एमपी में भाजपा के शासन के 15
साल-बनाम कांग्रेस शासन के 9 माह
उन्होंने दागी गोलियां : हमने किया कर्जा माफ— अभय दुबे
कांग्रेस 11 तारीख तक भाजपाई घड़ियाली आंसू की रोज घंटी बजायेगी
भोपाल,
7 सितंबर 2019 ( एमपीपोस्ट ) । मध्यप्रदेश की पूर्ववर्ती भाजपा सरकार
ने राज्य के किसानों को फसलों के दाम मांगने पर उनके सीने में गोलियां
उतार दीं और मंदसौर में छह किसानों को मौत के घाट उतार दिया गया। वहीं
2012 में मानव अधिकार आयोग ने यह खुलासा किया था कि शिवराज सरकार ने
जिला रायसेन में किसानों पर एके-47 से गोली चलवायी थी तथा वर्ष 2008
में विधानसभा चुनाव के दौरान 50 हजार रूपये तक के किसानों की कर्जमाफी
के झूठे वादे से सिर्फ वोटों की फसल काटी। यह बात मध्यप्रदेश कांग्रेस
कमेटी मीडिया विभाग के उपाध्यक्ष अभय दुबे ने कांग्रेस 11 तारीख तक
भाजपाई घड़ियाली आंसू की रोज घंटी बजायेगी के तहत भोपाल में 7 सितम्बर
2019 को जारी एक बयान में कही।
उन्होंने बताया कि शिवराज की एग्रीकल्चर ग्रोथ रेट का सच
उजागर:तत्कालीन भाजपा सरकार लगातार यह दावा करती रही कि उनकी कृषि की
विकास दर 20 से 24 प्रतिशत रही है। मगर एक चौंकाने वाला सच मप्र के
सांख्यिकी विभाग के माध्यम से सामने आया है कि 2013-14 में कृषि विकास
दर (-1.9) प्रतिशत, 2014-15 में (1.3) प्रतिशत, 2015-16 में (-4.1)
प्रतिशत, 2017-18 में (0.1) प्रतिशत थी।
मोदी सरकार द्वारा 24 सितम्बर, 2018 को जारी एग्रीकल्चर सेंसेस रिपोर्ट
में बताया गया कि मप्र में वर्ष 2011 से 2016 के 11 लाख 31 हजार किसानों
ने खेती छोड़ दी है। और 01लाख 66 हजार हेक्टेयर खेती का रकवा कम हो गया।
मध्यप्रदेश में खेती लगातार छोटी होती जा रही है और 24 प्रतिशत छोटे
किसान बढ़ गये हैं। मप्र के अनुसूचित जाति वर्ग के बड़े किसान 36 प्रतिशत
कम हो गये हैं और अनुसूचित जनजाति के 26 प्रतिशत किसान कम हो गये।
उन्होंने बताया कि शिवराजसिंह चौहान तत्कालीन केंद्र की कांगे्रस सरकार
के खिलाफ धरने पर बैठे थे और कहा कि मप्र के बासमती चावल की मान्यता (ज्योग्राफिकल
इंडिकेशंस टैग) केंद्र सरकार नहीं दे रही है। मगर आज केंद्र की मोदी
सरकार ने मप्र के बासमती चावल की मान्यता पर संकट खड़ा कर 15 मार्च 2018
को केंद्र सरकार के जीआई रजिस्टार ने फैसला दिया था कि मप्र को बासमती
चावल की पहचान नहीं दी जा सकती। तब वे मौन साधे रहे और केंद्र सरकार के
खिलाफ एक शब्द नहीं बोला। ज्ञातव्य है कि मप्र के 14 जिलों में चार लाख
किसान लगभग छह लाख टन बासमती चावल पैदा करते हैं।
मप्र में कांग्रेस सरकार बनते ही भाजपा नेता सक्रिय हुए और मप्र में
खाद्य की आपूर्ति पर रोक लगवाकर किसानों के साथ कुठाराघात किया था।
दिसम्बर 2018 रबी सीजन में मप्र को 3 लाख 70 हजार मीट्रिक टन यूरिया की
आवश्यकता थी, वहां प्रदेश को सिर्फ 1 लाख 65 हजार मीट्रिक टन यूरिया
उपलब्ध कराया गया था। कमलनाथ जी ने तत्परता से चार दिनों तक दिल्ली में
डेरा डाला और उन चार दिनों के दौरान 2.08 लाख मीट्रिक टन यूरिया मप्र
को उपलब्ध करायी।
मोदी सरकार के माध्यम से प्रदेश के भाजपा नेताओं ने किसानों के साथ
लगातार विश्वासघात किया। जहां कांग्रेस सरकार ने रबी सीजन 2019-20 के
लिये, गेहूं की समर्थन मूल्य पर 73.70 लाख मीट्रिक टन की, वहीं केंद्र
सरकार ने सिर्फ 65 लाख मीट्रिक टन गेहूं की समर्थन मूल्य पर खरीद
स्वीकृत की। अर्थात 8.70 लाख मीट्रिक टन गेहूं की खरीद का लगभग 1500
करोड़ रूपये कमलनाथ सरकार चुका रही है।
उन्होंने बताया कि प्रदेश भाजपा नेताओं ने केंद्र की मोदी सरकार ने
खरीफ 2017 के भावांतर के 576 करोड़, खरीफ 2018 के 321 करोड़ और अतिरिक्त
6 लाख मीट्रिक टन के 120 करोड़ अर्थात कुल 1017 करोड़ रूपये केंद्र से
रूकवा दिये।
किसानों के उत्थान के साथ कमलनाथ -
सही मायनों में कमलनाथ सरकार मप्र के किसानों के लिए वरदान बनकर आयी
है। 15 वर्षों से पीड़ा में पल रहा किसान आज प्रगति के पथ पर अग्रसर हो
गया है। मप्र के यशस्वी मुख्यमंत्री कमलनाथ जी ने मुख्यमंत्री बनते ही
मप्र के लगभग 50 लाख किसानों की 2 लाख रूपये तक की कर्जमाफी का शंखनाद
कर दिया। अब तक 19 लाख से अधिक किसानों का कर्ज माफ कर दिया गया। निकट
भविष्य में मप्र के समूचे किसान कर्जमुक्त होंगे।
मप्र के 28 लाख किसान परिवारों का 10 हाॅस पाॅवर तक के कृषि पंप की
बिजली का बिल आधा कर दिया गया। किसानों को देश की सबसे सस्ती बिजली
सिर्फ 44 पैसे प्रति यूनिट दी जा रही है। इतना ही नहीं अनुसूचित
जाति-जनजाति के 7.5 लाख किसानों को कृषि उपयोग के लिये बिजली मुफ्त दी
जा रही है। कमलनाथ सरकार किसानों को बिजली का बिल आधा करके लगभग 12.5
हजार करोड़ रूपये की रियायत दे रही है।
मप्र को एग्रोक्लामेटिक जोन के आधार पर विभाजित कर एग्रोप्रोसेसिंग
यूनिट स्थापित करने की योजना को मूर्त रूप दे दिया गया है, जल्द ही
किसान परिवारों के बच्चों को एक करोड़ रूपये तक राज सहायता (सब्सिडी) के
माध्यम से एग्रोप्रोसेसिंग यूनिट स्थापित करने के लिए ऋण उपलब्ध कराये
जायेंगे।
हाल ही में किसान भाईयों के लिए 2000 योजनाएं प्रारंभ की गई हैं। जिसमें
14 हजार गांवों के किसानों के घर में नल लगाकर पीने का पानी उपलब्ध
कराया जा रहा है, जिसमें 1196.17 करोड़ रूपये खर्च किये जा रहे हैं। |