मध्यप्रदेश के आदिवासियों को वनाधिकार हक़ दिलाने
आगे आये मुख्यमंत्री कमलनाथ
12 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट में आदिवासियों का मजबूती से पक्ष रखने को
कहा
वन मित्र सॉफ्टवेयर से वनाधिकार पत्र दिलाने की प्रक्रिया तेज़
भोपाल,
6 सितंबर 2019 ( एमपीपोस्ट ) । केंद्र सरकार की गलती सुधारते हुए
मध्यप्रदेश में वनाधिकार अधिनियम के तहत 3 लाख 60 हजार 181 वनवासी
परिवारों को वनभूमि के अधिकार-पत्र पाने से वंचित होने से बचाने के लिए
कमलनाथ सरकार आगे आयी है ।
एमपीपोस्ट को मिली आधिकारिक जानकारी के अनुसार मुख्यमंत्री कमल नाथ ने
आदिवासियों को वनाधिकार हक़ दिलाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में 12 सितंबर
को तथ्य और तर्कों के साथ पक्ष रखने को कहा है। ।सुप्रीम कोर्ट में
सुनवाई के पहले 11 सितंबर को मुख्यमंत्री कमलनाथ इस विषय की समीक्षा भी
करेंगे।
आदिवासियों को वनाधिकार हक़ दिलाने में पूर्ववर्ती शिवराज सिंह चौहान
सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में आदिवासियों के हित में पक्ष रखने में खास
रुचि नहीं ली इसलिए यह संकट आदिवासियों के सामने वनाधिकार का खड़ा हो गया।
मध्यप्रदेश में लगभग 6 लाख 26 हज़ार 511 परिवारों ने वनभूमि का हक पाने
के लिए आवेदन किए। प्रदेश में वन अधिकार अधिनियम के अंतर्गत अब तक दो
लाख 55 हजार 152 वन निवासियों को व्यक्तिगत और 27 हजार 967 को
सामुदायिक एवं 3159 अन्य परंपरागत वर्ग को वन अधिकार-पत्र वितरित किए
गए हैं।
उल्लेखनीय है कि सर्वोच्च न्यायालय ने 13 फरवरी, 2019 को पारित आदेश
में तीन लाख 60 हजार 181 आवेदनों को निरस्त करते हुए कब्ज़ा हटाने को कहा
था। जैसे ही मुख्यमंत्री कमल नाथ को इस निर्णय की जानकारी लगी उन्होंने
तत्काल प्रभाव से सुप्रीम कोर्ट में राज्य सरकार का आदिवासियों को
वनाधिकार हक़ दिलाने के लिए आगे आकर पक्ष रखने को कहा। इसके बाद सुप्रीम
कोर्ट ने अपने फैसले को संशोधित करते हुए 28 फरवरी, 2019 को कहा कि छह
माह से एक साल के भीतर आदिवासियों के दिसंबर 2005 के पूर्व के काबिज
होने और अन्य के 75 साल से पहले के भूमि कब्जे के प्रमाण दिखाईये।
वंचित लोगों को उनका हक दिलाने के लिए सरकार की ओर से कवायद तेज कर दी
गई है।
राज्य सरकार निरस्त दावों के पुनर्परीक्षण के लिए वन मित्र सॉफ्टवेयर
का सहारा ले रही है।
वनवासी परिवारों का वर्षो से वनभूमि पर कब्जा रहा है, मगर उन्हें
मालिकाना हक हासिल नहीं हो पाया था। तमाम सामाजिक संगठनों ने संघर्ष का
रास्ता तय किया, जिसके चलते अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वनवासी (वनाधिकारों
की मान्यता) अधिनियम बना।
अधिनियम के अनुसार, लोगों को दो तरह के अधिकार दिए जा सकते हैं। पहला
व्यक्तिगत और दूसरा सामूहिक। व्यक्तिगत अधिकार के लिए वनवासी को अपनी
पुश्तैनी भूमि, मकान, खेती योग्य जमीन के लिए दावा फॉर्म भरना होगा। वहीं
वनग्राम और ग्रामसभा उस जंगल पर अधिकार के लिए सामूहिक दावा कर सकता
है, जहां से वे चारापत्ती, जलावन, हक-हकूक की इमारती लकड़ी लेते हैं।
उसमें उन गौण वन उत्पादों पर भी सामूहिक दावा किया जा सकता है, जिसे
लोग पारंपरिक रूप से संग्रहण कर बेच सकते हैं।
मुख्यमंत्री कमलनाथ ने वन अधिकार अधिनियम-2006 के तहत निरस्त दावों के
बेहतर परीक्षण के लिए पूरी व्यवस्था कम्प्यूटरीकृत करने के लिए कहा था।
राज्य सरकार ने महाराष्ट्र नॉलेज कॉर्पोरेशन लिमिटेड द्वारा तैयार किए
गए वन मित्र सॉफ्टवेयर को लगभग 37 लाख रुपये में खरीद लिया गया है। वन
मित्र सॉफ्टवेयर को प्रदेश सरकार अपने अनुकूल बदलाव करने के बाद उपयोग
कर रही है।
वनाधिकार पत्र भरने के लिए आदिम जाति कल्याण विभाग इस कार्य को तेजी के
साथ कर रहा है। वन मित्र सॉफ्टवेयर के जरिये पायलट होशंगाबाद जिले में
किया जा रहा है। इस जिले में 1175 वनाधिकार पत्र भरे जाना है 24 जून
2019 से अभी तक 558 से अधिक आवेदकों ने दावे पत्र भरे हैं।
कमलनाथ ने आदिवासियों को वनाधिकार हक़ दिलाने और उनके हितों की रक्षा
करने के लिए राज्य के सभी ग्राम रोजगार सहायक को वनाधिकार पत्र भरवाने
के लिए टैबलेट डिवाइस टेक्नोलॉजी सहित दिए हैं।
आयुक्त आदिवासी कल्याण विभाग मध्यप्रदेश शासन ने वन अधिकार अधिनियम के
अंतर्गत निरस्त दावों के पुनर्परीक्षण के लिए वन मित्र सॉफ्टवेयर अपने
अनुकूल विकसित किया है। एक पायलट होशंगाबाद जिले में चल रहा है। सरकार
का मानना है कि सॉफ्टवेयर द्वारा परीक्षण से दावों के निराकरण में
त्वरित गति आएगी और पारदर्शिता भी रहेगी। विभाग ने इसके लिए अधिकारियों
को प्रशिक्षण दिया और उन्होंने तीन लाख 60 हजार 181 दावों के
पुनर्परीक्षण का कार्य शुरू किया है।
कांग्रेस पार्टी ने विधानसभा चुनाव के समय वचन-पत्र में यह भी कहा है
कि वनाधिकार अधिनियम 2006 एवं संशोधन 2013 के तहत वन भूमि पर जिन
कब्जाधारी आदिवासियों को पट्टा नहीं मिला है उनको पट्टा दिलवाएंगे और
उनकी भूमि को कृषि योग्य बनाएंगे। पट्टों की जगह मालिकाना हक़ देंगे।
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार की लापरवाही के कारण 17 प्रदेशों के 11
लाख 72 हजार 931 आदिवासियों के सामने अपनी जमीन पर रहने का संकट पैदा
हो गया है। सुप्रीम कोर्ट ने इन लोगों को शर्तें पूरी न करने के कारण
उनकी जमीन से बेदखल करने का नोटिस 17 राज्य सरकारों को भेजा है। |