क्षेत्रफल 1235.388 वर्ग किलोमीटर था, जिसमें कोर 344.486 किलोमीटर, बफर 890.702 किलोमीटर शामिल है। वर्तमान कूनो राष्ट्रीय उद्यान का क्षेत्रफल 1306.140 वर्ग किलोमीटर है, जिसमें 748.862 वर्ग किलोमीटर कोर और 557.278 किलोमीटर बफर क्षेत्र शामिल है।
सिंहों की प्रतिस्थापना के मद्देनजर यहाँ 252 स्वीकृत पद हैं, जिनमें एक वन मण्डलाधिकारी, 2 उप वन मण्डलाधिकारी, एक संलग्ना अधिकारी, 10 वन क्षेत्रपाल, एक सहायक पशु शल्य चिकित्सक, 12 उप वन क्षेत्रपाल, 45 वनपाल, 158 वन रक्षक, 3 वाहन चालक, एक-एक मुख्य लिपिक लेखापाल, मानचित्रकार, शीघ्रलेखक, दफ्तरी, 2 सहायक ग्रेड-2, 10 सहायक ग्रेड-3 और 2 चौकीदार/भृत्य शामिल हैं।
कूनो में वन और वन्य-प्राणियों की सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम हैं। द्रुत गति से सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिये 24 वायरलेस स्टेशन की स्थापना की गई है। जिन क्षेत्रों में मोबाइल फोन सिग्नल की सुविधा है, वहाँ 25 कर्मचारियों को बीएसएनएल की सिम दी गई है। वर्तमान में 24 वायरलेस फिक्स सेट, 105 हैण्ड सेट और 12 मोबाइल वायरलेस सेट हैं। वायरलेस स्टेशन, डिवीजन ऑफिस, औचापुरा, ताल, जहाँगढ़, सिरोनी, बागचा, पालपुर, टिकटोली गेट, मदनपुर, कराहल, सेसईपुरा, नयागाँव, पीपल बावड़ी, पारोंद, खजूरी, कदवई, खैरा, अहेरा गेट, पोहरी, अगरा, बिरपुर, धोरेट, पाडरी, दुरेंडी में हैं। वन और वन्य-प्राणियों की सुरक्षा पेट्रोलिंग और शासकीय कार्यों के लिये 43 वाहन हैं। साथ ही वन मण्डल में 12 बोर डीबीबीएल की चार बंदूकें, नवीन पम्प एक्शन की 35 बंदूकें और 4 रिवाल्वर उपलब्ध हैं।
सुरक्षा के मद्देनजर ही 19 स्थानों पर पेट्रोलिंग कैम्पों की स्थापना है। ये हैं- टिकटोली, पंचा खौ, मानक चौक, कैर खौ, दुरेंडी, पाडरी, लादर, नीम खो, मेघपुरा, जखोदा, नयागाँव, पीपल बावड़ी, बसंतपुरा, चूना कुण्डा, खजूरी, पारोंद, कदवई, खैरा और अहेरा। सभी पेट्रोलिंग कैम्प में हैण्डपंप, वाटर फिल्टर, सोलर लाइट, स्ट्रीट लाइट, टार्च, कैम्प कॉट, मच्छरदानी, पानी की बॉटल, राशन पेटी, फस्टएड बॉक्स, वायरलेस (फिक्स एण्ड हैण्ड सेट), कम्बल, जैकेट, रेनकोट, हंटर, शूज, वायनाकुलर, जीपीएस, पीडीए आदि उपलब्ध हैं। कैम्प में भूतपूर्व सैनिक गनमैन को बंदूकें दी गई हैं। सभी परिक्षेत्र सहायकों को मोटर साइकिल और वन रक्षक एवं श्रमिकों को साइकिलें दी गई हैं। कैम्पों में तैनात कर्मचारी और श्रमिक सभी क्षेत्रों में दिन और रात्रि गश्त लगाते हैं।सघन गश्त के कारण कूनो में वन्य-प्राणी अपराधों में सख्ती से नियंत्रण हुआ है। वर्ष 2014 से 2019 के मध्य 16 अपराध दर्ज किये जाकर लगभग 4 लाख की राशि वसूली गई है।
कूनो वन्य-प्राणी मण्डल में 25 ईको विकास समिति, 27 ग्राम वन और 16 वन सुरक्षा समिति कार्यरत हैं। कूनो राष्ट्रीय उद्यान से 1543 परिवार वाले 24 ग्राम बाहर विस्थापित किये गये हैं। विकास की मुख्य धारा से जुड़ जाने से ये परिवार अब आर्थिक, सामाजिक उन्नति की ओर भी बढ़ रहे हैं। गाँव में कुआँ, सिंचाई, आवास, विद्युत, सड़क, चारागाह आदि व्यवस्थाएँ होने से विस्थापित परिवार खुश हैं। वर्ष 1997 से सितम्बर, 2019 तक 24 गाँव के विस्थापित परिवारों को मूलभूत सुविधाएँ उपलब्ध कराने के लिये शासन द्वारा ग्राम जाखोदा के लिये 14 करोड़ 92 लाख 15 हजार 813 रुपये खर्च किये जा चुके हैं। इसके अलावा विस्थापन क्षेत्र में विकास निधि मद से फसल सुरक्षा दीवार निर्माण, 3 पेयजल कुएँ, स्टॉप-डेम मरम्मत, 2 प्लाटों की जुताई एवं समतलीकरण, सिंचाई कुआँ, सड़क मुरमीकरण पर लगभग एक करोड़ 63 लाख रुपये खर्च किये जा चुके हैं।
कूनो राष्ट्रीय उद्यान के विस्थापित गाँव में गुणवत्तापूर्ण घास के मैदान तैयार करने के लिये 2 हेक्टेयर क्षेत्र में एक घास नर्सरी तैयार की गई है। वर्तमान में रोपित किये गये क्षेत्र अच्छे घास मैदान में परिवर्तित हो रहे हैं। उद्यान के अधिकतर क्षेत्र में वर्षा ऋतु के दौरान वन मार्गों की स्थिति ठीक न होने के कारण अलग-थलग हो जाते हैं। इन दुर्गम क्षेत्रों में वर्षभर पेट्रोलिंग के मद्देनजर वन मार्गों के उन्नयन और रपटा निर्माण का कार्य कराया जा रहा है। राष्ट्रीय उद्यान के बीचों बीच कूनो नदी बहती है, जिसके कारण पालपुर पश्चिम एवं पालपुर पूर्व का सम्पर्क एक-दूसरे से लगभग 6 महीने कटा रहता है। पालपुर के पास कूनो नदी पर रपटा निर्माण का कार्य सेतु निगम के माध्यम से करवाया जायेगा।
कूनो में पानी की कमी वाले क्षेत्रों में कैर खो नाले से पाइप लाइन डालकर 7 बड़े तालाबों को जोड़ा गया है। सभी तालाबों का गहरीकरण कर जल संग्रहित किया जा रहा है।